समुद्र के बढ़ते तापमान के कारण आइसलैंड से दूर जा रहीं मछलियां, मत्स्य कारोबार प्रभावित
तापमान बढ़ने से आइसलैंड के समुद्र में बड़ी तादाद में पाई जाने वाली केपलिन प्रजाति की मछलियां प्रभावित हुई हैं। ठंडे पानी में पाई जाने वाली यह मछली इस क्षेत्र से एक तरह से विलुप्त होती जा रही है।
रिक्जविक, एजेंसी। जलवायु परिवर्तन के कारण ठंडे मौसम वाले आइसलैंड के समुद्री क्षेत्र का तापमान बढ़ता जा रहा है। नतीजन मछलियों की कई प्रजातियां इस द्वीपीय देश से दूर जा रही हैं। इसका यहां के मत्स्य कारोबार पर बड़ा असर देखने को मिल रहा है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, आइसलैंड चारों ओर से समुद्र से घिरा है। जलवायु परिवर्तन के कारण इसके समुद्र का पानी गर्म होता जा रहा है। पिछले 20 साल के दौरान इस क्षेत्र के समुद्र के तापमान में 1.8 से 3.6 डिग्री फारेनहाइट तक की बढ़ोतरी हुई है। आइसलैंड यूनिवर्सिटी में एंथ्रोपोलॉजी के प्रोफेसर गिसली पल्सन ने कहा, 'मछलियों ने हमें संपन्न बनाया लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण पानी गर्म होने से कुछ मछलियां ठंडे पानी की तलाश में दूसरी ओर रुख कर रही हैं।' एक अन्य शोधकर्ता केरी थोर जॉनसन ने कहा, 'मछलियां उत्तर की ओर जा रही हैं, जहां समुद्र का पानी ठंडा है।' मछली पकड़ने की एक नौका के कैप्टन पीटर बिर्गिसन ने बताया, 'ऐसा पहली बार हुआ कि पिछली सर्दी में एक भी मछली नहीं पकड़ी गई, क्योंकि वे यहां से जा चुकी हैं।'
केपलिन मछली ज्यादा प्रभावित
तापमान बढ़ने से आइसलैंड के समुद्र में बड़ी तादाद में पाई जाने वाली केपलिन प्रजाति की मछलियां प्रभावित हुई हैं। ठंडे पानी में पाई जाने वाली यह मछली इस क्षेत्र से एक तरह से विलुप्त होती जा रही है। इसी वजह से इस मछली के पकड़ने पर रोक लगा दी गई है। यह आइसलैंड से दूसरी सबसे ज्यादा निर्यात होने वाली मछली है। ब्लू ह्वाइटिंग मछली भी ग्रीनलैंड के समीप के समुद्र की ओर जा रही है।
2017 में रहा एक हजार करोड़ का कारोबार
यूरोपीय देश आइसलैंड उत्तरी अटलांटिक में स्थित है। इसे 1944 में डेनमार्क से आजादी मिली थी। साढ़े तीन लाख से ज्यादा आबादी वाले इस द्वीपीय देश की उन्नति में मत्स्य कारोबार का बड़ा योगदान है। लेकिन इस ठंडे क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन का असर पड़ रहा है। 2017 में आइसलैंड के सबसे बड़े तटीय इलाके लैंड्सबैंकइन से 14.3 करोड़ डॉलर (करीब एक हजार करोड़ रुपये) की केपलिन मछली बेची गई थी।