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गरीबों पर भारी कोरोना महामारी, डेढ़ अरब लोगों की रोजी-रोटी पर संकट; चाहिए होंगे 90 अरब डॉलर

कोरोना संकट का सबसे बुरा असर दुनियाभर के कामगारों पर पड़ रहा है। आईएलओ के मुताबिक करीब डेढ़ अरब लोगों की रोजी-रोटी पर संकट है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 01 May 2020 11:06 AM (IST)Updated: Sun, 03 May 2020 05:29 PM (IST)
गरीबों पर भारी कोरोना महामारी, डेढ़ अरब लोगों की रोजी-रोटी पर संकट; चाहिए होंगे 90 अरब डॉलर
गरीबों पर भारी कोरोना महामारी, डेढ़ अरब लोगों की रोजी-रोटी पर संकट; चाहिए होंगे 90 अरब डॉलर

नई दिल्‍ली। कोरोना वायरस ने जितनी बुरी तरह से दुनिया को अपने शिकंजे में जकड़ा है उससे जल्‍द छुटकारा पाना कठिन लगता है। वहीं दूसरी तरफ इसकी वजह से हुए लॉकडाउन ने देशों की आर्थिक कमर तोड़ दी है। इसमें सबसे अधिक नुकसान उन गरीब लोगों को हो रहा है जिनके दिन की शुरुआत ही रोजी-रोटी की तलाश से होती थी। इस संबंध में सामने आई संयुक्‍त राष्‍ट्र, अंतरराष्‍ट्रीय श्रम संगठन और क्राइसिस थ्रू ए माइग्रेशन लेंस की रिपोर्ट में इस बात का साफतौर पर जिक्र किया गया है।

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अंतरराष्‍ट्रीय श्रम संगठन की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि लॉकडाउन की वजह से पूरी दुनिया में रिटेल और मैन्‍युफैक्‍चरिंग से जुड़े कई कारोबार बंद होने की कगार पर खड़े हैं। इसकी वजह से दुनियाभर में 1.6 अरब श्रमिकों कीरोजी-रोटी पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। अंतरराष्‍ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक पूरी दुनिया में करीब 330 करोड़ कामगार हैं जो इस तरह के छोटे बड़े उद्यमों से जुड़े हुए हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक वहीं, विश्व बैंक ने 2020 में प्रवासी मजदूरों की संख्या में बड़ी गिरावट की आशंका जताई है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक अकेले अमेरिका में ही वर्ष की दूसरी तिमाही में कामकाजी घंटों में करीब 12.4% की गिरावट होगी, जो 30.5 करोड़ पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर है। जिन देशों में कार्यस्थल बंद कर दिए गए हैं वहां पर पिछले दो हफ्तों में श्रमिकों का अनुपात 68 से 80 फीसद तक कम हो गया है। यूरोप और मध्‍य एशिया की बात करें तो यहां पर कामकाजी घंटों में करीब 11.8 फीसद की गिरावट आई है।

इस पर चिंता जताते हुए आईएलओ के महानिदेशक गाय राइडर ने कहा है कि कोरोना से हुए लॉकडाउन ने श्रमिकों की चिंताएं बढ़ा दी है। पूरी दुनिया में श्रमिकों के लिए आय का स्रोत लगभग खत्‍म हो गया है। इतना ही नहीं ऐसे लोगों के पास न तो अपनी बचत ही है और न ही कर्ज लेने की उपलब्धता है। ऐसे में यदि हमने मदद नहीं की तो ये बर्बाद हो जाएंगे। क्राइसिस थ्रू ए माइग्रेशन लेंस रिपोर्ट के अनुसार आंतरिक प्रवास की तादाद अंतरराष्ट्रीय प्रवास के मुकाबले करीब 2.50 गुना है। ये रिपोर्ट बताती है कि देश से विदेश जाने वाले कम-कुशल श्रमिकों की संख्या आठ प्रतिशत बढ़कर 2019 में 3,68,048 हो गई थी। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के मुताबिक लॉकडाउन के बाद देश में बेरोजगारी दर 23.4 फीसदी हो गई है।

कोरोना संकट में गरीबों की समस्‍याओं को लेकर एक इंटरनेशनल रेस्क्यू कमेटी की भी रिपोर्ट काफी चौंकाने वाली है। इसके मुताबिक गरीब देशों के लोग कोविड-19 के संक्रमण से अधिक संक्रमित हो सकते हैं। ब्रिटेन के पूर्व विदेश सचिव डेविड मिलिबैंड की अध्यक्षता वाली इस कमेटी ने कहा है कि दुनिया के 34 सर्वाधिक गरीब देशों पर कोरोना का विनाशकारी प्रभाव होगा। रिपोर्ट के मुताबिक, इन देशों में करीब एक अरब लोग संक्रमित हो सकते हैं जबकि 30 लाख की मौत हो सकती है। इनमें भारत के सात पड़ोसी देशों में से तीन यानी पाक, बांग्लादेश और म्यांमार का नाम शामिल है। मिलिबैंड ने साथ ही कहा, कोरोना पर काफी कम अनुमान लगाए गए हैं जबकि वास्तविक जनहानि कहीं अधिक हो सकती है।

वहीं संयुक्‍त राष्‍ट्र के मानवीय-कार्य प्रभाग के प्रमुख मार्क लोकॉक ने विशेषज्ञों के साथ हुई वीडियो कॉन्फ्रेंस में कहा है दुनिया के 70 करोड़ सबसे गरीब लोगों का कोरोना वायरस महामारी संकट से बचाने के लिए 90 अरब डॉलर के पैकेज की जरूरत होगी। दुनिया के 20 सबसे अमीर देशों ने वैश्विक अर्थव्यस्था को बचाने के लिए जिस आठ अरब डॉलर के राहत पैकेज की घोषणा की है, यह राशि उसका करीब एक प्रतिशत है। विशेषज्ञों ने माना कि कोरोना दुनिया के सबसे गरीब क्षेत्रों में अभी चरम पर नहीं है। लोकॉक ने कहा कि वैश्विक आबादी का करीब 10 प्रतिशत यानी 70 करोड़ लोग उन 30 से 40 देशों में रहते हैं जिन्हें पहले से मानवीय मदद मिल रही है।


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