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नासा ने की बड़ी पहल, अंतरिक्ष में इंसानों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को बताएगा स्क्विड, जानें इस जीव के बारे में

नासा ने इसके लिए स्क्विड नामक खारे पानी के जीव को दर्जनों की संख्या में इस महीने की शुरुआत में हवाई से स्पेस एक्स के पुन आपूर्ति मिशन के तहत इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आइएसएस) पर भेजा है। ये स्क्विड जुलाई में धरती पर लौटेंगे।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Wed, 23 Jun 2021 08:16 PM (IST)Updated: Wed, 23 Jun 2021 08:16 PM (IST)
नासा ने की बड़ी पहल, अंतरिक्ष में इंसानों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को बताएगा स्क्विड, जानें इस जीव के बारे में
स्क्विड नामक खारे पानी के जीव को दर्जनों की संख्या में

होनोलूलू, एपी। अंतरिक्ष हमेशा से इंसानों के लिए जिज्ञासा का विषय रहा है। विज्ञान ने इसे हमारी पहुंच में ला दिया है और कई देशों के विज्ञानी अंतरिक्ष में तमाम प्रयोग कर रहे हैं। साथ ही दूसरे ग्रहों पर मानव बस्तियां बसाने का भी सपना देख रहे हैं। इसी कड़ी में एक अहम प्रयोग अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा शुरू किया गया है। दरअसल, लंबे समय तक अंतरिक्ष मिशन के दौरान कम गुरुत्वाकर्षण के कारण इंसानों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव की जानकारी जुटाने की दिशा में एक बड़ी पहल हुई है।

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नासा ने बड़ी संख्या में खारे पानी के ये जीव आइएसएस पर भेजे

नासा ने इसके लिए स्क्विड नामक खारे पानी के जीव को दर्जनों की संख्या में इस महीने की शुरुआत में हवाई से स्पेस एक्स के पुन: आपूर्ति मिशन के तहत इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आइएसएस) पर भेजा है। ये स्क्विड जुलाई में धरती पर लौटेंगे। होनोलूलू स्टार एडवरटाइजर ने हाल ही में जारी अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि शोधकर्ता जैमी फोस्टर यह प्रयोग इस उम्मीद से कर रही हैं कि लंबी अंतरिक्ष यात्रा के दौरान इंसानों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है।

सेफलोपोड्स समूह का है स्क्विड

बता दें कि स्क्विड प्राणी विज्ञान के सेफलोपोड्स समूह से आता है, जो कैटलफिश से मिलता-जुलता जीव है। यह खारे पानी में पाया जाने वाला एक दिलचस्प जीव है, जो अंधेरे में चमकता है। इसलिए इसे जीवदीप्ति कहा जाता है। स्क्विड का प्राकृतिक बैक्टीरिया के साथ सहजीवी (सिम्बायोटिक) संबंध होता है, जो इसकी चमक को नियंत्रित करता है।

कम गुरुत्वाकर्षण का पड़ता है प्रभाव

यूनिवर्सिटी आफ हवाई के प्रोफेसर मार्गरेट मैकफॉल-नगाई के मुताबिक, अंतरिक्ष यात्री जब कम गुरुत्वाकर्षण में होते हैं तो उनके शरीर का जीवाणुओं के साथ संबंधों में बदलाव आता है। हमने पाया है कि माइक्रोग्रैविटी में इंसानों का जीवाणुओं के साथ सहजीवी संबंधों में बदलाव आता है और जैमी ने भी यह दर्शाया है कि यह स्क्विड के मामलों में सही है। चूंकि यह एक सामान्य बात है, इसलिए जैमी इसकी गहराई से पड़ताल कर रही हैं कि आखिर इस प्रक्रिया में क्या कुछ गड़बड़ हो जाता है। जैमी नासा की उस शोध टीम की मुख्य शोधकर्ता हैं, जो प्राणियों और जीवाणुओं के बीच होने वाली अंतरक्रिया पर माइक्रोग्रैविटी के असर का अध्ययन कर रही हैं।

इम्यून सिस्टम पर पड़ता है असर

जैमी का कहना है कि लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने के कारण अंतरिक्ष यात्रियों का इम्यून सिस्टम अनियंत्रित हो जाता है। यह सही तरीके से काम नहीं करता है और आसानी से बैक्टीरिया की पहचान भी नहीं कर पाता है। इसलिए वे कभी-कभी बीमार भी हो जाते हैं। उनके अनुसार, स्क्विड के जरिये अंतरिक्ष यात्रियों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के निदान में मदद मिल सकती है। हालांकि, लंबी अंतरिक्ष यात्रा के दौरान इम्यून सिस्टम के ठीक से काम नहीं करने के कई कारण होते हैं। फिर भी भविष्य में यदि इंसान चांद या मंगल पर समय गुजारना चाहे तो हम उनकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का निदान कर सकते हैं।


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