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Coronavirus in US: भारतीय-अमेरिकी दंपती ने विकासशील देशों के लिए बनाया किफायती वेंटिलेटर

एक भारतीय-अमेरिकी दंपती ने एक किफायती पोर्टेबल इमरजेंसी वेंटिलेटर विकसित किया है। यह भारत और विकासशील दुनिया में सस्ती दर पर उपलब्ध होगा।

By TaniskEdited By: Published: Tue, 26 May 2020 09:58 AM (IST)Updated: Tue, 26 May 2020 09:58 AM (IST)
Coronavirus in US: भारतीय-अमेरिकी दंपती ने विकासशील देशों के लिए बनाया किफायती वेंटिलेटर
Coronavirus in US: भारतीय-अमेरिकी दंपती ने विकासशील देशों के लिए बनाया किफायती वेंटिलेटर

वाशिंगटन, पीटीआइ। एक भारतीय-अमेरिकी दंपती ने एक किफायती पोर्टेबल इमरजेंसी वेंटिलेटर विकसित किया है। जल्द ही इस वेंटिलेटर का उत्पादन शुरू होगा और भारत और विकासशील दुनिया में सस्ती दर पर उपलब्ध होगा। इससे डॉक्टरों को कोरोना वायरस के मरीजों के इलाज में काफी मदद मिलेगी। 

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जॉर्ज डब्ल्यू वुड्रूफ़ स्कूल ऑफ़ मैकेनिकल इंजीनियरिंग में प्रोफेसर और एसोसिएट देवांश रंजन और अटलांटा में प्रैक्टिस कर रहीं पारिवारिक चिकित्सक उनकी पत्नी कुमुद रंजन ने इसे बनाया है। उन्होंने कोरोना वायरस महामारी के दौरान पर्याप्त वेंटिलेटर की कमी के कारण केवल तीन हफ्ते में इसे विकसित किया।

निर्माण में 100 यूएस डॉलर से भी कम खर्चा

प्रोफेसर रंजन ने समाचार एजेंसी पीटीआइ को बताया, अगर आप इसका निर्माण अधिक संख्या में करते हैं, तो इसे बनाने में 100 यूएस डॉलर से भी कम खर्चा लगेगा। उन्होंने कहा कि अमेरिका में इस प्रकार का एक वेंटिलेटर बनाने में औसतन, 10,000 यूएस डालर का खर्च आता है। हालांकि, रंजन ने स्पष्ट किया कि यह आईसीयू वेंटिलेटर नहीं है, जिसे बनना काफी महंगा और जटिल है।

वेंटिलेटर सांस संबंधी बीमारी से निपटने के लिए विकसित किया गया

रंजन ने बताया कि यह 'ओपन-एयरवेंटजीटी' वेंटिलेटर सांस संबंधी बीमारी से निपटने के लिए विकसित किया गया है, जो कोरोना के मरीजों में आम लक्षण है, जिससे उनके फेफड़े अकड़ जाते हैं और उनको सांस लेने के लिए वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है।

प्रोजेक्ट का लक्ष्य कम कीमत में अस्थायी वेंटिलेटर बनाना

इस वेंटिलेटर में इलेक्ट्रॉनिक सेंसर और कंप्यूटर कंट्रोल का इस्तेमाल किया गया है। यह सांस चलने की गति, प्रत्येक  फेफड़ों में आने-जाने वाली हवा, सांस लेने और फेफड़ों पर दबाव को मैनेज करता है। डॉ. कुमुद ने कहा कि कोरोना  के कारण विश्व भर में वेंटिलेटर की कमी होने जा रही है। उनके अनुसार इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य कम कीमत में अस्थायी वेंटिलेटर बनाना था, जिससे डॉक्टरों को मरीजों के उपचार में मदद मिल सके। 

कौन हैं रंजन और कुमुद

पिछले छह साल से जॉर्जिया टेक में पढ़ा रहे रंजन बिहार के पटना में पले-बढ़े हैं। उन्होंने त्रिची के रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग में स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कोनसिन-मेडिसन से पीएचडी की। वहीं अपनी मेडिकल ट्रेनिंग और रेसिडेंसी न्यू जर्सी में पूरा करने वाली कुमुद अपने माता-पिता के साथ  छह साल की उम्र में रांची से अमेरिका आ गईं थी।


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