ग्लोबल वार्मिंग की वजह से भारत खो रहा है अपनी पवन ऊर्जा क्षमता
अध्ययन में सामने आया कि पिछले 40 साल में पवन उर्जा की क्षमता में मानसून के समय में लगभग 13 प्रतिशत तक की गिरावट आई है।
बोस्टन [प्रेट्र]। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन सबसे बड़े वैश्विक संकटों में शुमार है। इसके कई दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं। अब इस कड़ी में एक और समस्या जुड़ गई है, जिसका संबंध भारत से है। एक नवीन अध्ययन में बताया गया है कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन के कारण हिंद महासागर से चलने वाले मानसून में फर्क आया है इसलिए भारत में पवन ऊर्जा की क्षमता में गिरावट आ रही है। बीते चार दशकों में यह गिरावट 13 फीसदी तक पाई गई है। एक अध्ययन में यह दावा किया गया है।
हार्वर्ड जॉन ए पॉलसन स्कूल ऑफ इंजीनिर्यंरग एंड एप्लाइड साइंसेज के शोधकर्ताओं ने बताया कि चीन और अमेरिका के बाद भारत ग्रीन हाउस गैसों का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक देश है। भारत ने अपनी पवन ऊर्जा क्षमता को पांच साल में दोगुना करने के लिए एक महात्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। गर्मियों में भारतीय मानसून को देखते हुए दक्षिणी और पश्चिमी भारत में अधिकांश पवन टरबाइन लगाई गई हैं। उप महाद्वीप की मौसम प्रणाली के लिहाज से इस मौसम में ही तेज हवाएं चलती हैं।
यह है वजह
साइंस एडवांसेज नामक जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक, ग्लोबल वार्मिंग के कारण भारतीय मानसून कमजोर हुआ है, जिससे पवन उर्जा में गिरावट आई है।
बढ़ रहा है संकट
एसईएएएस और हार्वर्ड चीन प्रोजेक्ट में पोस्टडॉक्टरल फेलो मेंगगाओ ने बताया कि भारत ने वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पवन उर्जा के क्षेत्र में भारी निवेश किया हुआ है। अब इन पर्याप्त निवेशों से होने वाला लाभ जलवायु परिवर्तन की चपेट में हैं।
इन राज्यों में सबसे ज्यादा निवेश
पश्चिमी भारत के राजस्थान और महाराष्ट्र में पवन ऊर्जा को लेकर सबसे ज्यादा निवेश किया गया है और यहां पर ही पवन ऊर्जा में सबसे ज्यादा गिरावट आई है, जबकि बाकी क्षेत्र जैसे पूर्वी भारत में खास कोई अंतर नहीं पड़ा।
गर्मियों में किया जा सकता है सबसे ज्यादा उपयोग
शोधकर्ता ने भारत के पिछले चार दशकों की पवन ऊर्जा क्षमता का अध्ययन किया और पाया कि भारत में गर्मियों में ही पवन ऊर्जा का सबसे ज्यादा उपयोग किया जा सकता है। भारत में एक साल में हवा से पैदा होने वाली ऊर्जा का लगभग 63 प्रतिशत उत्पादन गर्मी और बरसात के मौसम में होता है। अध्ययन में सामने आया कि पिछले 40 साल में पवन उर्जा की क्षमता में मानसून के समय में लगभग 13 प्रतिशत तक की गिरावट आई है।