डोनाल्ड ट्रंप और किम जोंग उन करेंगे मुलाकात, जान लीजिए- ये पांच बिंदु हैं अहम
डोनाल्ड ट्रंप और किम जोंग उन की मुलाकात से क्या होगा, इसके बारे में कोई भविष्यवाणी करना मुश्किल है। इस बातचीत को लेकर पांच ऐसे बिंदु हैं, जिन्हें समझने की जरूरत है।
नई दिल्ली, [नेशनल डेस्क]। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अप्रत्याशित रूप से उत्तर कोरियाई तानाशाह किम जोंग उन से सीधे बातचीत के लिए राजी हो गए हैं। वार्ता का प्रस्ताव उत्तर कोरिया की ओर से ही था, लेकिन इसकी संभावना बेहद कम थी कि अमेरिका इसके लिए राजी होगा। अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन ने कहा है कि उत्तर कोरियाई तानाशाह से बातचीत का फैसला ट्रंप ने खुद लिया है। यह बातचीत मई में होनी है और पूरी दुनिया की इस पर निगाहें लगी हुई हैं।
डोनाल्ड ट्रंप और किम जोंग उन की मुलाकात से क्या होगा, इसके बारे में कोई भविष्यवाणी करना मुश्किल है, लेकिन इस घटनाक्रम से कुछ न कुछ असर तो पड़ेगा ही। इस बातचीत को लेकर पांच ऐसे बिंदु हैं, जिन्हें समझने की जरूरत है।
1. प्रतीकात्मक महत्व
उत्तर कोरिया इस घटनाक्रम से अपनी जीत का अहसास कर सकता है। उसके लिए उच्च स्तरीय बातचीत ही एक बड़ी सफलता है, क्योंकि उसकी छवि अलग-थलग और नाकाम देश की बन गई है। किम की कोशिश अपने देश को एक असफल और बुरे देश की छवि से बाहर निकालकर एक परमाणु सपन्न देश के रूप में स्थापित करने की है। अगर ट्रंप उनसे बातचीत करते हैं तो किम की अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यकता भी बढ़ेगी और घरेलू स्तर पर भी वह मजबूत होंगे।
2. सीधे शीर्ष स्तर पर
अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का यह दस्तूर है कि सर्वोच्च स्तर की बातचीत सबसे अंत में होती है, लेकिन इस मामले में एकदम उलटा होता हुआ नजर आ रहा है। इससे निचले स्तर के प्रशासन की विश्वसनीयता प्रभावित हो सकती है। एक तथ्य यह भी है कि जब सीधे उच्च स्तर पर बातचीत होती है तो लेन-देन, एक कदम आगे-दो कदम पीछे वाली तमाम संभावनाओं की गुंजाइश कम हो जाती है।
3. बातचीत के आधार पर असहमति
दक्षिण कोरियाई अधिकारियों का कहना है कि किम जोंग नाभिकीय हथियार खत्म करने को लेकर बातचीत के लिए राजी हो गए हैं। संभवत: यही समझकर ट्रंप ने बातचीत की पेशकश स्वीकार की है, लेकिन कुछ विश्लेषकों का विचार है कि नाभिकीय हथियार त्यागने को लेकर अमेरिकी और उत्तर कोरिया की सोच में खासा फर्क है। अमेरिका समझता है कि डि-न्यूक्लिराइजेशन का मतलब उत्तर कोरिया द्वारा अपने सभी नाभिकीय हथियार नष्ट कर देना है, जबकि उत्तर कोरिया की सोच यह है कि इसका मतलब दोनों पक्षों का धीरे-धीरे अपने हथियार खत्म करना है। सवाल यह है कि क्या अमेरिका इसके लिए राजी होगा?
4. युद्ध का खतरा कम हो गया है
बातचीत के लिए तैयारी मात्र से वे आशंकाएं एक हद तक कम हो गई हैं, जिनके तहत यह कहा जा रहा था कि कोरिया प्रायद्वीप में युद्ध भड़क सकता है। सबसे बड़ा खतरा यही था कि या तो किसी दुर्घटना अथवा रणनीतिक गलती से गैरइरादतन युद्ध भड़क सकता है या फिर अमेरिका एकतरफा कार्रवाई कर सकता है। अब ये दोनों संभावनाएं बहुत कम हो गई हैं।
5. अनिश्चितता की आशंका
आम तौर पर जब दो देशों के बीच उच्च स्तरीय बातचीत होती है तो उसके पहले आपसी संदेशों का आदान-प्रदान होता है। इससे वे एक-दूसरे की आकांक्षाओं को समझ पाते हैं। अमेरिका और उत्तर कोरिया के मामले में ऐसा नहीं हुआ है। ट्रंप उत्तर कोरिया की सबसे बड़ी मांग यानी बातचीत की पेशकश पर तो राजी हो गए हैं, लेकिन उत्तर कोरिया ने अब तक अपनी ओर से वार्ता को सफल बनाने के लिए कोई वादा नहीं किया है।