चंद्रमा पर लैंडिंग से 22 किलोमीटर पहले ही इजरायल का बेरेशीट भी हो गया था क्रैश, जानिए कैसे हुई थी घटना
Chandrayaan 2ऐसा नहीं है कि भारत के चंद्रयान-2 के लैंडर का चंद्रमा पर उतरते समय संपर्क टूटा है इसी साल अप्रैल माह में इजरायल की ओर से भेजे गए बेरेशीट के साथ भी ऐसा ही हुआ था।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। Chandrayaan 2 भारत ही नहीं चंद्रमा पर लैंडिंग के वक्त इसी साल अप्रैल माह में इजरायल की ओर से भेजे गए बेरेशीट नामक छोटे रोबोटिक अंतरिक्षयान का भी संपर्क टूट गया था। जिस तरह से चंद्रयान-2 का लैंडिंग के समय कुछ किलोमीटर कंट्रोल रूम से संपर्क टूटा, ठीक उसी तरह से बेरेशीट का भी चंद्रमा की सतह के करीब पहुंचने से पहले ही कंट्रोल रूम से संपर्क टूट गया था। बाद में पता चला था कि बेरेशीट इंजन का कमांड गलत था।
इजराइल की ओर से भेजे गए बेरेशीट अंतरिक्षयान को स्पेस आईएल और इसराइल एरोस्पेस इंडस्ट्रीज (आईएआई) ने मिलकर बनाया था। इसे चन्द्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैन्डिंग कराने की कोशिश की गई थी लेकिन ये उस वक्त क्रैश हो गया था। इसका भी ग्राउंड स्टेशन से संपर्क टूट गया था। इजराइल के बेरेशीट और भारत के चंद्रयान-2 की तुलना इस आधार पर की जा सकती है कि दोनों का चन्द्रमा की सतह पर उतरते वक्त ही कंट्रोल रुम से संपर्क टूटा।
बैरेशीट 22 किलोमीटर दूरी पर हो गया था क्रैश, जबकि चंद्रयान-2 का टूटा संपर्क
भारत और इजराइल के मिशन में एक बड़ा फर्क दूरी का भी है। चंद्रयान-2 चंद्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर दूर था तब उसका संपर्क टूट गया था जबकि बेरेशीट चंद्रमा की सतह से 22 किलोमीटर दूर ही क्रैश हो गया था। एक खास बात ये भी है कि चंद्रयान-2 का सफर अभी खत्म नहीं हुआ है क्योंकि ऑर्बिटर अपना काम कर रहा है। ऑर्बिटर का एक साल का लंबा मून मिशन अभी शुरू ही हुआ है, इसने पिछले महीने ही चन्द्रमा की कक्षा में दस्तक दी थी।
दोनों देशों के पीएम ने दिया था हौसला
इस पर इजराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने कहा था कि अगर आप पहली बार में सफल नहीं होते हैं तो अगली बार कोशिश करनी चाहिए, जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसकी लैंडिंग देखने के लिए इसरो के सेंटर में मौजूद थे, ठीक उसी तरह से इजराइली पीएम नेतन्याहू भी इसकी लैन्डिंग देखने के लिए 11 अप्रैल की रात यहूद में स्पेस आईएल कंट्रोल सेंटर पर मौजूद थे। दोनों देशों के पीएम ने अपने-अपने देश के वैज्ञानिकों की हौसला अफजाई की थी।
दोनों थे कम लागत वाले मिशन
इजराइल का बेरेशीट और भारत का चंद्रयान-2 दोनों ही कम लागत वाले मिशन थे। बेरेशीट में 10 करोड़ डॉलर का खर्च आया था और चंद्रयान-2 में 15 करोड़ डॉलर का खर्च आया है। दोनों मिशन नासा और यूरोप की अंतरिक्ष एजेंसी के मिशन की तुलना में काफी सस्ते थे। नासा चन्द्रमा पर कम लागत का रोबोटिक मून मिशन 2021 में भेजने वाला है। भारत और इसराइल के कम लागत के मिशन का अंतिम समय में कंट्रोल रूम से संपर्क टूट जाने से नासा इससे सबक ले सकता है। नासा के अनुसार 1958 से अब तक कुल 109 मून मिशन रवाना किए गए लेकिन सफल 61 ही हुए, 46 मिशन को चंद्रमा की सतह पर उतारने की कोशिश की गई लेकिन पूरी तरह से सफलता 21 को ही मिली।
तीन देश करवा चुके सुरक्षित लैंडिंग
अब तक रूस, अमरीका और चीन चंद्रमा पर अपने-अपने अंतरिक्ष यान लैंड करवा चुके हैं। यदि अप्रैल में इजरायल ने लैंडिंग करा ली होती तो वो चौथा देश बन जाता। लेकिन इजरायल इस श्रेणी में आने से चूक गया। अब भारत को भी इसमें पहली बार में कामयाबी नहीं मिली है, हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि उनको लैंडर की थर्मल इमेज मिली है, संपर्क साधने की कोशिश जारी है। उम्मीद है जल्द ही संपर्क भी हो जाएगा।
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि विज्ञान में असफलता जैसी कोई चीज़ नहीं होती है क्योंकि हर प्रयोग से कुछ न कुछ सीख मिलती है। इस साल चन्द्रमा पर अंतरिक्षयान उतारने की तीन कोशिशें हुईं, जनवरी में चीन ने सफलता पूर्वक इसे अंजाम दिया था, इसी साल अप्रैल महीने में इजराइल ने बैरेशीट नाम के एक छोटा रोबोटिक अंतरिक्षयान चन्द्रमा पर भेजा था लेकिन वो लैंडिंग से पहले ही क्रैश हो गया था।
दक्षिणी ध्रुव पर कोई यान भेजने वाला भारत पहला देश
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कोई यान भेजने वाला भारत पहला देश है, अब तक चांद पर गए ज्यादातर मिशन इसकी भूमध्य रेखा के आस-पास ही उतरे हैं।
बेरेशीट ने कई बार लगाए थे पृथ्वी के चक्कर
22 फ़रवरी को बेरेशीट की अंतरिक्ष उड़ान शुरू होने से 4 अप्रैल को चांद के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में प्रवेश तक इसने कई बार पृथ्वी के चक्कर लगाए। पृथ्वी से चंद्रमा तक औसत दूरी क़रीब 3 लाख 80 हज़ार किलोमीटर की है लेकिन अपनी यात्रा के दौरान बेरेशीट ने इससे 15 गुना अधिक दूरी तय की। अब इसके पीछे वजह इसकी लागत को कम करने की थी, इसे सीधे-सीधे चांद पर भेजा जा सकता था लेकिन बेरेशीट को स्पेसएक्स के फाल्कन 9 रॉकेट से प्रक्षेपित करने के दौरान इसके साथ एक संचार उपग्रह और एक प्रायोगिक विमान भी भेजा गया था।