कोविड-19 के खात्मे को बनने वाली वैक्सीन के बारे में क्या सोचते हैं विशेषज्ञ, आप भी जान लीजिए
कोविड-19 के खात्मे को बनने वाली वैक्सीन कारगर होगी इसकी कोई गारंटी नहीं पूरी दुनिया के वैज्ञानिक कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने में जुटे हैं।
वाशिंगटन (एपी) । पूरी दुनिया में कोविड-19 की वैक्सीन बनाने को लेकर वैज्ञानिक पूरी कोशिशों में जुटे हुए हैं। वहीं इनके साथ वो लोग भी हैं जो स्वेच्छा से क्लीनिकल ट्रायल के लिए आगे आए हैं। इन सभी की केवल एक ही इच्छा है कि ये वैक्सीन सफलतापूर्वक दुनिया के सामने आए और इस जानलेवा वायरस का अंत जल्द से जल्द हो। लेकिन सभी के जहन में एक सवाल भी है कि क्या ये असर करेगी। ये ऐसा सवाल है जिसको लेकर अब तक जो जवाब सामने आए हैं वो अलग-अलग हैं। उदाहरण के लिए अब तक जो शोध हुए हैं उनमें इस वायरस के तीन प्रकार बताए गए हैं। इनमें ये भी कहा गया है कि कोई एक प्रकार की वैक्सीन तीनों प्रकार के कोरोना वायरस पर कारगर साबित नहीं होगी। इसके लिए हर प्रकार के लिए अलग-अलग वैक्सीन बनानी होगी। वहीं एक अन्य शोध में यह बात सामने आई है कि ये वायरस अपने प्रकार बदल रहा है। इसमें कहा गया है कि यदि इसमें ऐसे ही बदलाव जारी रहा तो वैज्ञानिकों के लिए इसका जवाब तलाश करना मुश्किल साबित होगा।
समाचार एजेंसी एपी से बात करते हुए ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी में वैक्सीन बनाने में जुटे डॉक्टर एंड्रयू पोलार्ड ने कहा कि ये कोई प्रतियोगिता नहीं है कि जिसमें ये देखा जाएगा कि कौन बाजी मारता है इसके बाद भी इसमें कई प्रतियोगी जरूर हैं, लेकिन हर कोई कोरोना महामारी के खिलाफ इस जंग को जीतना चाहता है। इसके बाद भी इसको लेकर कुछ नहीं कहा जा सकता है कि जो वैक्सीन बनकर सामने आएगी वो सही तरह से काम करेगी भी या नहीं। वैज्ञानिकों के मुताबिक ये अब तक हुए शोधों की एक कड़वी सच्चाई भी है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि अमेरिका ने इस वायरस की वैक्सीन बनाने के लिए मेनहैटन प्रोजेक्ट शुरू किया है
अमेरिका के टॉप वैज्ञानिक डॉक्टर एंथनी फॉसी जो इस तरह के मामलों में वरिष्ठ विशेषज्ञ हैं मानते हैं कि हमें अपने गोल को साधने के लिए कई तरह की वैक्सीन बनानी होंगी। आपको बता दें कि चीन, अमेरिका समेत दुनिया के पांच देशों में कोरोना वायरस की वैक्सीन को लेकर ह्यूमन ट्रायल चल रहा है। इसको वैज्ञानिक अपनी भाषा में क्लीनिकल ट्रायल कहते हैं। फॉसी का कहना है कि एक अलग तरह की वैक्सीन ही में इस महामारी से बचा सकेगी। यदि इस तरह की वैक्सीन बनाने में सफलता मिल जाती है तो इसकी अगली चुनौती इसको व्यापक पैमाने पर बनाना और इसको डिस्ट्रीब्यूट करना होगा। इसमें भी प्राथमिकता तय करनी होगी। जहां पर इसके अधिक मामले हैं और जहां तेजी से मामले सामने आ रहे हैं उन जगहों पर इसको जल्द भेजना होगा। इतना ही नहीं जिन लोगों को भी वैक्सीन दी जाएगी उनका डाटा और उनका पूरा ब्यौरा रखने के साथ ये भी तय करना होगा कि वे इसको लेकर लापरवाह न हो जाए।
व्हाइट हाउस में कोरोना वायरस टास्क फोर्स के कॉर्डिनेटर डॉक्टर डेबोराह ब्रिक्स का कहन है कि पूरी कोशिश की जा रही है कि वैक्सीन बनने के लिए टाइम फ्रेम को किसी सूरत से कम किया जा सके। फॉक्स न्यूज से बात करते हुए उन्होंने ये बात उस सवाल के जवाब में कही जिसमें इस वैक्सीन के जनवरी तक तैयार होने की जानकारी मांगी गई थी। उन्होंने कहा कि ये काफी हद तक मुमकिन है यदि हम कोशिश करें तो।
वैक्सीन की तैयारियों को लेकर डॉक्टर फॉसी का कहन है कि नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हैल्थ अपनी वैक्सीन बनाने में जुटा है जिसका अब ट्रायल शुरू हो रहा है। आपको बता दें कि फॉसी पहले ही इस बात को कह चुके हैं कि वैक्सीन को लोगों के सामने आने में 12-18 माह तक लग सकते हैं। लेकिन यदि जनवरी तक ये हमारे सामने आ गई तो ये बेहतर होगा क्योंकि तब तक इसको एक वर्ष हो जाएगा। उनके मुताबिक जर्मनी, चीन और अमेरिका में करीब 8 से 11 वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है। इसके अलावा ब्रिटेन में भी ट्रायल चल रहा है। उनके मुताबिक मई से जुलाई के बीच कुछ दूसरी वैक्सीन का भी ट्रायल कुछ देश शुरू कर देंगे।
इनके अलावा यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिलवेनिया में डीएनए बेस्ड वैक्सीन को बनाने में लगे डॉक्टर एंथनी कंपिसी का कहना है कि वैक्सीन के ट्रायल को लेकर सामने आने वालेवोलेंटियर्स की कोई कमी नहीं है। उनका भी मानना है कि एक से अधिक प्रकार की वैक्सीन बन जाने पर सफलता के चांसेज ज्यादा होंगे। उनका कहना है कि ऐसे में यदि एक वैक्सीन विफल हो गई तो मुमकिन है कि दूसरे से अच्छे परिणाम सामने आ जाए। लेकिन जहां तक कोरोना वायरस की बात है तो इसका अब तक कोई ब्लूप्रिंट नहीं है।