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चंद्रमा के गर्त में दबे बहुमूल्य संसाधनों के बारे में मिलेगी जानकारी, धूल के कण से वैज्ञानिक खोलेंगे राज

अब चंद्रमा की धूल के कण से भी इसके रहस्यों से पर्दा उठाया जा सकता है। एक नई तकनीक के जरिए यह पता लगाया जा सकता है कि चंद्रमा के गर्त में कौन-कौन-से बहुमूल्य संसाधन दबे पड़े हैं।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sat, 08 Feb 2020 08:08 PM (IST)Updated: Sat, 08 Feb 2020 09:27 PM (IST)
चंद्रमा के गर्त में दबे बहुमूल्य संसाधनों के बारे में मिलेगी जानकारी, धूल के कण से वैज्ञानिक खोलेंगे राज
चंद्रमा के गर्त में दबे बहुमूल्य संसाधनों के बारे में मिलेगी जानकारी, धूल के कण से वैज्ञानिक खोलेंगे राज

वाशिंगटन डीसी, एएनआइ। चंद्रमा की सतह की मिट्टी की केमिस्ट्री का विश्लेषण करने के लिए शोधकर्ताओं ने नई राह तलाशी है, उनका कहना है कि अब चंद्रमा की धूल के कण से भी इसके रहस्यों से पर्दा उठाया जा सकता है और यह पता लगाया जा सकता है कि आखिर चंद्रमा की सतह और उसके गर्त में कौन-कौन-से बहुमूल्य संसाधन दबे पड़े हुए हैं। 

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दरअसल, शोधकर्ताओं ने चंद्रमा की मिट्टी के नमूनों का विश्लेषण करने के लिए एक नई विधि खोजी है। उनका दावा है कि इस तकनीक में इतनी उच्च संवेदनशीलता और हाई रिजॉल्यूशन है कि केवल एक कण जैसे नमूने से भी ऐसी चीजें खोजी जा सकती हैं जो आपको कहीं और नहीं मिलेंगी। शोधकर्ताओं की यह खोज 'मीटियोरिट्रिक्स एंड प्लेनेटरी साइंस' में प्रकाशित हुई है। इसका उद्देश्य चंद्रमा की सतह की स्थिति का आकलन करना और वहां पानी और हीलियम जैसे कीमती संसाधनों के निर्माण के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना है।

चंद्रमा के नमूनों का अध्ययन 

शोधकर्ताओं ने कहा कि नई तकनीक को एटम प्रोब टोमोग्राफी (एपीटी) कहा जाता है। इसका उपयोग आम तौर पर वैज्ञानिकों द्वारा स्टील और नैनोटायर जैसी औद्योगिक सामग्रियों को बेहतर बनाने के लिए किया जाता है। किसी भी सामग्री का बारीकी से विश्लेषण करने की इसकी क्षमता के कारण ही इस तकनीक से चंद्रमा के नमूनों का बेहतर अध्ययन किया जाता है।

भूवैज्ञानिकों के लिए भी नई है तकनीक

इस शोध की पहली लेखक और यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की शोधकर्ता जेन्निका ग्रियर ने कहा, 'हम अंतरिक्ष से लाई गई चट्टानों का बारीकी से विश्लेषण कर रहे हैं। यह पहली बार है जब चंद्रमा से लाए गए किसी नमूने का इस तरह अध्ययन किया गया है। हम एक ऐसी तकनीक का उपयोग कर रहे हैं, जिसे कई भूवैज्ञानिकों ने अभी तक सुना भी नहीं है।' इस अध्ययन के सह-लेखक, फील्ड म्यूजियम के क्यूरेटर और यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में एसोसिएट प्रोफेसर फिलिप हेक फिलिप हेक कहते हैं कि हम इस तकनीक को उन नमूनों पर लागू कर सकते हैं जिनका किसी ने अध्ययन नहीं किया है।

अनाज के दाने के बराबर नमूना है पर्याप्त

1972 के नासा के अपोलो 17 मिशन के अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा से 111 किलोग्राम चट्टानें और मिट्टी के नमूने लाए थे। शोधकर्ताओं ने कहा कि नई विधि के जरिये इनके विश्लेषण के लिए हमें इनके बहुत बड़े हिस्से की बजाय एक अनाज के दाने या मनुष्य के बाल के बराबर का नमूना भी पर्याप्त है।

संसाधनों को निकालने में मदद करेगा अध्ययन

नई तकनीक से विश्लेषण के दौरान ग्रियर ने इन नमूनों में लोहा, पानी और हीलियम की पहचान की है। उन्होंने कहा कि हमारा अध्ययन भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा से इन बहुमूल्य संसाधनों को निकालने के लिए चंद्रमा पर अपनी गतिविधियों को बनाए रखने के लिए प्रेरित करेगा।

नासा ने पहली बार रखा था चंद्रमा की सतह पर कदम

वर्ष 1972 में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के आखिरी सफल चंद्र मिशन के बाद से चंद्रमा की सहत पर अब तक कोई नहीं गया है और न ही हाल-फिलहाल किसी एजेंसी या देश की वहां जाने की योजना है। शोधकर्ताओं ने कहा, 'अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा चंद्रमा से लाई गई मिट्टी का हर कण बेहद कीमती है यह भविष्य में संसाधनों की कमी को पूरा कर सकता है।


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