Climate Change: वैश्विक तापमान एक डिग्री सेल्सियस बढ़ने पर छह दिन पहले ही पिघल रही बर्फ
नदियों में जमने वाली बर्फ में गिरावट का पता चला है। शोधकर्ताओं ने अतीत में नदी के बर्फ के आवरण में परिवर्तन को भी देखा और भविष्य के लिए अनुमानित परिवर्तनों का माडल तैयार किया।
वाशिंगटन, प्रेट्र। जलवायु परिवर्तन की वजह से लगातार ग्लेशियरों के पिघलने की घटनाएं आती रहती हैं। शोधकर्ताओं ने ग्लेशियरों पर पड़ रहे प्रभाव और बर्फ पिघलने की दर आदि पर तमाम अध्ययन किए हैं। लेकिन, पहली बार नदियों में जमने वाली बर्फ पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन किया गया है।
शोधकर्ताओं ने बताया है कि वैश्विक तापमान में एक प्रतिशत की बढ़ोतरी होने से नदियों में प्रत्येक वर्ष जमने वाली बर्फ छह दिन पहले ही पिघल जाएगी। इसके पर्यावरणीय प्रभाव के साथ ही आर्थिक प्रभाव भी देखने को मिलेंगे। नेचर जर्नल में इस अध्ययन को प्रकाशित किया गया है।
40 हजार तस्वीरों का किया अध्ययन
अमेरिका की नार्थ कैरोलिना यूनिवर्सिटी के एक पोस्टडॉक्टरल स्कॉलर जियाओ यांग ने कहा, 'हमने दुनियाभर में मौसमी जमने वाली नदियों को मापने के लिए 34 वर्षो तक सेटेलाइट द्वारा जुटाई गई करीब 40,000 तस्वीरों का अध्ययन किया। इस दौरान पाया गया कि सभी नदियों का 56 प्रतिशत भाग सर्दियों में जम जाता है।'
उन्होंने कहा कि नदियों में जमने वाली बर्फ में गिरावट का पता चला है। शोधकर्ताओं ने अतीत में नदी के बर्फ के आवरण में परिवर्तन को भी देखा और भविष्य के लिए अनुमानित परिवर्तनों का माडल तैयार किया। शोधकर्ताओं ने 1984-1994 और 2008-2018 में नदियों में जमी बर्फ की तुलना करने पर पाया कि बर्फ जमने में वैश्विक गिरावट 0.3 प्रतिशत से 4.3 प्रतिशत हो गई।
सबसे बड़ी गिरावट तिब्बती पठार, पूर्वी यूरोप और अलास्का में पाई गई थी। शोधकर्ताओं ने पाया कि नदी में बर्फ जमने में गिरावट ग्लोबल वार्मिग के साथ जारी रहने की संभावना है।
बसंत के मौसम में 12 से 68 प्रतिशत तक की गिरावट
शोधकर्ताओं ने भविष्य के मॉडल का उपयोग करके 2009-2029 और 2080-2100 के बीच नदियों की बर्फ में गिरावट की तुलना की है। परिणामों से पता चलता है कि उत्तरी गोलार्ध में सर्दियों के महीनों में 9-15 प्रतिशत की गिरावट और वसंत में 12-68 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। रॉकी पर्वत, उत्तर पूर्वी अमेरिका, पूर्वी यूरोप और तिब्बती पठार में सबसे ज्यादा गिरावट की आशंका है। शोधकर्ताओं ने कहा कि इस अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन से हमारा ग्रह किस तरह बदल जाएगा।