ईरान के परमाणु कार्यक्रम को शांतिपूर्ण बनाए रखने के लिए JCPOA ही सबसे अच्छा रास्ता
यूएनएससी में संयुक्त राष्ट्र की तरफ से ईरान परमाणु समझौते के बिखराव पर चिंता जाहिर की गई है। यूएन ने कहा है कि इसको लागू करना और मानना ही सही रास्ता है।
न्यूयॉर्क (संयुक्त राष्ट्र)। संयुक्त राष्ट्र ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर हुए समझौते साझा व्यापक कार्ययोजना (Joint Comprehensive Plan of Action)के भविष्य पर मंडराते संदेह पर चिंता जताई है। संयुक्त राष्ट्र राजनीतिक और शांति निर्माण मामलों की प्रभारी और अवर महासचिव रोजमैरी डिकार्लो ने कहा है कि मौजूदा चुनौतियों के बावजूद ईरान के परमाणु कार्यक्रम को शांतिपूर्ण बनाए रखने के लिए यही सबसे अच्छा रास्ता है। गौरतलब है कि वर्ष 2015 में ईरान ने परमाणु कार्यक्रम के मुद्दे पर सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्यों अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, चीन और जर्मनी के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते को सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव 2231 के तहत समर्थन दिया था।
डिकार्लो ने सुरक्षा परिषद में कहा कि वर्ष 2015 में हुआ ये समझौता वैश्विक परमाणु अप्रसार तंत्र और क्षेत्रीय व अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए काफी अहम है। लिहाजा इस पर छाए संदेह के बादल वास्तव में चिंता का विषय है। आपको बता दें कि ये समझौता अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में हुआ था। इसको उन्होंने एक बड़ी उपलब्धि बताया था। सदस्य देशों ने भी माना था कि इस समझौते के बाद विश्व के ऊपर छाया संकट काफी हद तक टल गया है और इससे समूचे क्षेत्र में तनाव को कम करने में मदद मिलेगी। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने वर्ष 2018 से इस समझौते से खुद को ये कहते हुए अलग कर लिया था कि ये समझौता सही नहीं था और इससे अमेरिका को कुछ हासिल नहीं होने वाला। इसके बाद अमेरिका की तरफ से ईरान पर कड़े प्रतिबंध तक लगा दिए गए थे। इसके बाद जुलाई 2019 में ईरान ने भी खुद को इस समझौते से अलग कर लिया था। हालांकि समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले अन्य सदस्यों ने दोनों ही देशों से इस डील को बरकरार रखने की अपील की थी।
अमेरिका द्वारा इस समझौते से हटने और ईरान के खिलाफ प्रतिबंधों को कड़ा करने के अलावा इस क्षेत्र में अमेरिकी जंगी जहाजी बेड़ों की वजह से तनाव भी काफी बढ़ गया था। ईरान ने समझौते से अलग होने के बाद दोबारा परमाणु कार्यक्रम शुरू करने और अधिक मात्रा में यूरेनियम के संवर्धन को लेकर भी एलान कर दिया था। डिकार्लो ने इस पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि अमेरिका के पीछे हटने के बाद ईरान ने भी यूरेनियम संवर्धन की मात्रा, भारी जल और कम संवर्धित यूरेनियम के भंडारण, परमाणु रीसर्च और विकास के लिए तयशुदा सीमाओं को पार किया है जिसका उल्लेख कार्ययोजना में किया गया था। आपको बता दें कि अन्तरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर नजर रखती है। उन्होंने ईरान से साझा कार्ययोजना को पूर्ण रूप से फिर लागू किए जाने और अन्य देशों द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं को दूर करने की अपील भी की। आपको यहां पर ये भी बता दें कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा ईरान पर हथियारों की खरीद पर लगी रोक की अवधि इस वर्ष 18 अक्टूबर को खत्म हो रही है।
डिकार्लो ने कहा कि तकनीकी तथ्यों और ईरान द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के आधार पर सचिवालय का विश्लेषण दर्शाता है कि वर्ष 2019 में सऊदी अरब में हुए एक हमले में इस्तेमाल होने वाली क्रूज मिसाइल, डेल्टा विंग ड्रोन या उनके पुर्जों ईरान के ही थे। उनके मुताबिक इसकी जानकारी यूएन ऑस्ट्रेलिया, इजराएल और सऊदी अरब से मिली थी। उन्होंने कहा कि JCPOA की मौजूदा चुनौतियों के बावजूद ईरान के परमाणु कार्यक्रम को शांतिपूर्ण बनाए रखने के लिए यही सर्वश्रेष्ठ रास्ता है। इसे पूर्ण रूप से लागू करने और प्रस्ताव 2231 का ईमानदारी से पालन करना क्षेत्रीय स्थिरता की बुनियादी जरूरत है।
सुरक्षा परिषद में इस पर चर्चा के दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री माइकल पोंपेयो ने ईरान को दुनिया की सबसे जघन्य आतंकवादी देश करार दिया। उन्होंने ये भी कहा कि अमेरिका सुरक्षा परिषद के साथ मिलकर उन प्रतिबन्धों को आगे बढ़ाना चाहता है जो परिषद ने वर्ष 2017 में प्रस्ताव 1747 के तहत लगाए थे। उन्होंने कहा कि इस बारे में कई देश वही चाहते हैं जो अमेरिका चाहता है। इन देशों की बातों को सुनकर फैसला लेना भी इस परिषद का दायित्व है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि हथियारों पर लगी रोक की अवधि को नहीं बढ़ाया जाता है तो ईरान फिर से रूसी लड़ाकू विमानों को खरीदने के अलावा अपने पनडुब्बी बेड़े को मजबूत करने, मध्य पूर्व में अपने सहयोगियों के साथ नई सैन्य तकनीक को साझा करने के लिए आजाद हो जाएगा, जिससे क्षेत्र की आर्थिक स्थिरता खतरे में पड़ जाएगी। अमेरिका का कहना था कि बीते 13 वर्षों में हथियारों पर लगी रोक का काफी अच्छा असर सामने आया है।
वहीं ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद जरीफ का कहना था कि यदि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के दबाव में आकर फैसला लेता है तो ये उसकी बड़ी विफलता होगी और इसकी वजह अमेरिका अंतरराष्ट्रीय संगठनों को डराने-धमकाने की मुहिम में कामयाब हो जाएगा। उन्होंने यूएन परमाणु ऊर्जा एजेंसी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि ईरान कार्ययोजना का अनुपालन करता आया है। इस दौरान ईरान ने इसकी सभी शर्तों को माना और ईमानदारी से अपने संकल्प पूरे किए। वहीं अमेरिका और उसके साथियों ने सचिवालय पर प्रस्ताव 2231 की एकपक्षीय व्याख्या करने के लिए दबाव बनाया है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय और सुरक्षा परिषद को अब अपना विकल्प चुनना है कि वह कानून के लिए सम्मान को बरकरार रखता है या फिर अमेरिका जैसे देशों के सामने सरेंडर करता है। उन्होंने ये भी कहा कि अमेरिका के गलत कामों के लिए जवाबदेही तय करने की जरूरत है।