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भारत में रिकॉर्ड 27.3 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले, देश ने दस सालों में हासिल किया यह मुकाम

भारत और निकारगुआ ने क्रमश दस और साढ़े दस सालों के दौरान बच्चों के बहुआयामी गरीबी सूचकांक को आधा किया है। रिपोर्ट कहती है कि बच्चों के मामले में निर्णायक बदलाव संभव हैं।

By Tilak RajEdited By: Published: Fri, 17 Jul 2020 04:51 PM (IST)Updated: Fri, 17 Jul 2020 04:51 PM (IST)
भारत में रिकॉर्ड 27.3 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले, देश ने दस सालों में हासिल किया यह मुकाम
भारत में रिकॉर्ड 27.3 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले, देश ने दस सालों में हासिल किया यह मुकाम

संयुक्त राष्ट्र, प्रेट्र। भारत में स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा समेत विभिन्न क्षेत्रों में हुई प्रगति से लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2005-06 से 2015-16 के बीच रिकॉर्ड 27.30 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और आक्सफोर्ड पोवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनीशिएटिव (ओपीएचआइ) द्वारा जारी आंकड़े के मुताबिक, वर्ष 2000 से 2019 के बीच 75 में से 65 देशों के बहुआयामी गरीबी स्तर में काफी कमी आई है।

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रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन 65 देशों ने बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआइ) को कम किया है, उनमें से 50 देश ऐसे हैं जहां पर गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या में भी उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई है। सबसे बड़ी कमी भारत में आई है, जहां पर लगभग 27.3 करोड़ लोग 10 सालों के दौरान बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले हैं। चार देशों आर्मेनिया (2010-2015/16), भारत (2005/2006-2015/2016), निकारागुआ (2011-2011/12) और उत्तरी मैसेडोनिया (2005/2006-2011) ने साढ़े पांच से साढ़े दस सालों के दौरान अपने वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक को आधा कर दिया है। इन देशों के आंकड़ों को देखकर पता चलता है कि भिन्न गरीबी स्तर वाले देश किस तरह के कदम उठाएं, जिससे गरीबी में कमी लाई जा सके। इसके साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में गरीबी से बाहर निकले 27.3 करोड़ लोगों की संख्या संयुक्त राष्ट्र के आíथक और सामाजिक मामलों के विभाग (यूएनडीईएसए) की 2019 की रिपोर्ट पर आधारित है। पिछला अनुमान वर्ष 2017 पर आधारित था।

भारत ने दस सालों में बच्चों के गरीबी सूचकांक को आधा किया

रिपोर्ट में यह भी कहा गय है कि भारत और निकारगुआ ने क्रमश: दस और साढ़े दस सालों के दौरान बच्चों के बहुआयामी गरीबी सूचकांक को आधा किया है। रिपोर्ट में टिप्पणी की गई है कि बच्चों के मामले में निर्णायक बदलाव संभव हैं, लेकिन इसके लिए नीतिगत प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। रिपोर्ट में जोर देकर कहा गया है कि जारी आंकड़ों से पता चलता है कि कोरोना महामारी से पहले बहुआयामी गरीबी से निपटने में प्रगति हो रही थी, लेकिन अब यह खतरे में है।

22 फीसद आबादी बहुआयामी गरीबी में रहने को विवश

रिपोर्ट से पता चलता है कि 107 विकासशील देशों के 130 करोड़ लोग यानी कि 22 फीसद आबादी बहुआयामी गरीबी में रहती है। आंकड़ों से इस बात की भी जानकारी मिलती है कि बहुआयामी गरीबी का सर्वाधिक बोझ बच्चों पर पड़ता है। जो 130 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी में रहते हैं, उनमें से आधे की उम्र अभी 18 वर्ष भी नहीं हुई है। जबकि 107 मिलियन लोगों की उम्र 60 वर्ष या उससे ज्यादा है। बहुआयामी गरीबी के तहत रहने वाले 84.3 फीसद लोग उप सहारा अफ्रीकी क्षेत्रों में रहते हैं।

10 देशों के 60 फीसद बच्चों का टीकाकरण नहीं

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 10 देशों के 60 फीसद बच्चे ऐसे हैं, जिनका टीकाकरण नहीं किया गया है। चालीस फीसद बच्चे भारत, पाकिस्तान, नाइजीरिया और इंडोनेशिया में रहते हैं, जिन्हें डीटीपी-थ्री का टीका नहीं लगा है।

क्या होती है बहुआयामी गरीबी

बहुआयामी गरीबी में गरीब लोगों द्वारा दैनिक जीवन में अनुभव किए जाने वाले सभी अभावों को समाहित किया जाता है। इसमें खराब स्वास्थ, शिक्षा की कमी, गुणवत्तापूर्ण जीवन स्तर का नहीं होना, काम की खराब गुणवत्ता, हिंसा का खतरा और ऐसे क्षेत्रों में रहना जो पर्यावरण के लिहाज से बहुत अनुकूल नहीं हैं।


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