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'NASA' को दोबारा चंद्रमा पर लौटने के लिए करना होगा लंबा इंतजार, वजह बने 'स्पेससूट'

1969 में चंद्रमा की सतह पर पहले इंसान को उतारने वाली अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा को दोबारा चंद्रमा पर लौटने के लिए काफी इंतजार करना होगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 01 Aug 2018 09:32 AM (IST)Updated: Wed, 01 Aug 2018 11:26 AM (IST)
'NASA' को दोबारा चंद्रमा पर लौटने के लिए करना होगा लंबा इंतजार, वजह बने 'स्पेससूट'
'NASA' को दोबारा चंद्रमा पर लौटने के लिए करना होगा लंबा इंतजार, वजह बने 'स्पेससूट'

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। 1969 में चंद्रमा की सतह पर पहले इंसान को उतारने वाली अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा को दोबारा चंद्रमा पर लौटने के लिए काफी इंतजार करना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि एजेंसी आज भी दशकों पुराने स्पेससूट से काम चला रही है, जो काफी भारी हैं और जिन्हें पहनकर चलना बहुत मुश्किल है। एजेंसी के पास 2024 तक का समय है कि वह नए सूट बनाकर उनका परीक्षण भी कर ले, क्योंकि इसके बाद नासा के दो बड़े अभियान कतार में हैं। हालांकि मंगल पर अंतरिक्षयात्री भेजने के लिए नासा जी-2 नाम का स्पेससूट तैयार कर रहा है।

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छह वर्ष में पड़ेगी जरूरत

2024 में ट्रंप प्रशासन इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आइएसएस) को रिटायर करना चाहता है। यानी इसका संचालन नासा से लेकर किसी निजी कंपनी को सौंप दिया जाएगा। इससे पहले नए सूट बनाकर आइएसएस पर उनका परीक्षण करना जरूरी है। नासा ल्युनार गेटवे स्टेशन पर भी काम कर रहा है। 2025 में यह चंद्रमा की परिक्रमा शुरू कर देगा। इस अभियान के लिए भी नए स्पेससूट की दरकार होगी। अगर छह वर्ष में नए सूट तैयार नहीं हो पाएंगे तो नासा को अंतरिक्ष में इनका परीक्षण करने के लिए नई तरकीब निकालनी पड़ेगी या फिर हल्केफुल्के परीक्षण से ही संतुष्ट होना पड़ेगा।

ऐसे होते हैं स्पेससूट

ये सूट हवा की बजाय सौ फीसद ऑक्सीजन का इस्तेमाल करते हैं। जब कोई अंतरिक्षयात्री अंतरिक्ष में चहलकदमी करता है तो सूट के अंदर वातावरणीय दाब का एक-तिहाई दाब बन जाता है। हर सूट के अंदर दो ऑक्सीजन टैंक होते हैं जो कार्बन डाईऑक्साइड को भी हटाते हैं और 6 से 8.5 घंटे चहलकदमी करने देते हैं। लाइफ सपोर्ट सिस्टम में स्पेसवॉक के दौरान इस्तेमाल होने वाली चीजें शामिल होती हैं, जैसे बैटरी और कूलिंग वॉटर। इस सिस्टम से भी 6 से 8.5 घंटे स्पेसवॉक किया जा सकता है। सूट के अंदर सामने की तरफ एक पेय पदार्थ वाला बैग होता है।

अब तक भारी राशि खर्च

पिछले दस वर्षों में नासा ने नए सूट तैयार करने की कोशिशों में लगभग 20 करोड़ डॉलर खर्च किए हैं, लेकिन सफलता नहीं मिली। अब नासा के सामने 2024 से पहले सूट तैयार करने की चुनौती है। फंडिंग की समस्या भी सूट बनने की राह में रोड़ा है। अमेरिकी सरकार के कहने पर एजेंसी अब तक स्पेससूट की फंडिंग में कटौती करती आई है और डीप- स्पेस हैबिटैट जैसे प्रोजेक्ट पर अधिक धन खर्चती रही है।

मंगल अभियानों के लिए बन रहे सूट

फिलहाल नासा मंगल ग्रह पर अंतरिक्षयात्री भेजने के लिए जी-2 नाम का नया स्पेससूट तैयार कर रहा है। यह हर अंतरिक्षयात्री के लिए 3डी प्रिंटिंग तकनीक से तैयार किया जाएगा। इसे पहनकर अंतरिक्षयात्री आसानी से मंगल की सतह पर चहलकदमी कर सकेंगे। यह न सिर्फ हल्के होंगे बल्कि इनमें शरीर बेहतर तरीके से हिल सकेगा। इनमें खास तरीके के पैच लगाए जाएंगे जो रोशनी करेंगे जिससे स्पेसवॉक के दौरान अंतरिक्षयात्री एक दूसरे को देख सकें।

बेकार हो रहे पुराने सूट

नासा ने 1982 में अपने शटल प्रोग्राम के लिए 18 एक्सट्राव्हीकुलर मोबिलिटी यूनिट नामक स्पेससूट तैयार किए थे। 2017 में इनमें से सिर्फ 11 सूट काम कर रहे थे। लेकिन इनमें से भी कई सूट खराब हालत में हैं। दो स्पेससूट को खोलकर उनका परीक्षण किया जा रहा है। दो सूट सिर्फ ग्राउंड चेंबर में इस्तेमाल के लिए सुरक्षित हैं। दो अन्य सूट अभी भी प्रमाणीकरण के दौर में हैं। इन्हें बनाते समय तय किया गया था कि हर स्पेस शटल मिशन के बाद इन्हें रखरखाव के लिए वापस धरती पर लाया जाएगा। लेकिन शटल प्रोग्राम के खत्म होने के बाद सूट को धरती पर लाना कम हो गया। अब आइएसएस पर जो सूट हैं वे छह साल या 25 स्पेसवॉक तक काम करेंगे। 


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