मछली के म्यूकस से बनेंगीं नई एंटीबायोटिक्स, रोगाणुओं से लड़ने में मिलेगी मदद
शोधकर्ताओं को अनुमान है कि इस अध्ययन के बाद मनुष्यों के लिए नए एंटीबायोटिक्स बनाने में मदद मिलेगी।
वाशिंगटन, प्रेट्र। वैज्ञानिकों ने मछली के म्यूकस (जेली युक्त झिल्ली जो नई जन्मी मछलियों के चारो ओर रहती हैं) में एक बैक्टीरिया की पहचान की है जो एंटीबायोटिक की तरह व्यवहार करता है। यह आम तौर पर ज्ञात रोगजनक जीवों से रक्षा करता है साथ ही यह रोगाणुओं से होने वाले खतरनाक एमआरएसए से भी बचाता है।
अमेरिका में ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी की सैंड्रा लोसेगन ने कहा कि वर्तमान में मल्टीड्रगरेसिसटेंट रोगजनकों के खिलाफ एंटीबायोटिक कम प्रभावशाली हो गए हैं। इसलिए शोधकर्ता कई जगहों पर नए एंटीबायोटिक की खोज कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनके लिए समुद्र में कोई भी सूक्ष्म जीव जो नए यौगिक प्रदान कर सकता है, वह खोज के लायक है। सैंड्रा ने बताया कि मछलियों के म्यूकस में एंटीबायोटिक का पाया जाना उनके लिए सोने की खान जैसा है। यह चिपचिपा पदार्थ मछली को उसके वातावरण में बैक्टीरिया, कवक और वायरस से सुरक्षा करता है।
लोसेगन की लेबोरेटरी की ग्रेजुएट की स्टूडेंट मौली ऑस्टिन ने बताया कि फिश म्यूकस वास्तव में बहुत दिलचस्प है, क्योंकि मछली जिस वातावरण में रहती है वह बहुत जटिल है और वह हमेशा ही रोगजनक वायरसों के संपर्क में रहती है। उन्होंने कहा कि यह पता लगाना वाकई में दिलचस्प होगा कि म्यूकस में कुछ भी जो मछलियों की रक्षा करता है क्या वह इंसानों की भी रक्षा करेगा?
वैज्ञानिकों ने नई जन्मी मछली के म्यूकस का अध्ययन किया, क्योंकि उस मछली का प्रतिरक्षा तंत्र बहुत कमजोर होता है और यह म्यूकस ही उसकी रक्षा करता है। यह म्यूकस किसी बड़ी मछली के प्रतिरक्षा तंत्र से ज्यादा शक्तिशाली होता है। ऑस्टिन अब मछली के म्यूकस से प्राप्त स्यूडोमोनास एरुजिनोसा पर अध्ययन कर रही हैं। यह एक ग्राम निगेटिव बैक्टीरिया है। इसकी कुछ जातियां रोग का कारण भी होती हैं। शोधकर्ताओं को अनुमान है कि इस अध्ययन के बाद मनुष्यों के लिए नए एंटीबायोटिक्स बनाने में मदद मिलेगी।