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जानिए 20 साल पहले किन वजहों से अमेरिकी एजेंडे से गायब हो गया था नागोर्नो-काराबाख विवाद

अमेरिका ने इस विवाद को खत्म करके यहां शांति कायम करने के लिए 20 साल पहले बड़ा प्रयास किया था उम्मीद थी कि अमेरिका की मध्यस्थता के बाद अर्मेनिया और अजरबैजान के बीच ये विवाद पूरी तरह से सुलझ जाएगा।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Sun, 04 Oct 2020 04:52 PM (IST)Updated: Mon, 05 Oct 2020 11:23 AM (IST)
जानिए 20 साल पहले किन वजहों से अमेरिकी एजेंडे से गायब हो गया था नागोर्नो-काराबाख विवाद
अर्मेनिया और अजरबैजान के बीच स्थित नागोर्नो-काराबाख का इलाका। (फाइल फोटो)

मॉस्को, न्यूयॉर्क टाइम्स न्यूज सर्विस। ऐसा नहीं है कि इन दिनों युद्ध का मैदान बने नागोर्नो-काराबाख विवाद को सुलझाने के लिए पहले प्रयास नहीं किए गए। अमेरिका ने इस विवाद को खत्म करके यहां शांति कायम करने के लिए 20 साल पहले बड़ा प्रयास किया था, उम्मीद थी कि अमेरिका की मध्यस्थता के बाद अर्मेनिया और अजरबैजान के बीच ये विवाद पूरी तरह से सुलझ जाएगा।

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अमेरिका ने दोनों देशों को बातचीत के लिए फ्लोरिडा में आमंत्रित भी किया था लेकिन इसी बीच 11 सितंबर 2001 को आतंकी संगठन अलकायदा ने अमेरिका में हमला कर दिया, अमेरिकी इतिहास में ये सबसे बड़ा आतंकी हमला था। इस हमले में 3000 से अधिक लोग मारे गए थे और अरबों रुपये का नुकसान हुआ था। उस हमले के बाद से अमेरिकी एजेंडे से ये मामला दूर हो गया जो अब तक सुलझ नहीं पाया है। उधर अमेरिका आतंकी हमले से हुए नुकसान के बाद अपने को संभालने में लगा रहा। अब कोरोना ने पूरी दुनिया में कहर मचाया, इसी बीच ये मामला फिर से गर्मा गया है।

ये पहला मौका नहीं है जब दोनों देशों के बीच युद्ध हो रहा है। इससे पहले भी युद्ध होते रहे हैं। इस मामले को कुछ इस तरह से बड़ी आसानी से समझ सकते हैं जैसे भारत कश्मीर को अपने देश का अभिन्न हिस्सा मानता है। पाकिस्तान ने कुछ हिस्से पर कब्जा कर रखा है वो पूरे कश्मीर को अपना बताता है जबकि कुछ कश्मीरी पाकिस्तान के साथ जाना चाहते हैं और अधिक से अधिक भारत के साथ मिलना चाहते हैं। नागोर्नो-काराबाख इलाके का विवाद कुछ इसी तरह का है।  

क्या है नागोर्नो-काराबाख का इतिहास 

नागोर्नो-काराबाख 4,400 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ एक बड़ा इलाका है। इस इलाके में आर्मीनियाई ईसाई और मुस्लिम तुर्क रहते हैं। ये इलाका अजरबैजान के बीच आता है। बताया जाता है कि सोवियत संघ के अस्तित्व के दौरान ही अजरबैजान के भीतर का यह एरिया एक स्वायत्त (Autonomous Area) बन गया था। अतरराष्ट्रीय स्तर पर इस इलाके को अजरबैजान के हिस्से के तौर पर ही जाना जाता है लेकिन यहां अधिकतर आबादी आर्मीनियाई रहती है। 1991 में इस इलाके के लोगों ने खुद को अजरबैजान से स्वतंत्र घोषित करते हुए आर्मेनिया का हिस्सा घोषित कर दिया। उनकी इस हरकत को अजरबैजान ने सिरे से खारिज कर दिया। इसके बाद दोनों देशों के बीच कुछ समय के अंतराल पर अक्सर संघर्ष होते रहते हैं।

अजरबैजान के हिस्से कैसे आया नागोर्नो-काराबाख का इलाका 

आर्मेनिया और अजरबैजान 1918 और 1921 के बीच आजाद हुए थे। आजादी के समय भी दोनों देशों में सीमा विवाद के चलते कोई खास मित्रता नहीं थी। पहले विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद इन दोनों देशों में से एक तीसरा हिस्सा Transcaucasian Federation अलग हो गया। जिसे अभी जार्जिया के रूप में जाना जाता है। 

1922 में ये तीनों देश सोवियत यूनियन में शामिल हो गए। इस दौरान रूस के महान नेता जोसेफ स्टालिन ने अजरबैजान के एक हिस्से (नागोर्नो-काराबाख) को आर्मेनिया को दे दिया। एक बात ये भी कही जाती है कि जोसेफ स्टालिन ने आर्मेनिया को खुश करने के लिए नागोर्नो-काराबाख का इलाका उनको सौंपा था।

1991 के बाद से दोनों देशों के बीच भड़का है तनाव 

1991 में सोवियत यूनियन का विघटन हुआ, उसी के बाद से अजरबैजान और आर्मेनिया भी स्वतंत्र हो गए। तब से सब शांति से चल रहा था लेकिन नागोर्नो-काराबाख के लोगों ने साल 2020 में खुद को अजरबैजान से स्वतंत्र घोषित किया और आर्मेनिया में शामिल हो गए। इस के बाद से दोनों देशों के बीच जंग के हालात बन गए। इसी का नतीजा है कि दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आ गई। अब इसे रोकने के लिए कई और देशों को बीच में कूदना पड़ रहा है। 


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