Sudden Infant Death Syndrome : ऐसी बीमारी जिसमें सोते समय ही बच्चे की हो जाती है मौत, अब वैज्ञानिकों ने पता लगाई वजह
सडन इंफैंट डेथ सिंड्रोम (sudden infant death syndrome SIDS) एक ऐसी बीमारी है जिसमें स्वस्थ दिखने वाले बच्चे की एक वर्ष के भीतर सोते समय ही अचानक मौत हो जाती है। अब वैज्ञानकों ने इसकी वजह का पता लगाया है।
सिडनी, आइएएनएस। आस्ट्रेलियाई शोधकर्ताओं ने एक अहम शोध में उस बायोमार्कर की पहचान की है, जो बच्चों के जीवित रहते ही उनमें सडन इंफैंट डेथ सिंड्रोम (sudden infant death syndrome, SIDS) के जोखिम का पता लगा सकता है। एसआइडीएस एक ऐसी बीमारी है, जिसमें स्वस्थ दिखने वाले बच्चे की एक वर्ष के भीतर सोते समय मौत हो जाती है। हालांकि एसआइडीएस की घटनाएं हाल के वर्षों में जनजागरूकता के कारण आधी हुई हैं।
जागरूकता से रुक सकती है मौतें
इस जागरूकता अभियान के दौरान नींद की प्रवणता, मा के धूमपान करने तथा ओवरहिटिंग जैसे कारकों के बारे में लोगों को बताया गया है। इसके बावजूद एसआइडीएस का आंकड़ा पश्चिमी देशों में अभी भी जन्म के बाद बच्चों की होने वाली मौत में 50 प्रतिशत है। शोधकर्ताओं की एक टीम ने चिल्ड्रेन्स हास्पिटल, वेस्टमीड (सीएचडब्ल्यू) में ब्यूटिरिलकोलिनेस्टरेज (बीसीएचई) नामक एक बायोकेमिकल मार्कर की पहचान की है, जो बच्चों की मौत को रोकने में मददगार हो सकता है।
ऐसे किया अध्ययन
द लैंसेट ईबायोमेडिसिन जर्नल में प्रकाशित इस शोध में टीम ने 722 ड्राइड ब्लड स्पाट्स (डीबीएस) में बीसीएचई की गतिविधियों का विश्लेषण किया है। यह नमूना नवजात शिशु के स्क्रीनिंग प्रोग्राम के तहत लिए गए थे। बीसीएचई का आकलन एसआइडीएस तथा अन्य कारणों से मरने वाले बच्चों से नमूने लेकर उसी तारीख को जन्मे तथा समान लिंग के 10-10 बच्चों के नमूने के आधार पर किया गया।
इसलिए जग नहीं पाते बच्चे
अध्ययन की लेखिका कार्मेल हैरिंग्टन ने बताया कि विश्लेषण में पाया गया कि जिन बच्चों की मौत एसआइडीएस से हुई, उनमें बीसीएचई का स्तर कंट्रोल ग्रुप या अन्य कारणों से मरने वाले या जीवित बच्चों की तुलना में काफी कम था। उनके खुद के बच्चे की मौत 29 साल पहले एसआइडीएस से हो गई थी। बीसीएचई मस्तिष्क की उत्तेजना में प्रमुख भूमिका निभाता है और शोधकर्ताओं का मानना है कि इसकी कमी यह दर्शाता है कि इस उत्तेजना की कमी से बच्चा बाहरी वातावरण से प्रतिक्रिया कर जागने में सक्षम नहीं हो पाता है।
बाहरी कारकों से मुकाबले की ताकत होती है कम
उनका कहना है कि बच्चों में एक बहुत ही शक्तिशाली मैकेनिज्म होता है, जिससे हम जान पाते हैं कि वे कब खुश नहीं हैं। सामान्य तौर पर बच्चे जीवन घातक स्थितियों से मुकाबला करते हैं। जैसे कि वे जब पेट के बल सोते हैं तो उन्हें सांस लेने में तकलीफ होती है और वे रोते हैं। कुछ शोधों में पता चला है कि कुछ बच्चों में बाहरी कारकों से मुकाबले की यह शक्ति नहीं होती है।
बीसीएचई की भूमिका महत्वपूर्ण
लंबे समय तक यह माना जाता रहा कि ऐसी स्थितियां हो सकती हैं लेकिन हमें यह नहीं मालूम कि किस कारण से बच्चों में उस अपेक्षित उत्तेजना की कमी होती है। अब हमें पता चला है कि इसमें बीसीएचई की भूमिका होती है। इसलिए अब हम इसे बदलने की कोशिश कर सकते हैं और उसका परिणाम यह हो सकता है कि एसआइडीएस बीते दिनों की बात हो जाएगी।
जान बचाने में मददगार हो सकता है अध्ययन
हैरिंग्टन ने अपने बच्चे को खोने के बाद अपनी जिंदगी एसआइडीएस की काट ढूंढने में लगा दी। उन्होंने कहा कि शोध का यह परिणाम न सिर्फ भविष्य की उम्मीद जगाती है बल्कि भूतकाल से छूटकारा भी दिला सकता है। इस शोध ने अब उनके लिए संभावनाओं का द्वार खोला है, जिनके बच्चे एसआइडीएस से पीडि़त हो सकते हैं। वैसे परिवारों के लिए यह शोध एक उम्मीद की किरण हो सकती है और वे इस अहसास के साथ जी सकते हैं कि उनके बच्चे के साथ जो कुछ हुआ उसमें उनकी गलती नहीं थी।