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Increasing Temperatures: आपकी चैन की नींद को कम कर सकता है बढ़ता तापमान, वयस्कों व महिलाओं के लिए खतरा ज्‍यादा

वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि धरती का बढ़ता तापमान आपकी नींद पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। यह अध्‍ययन वन अर्थ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। वैज्ञानिकों की मानें तो इससे अनिद्रा की समस्या पैदा हो सकती है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sun, 22 May 2022 04:49 PM (IST)Updated: Sun, 22 May 2022 04:49 PM (IST)
Increasing Temperatures: आपकी चैन की नींद को कम कर सकता है बढ़ता तापमान, वयस्कों व महिलाओं के लिए खतरा ज्‍यादा
धरती का बढ़ता तापमान कई खतरों को जन्‍म दे सकता है। (File Photo)

लंदन, आइएएनएस। डेनमार्क के विज्ञानियों ने एक व्यापक शोध के बाद यह दावा किया है कि परिवेश का बढ़ता तापमान दुनियाभर के लोगों की नींद पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। वन अर्थ नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन निष्कर्ष में दावा किया गया है कि मानक के प्रतिकूल तापमान वर्ष 2099 तक प्रत्येक व्यक्ति की नींद में 50-58 घंटे की कमी ला सकता है। बढ़ता तापमान कमजोर आय वाले देशों के नागरिकों में अनिद्रा की बड़ी समस्या पैदा कर सकता है।

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खासकर, वयस्कों व महिलाओं के लिए इससे बड़ी समस्‍या पैदा हो सकती है। यूनिवर्सिटी आफ कोपेनहेगन से जुड़े अध्ययन के प्रथम लेखक केल्टन माइनर के अनुसार, 'हमारे नतीजे बताते हैं कि नींद मानव स्वास्थ्य व उत्पादकता के लिहाज से आवश्यक प्रक्रिया है। बढ़ता तापमान इसमें गिरावट ला सकता है।' यह अध्ययन पहली बार ऐसा साक्ष्य प्रस्तुत करता है कि सामान्य से अधिक तापमान मनुष्य की नींद में कमी ला सकता है।

अध्ययन में अंटार्कटिका को छोड़ सभी महाद्वीपों के 68 देशों के 47 हजार वयस्कों की 70 लाख रातों की नींद से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। वयस्कों की नींद का आकलन करने के लिए उन्हें एक्सेलेरोमीटर आधारित स्लीप-ट्रैकिंग रिस्टबैंड पहनाया गया था। अध्ययन बताता है कि बहुत गर्म रातों (30 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान) के दौरान नींद में औसतन 14 मिनट की कमी आती है। तापमान में वृद्धि सात घंटे से कम नींद के लिए भी जिम्मेदार है।

यही नहीं नेचर जर्नल में प्रकाशित एक अन्‍य अध्ययन के मुताबिक धरती पर बढ़ते तापमान के मद्देनजर शोधकर्ताओं ने एक नए खतरे के प्रति आगाह किया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती का तापमान बढ़ने से जंगली पशु-पक्षी अपना प्राकृतिक आवास बदलने को मजबूर होंगे। ये जानवर इंसानी आबादी वाले क्षेत्रों में पहुंचेंगे जिससे उन पशु-पक्षियों से वायरस के जंप कर इंसानों में पहुंचने का खतरा बढ़ जाएगा। यह स्थिति अगली महामारी की वजह बन सकती है।  


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