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कोरोना वायरस: एक बचाव दूसरा सोशल डिस्टेंसिंग से स्वीडन ने कोरोना संक्रमण का प्रभाव रोका

कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए स्वीडन ने एक अलग ही तरीका अपनाया अब बाकी देश भी इस तरीके को अपनाने के लिए काम कर रहे हैं।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Tue, 05 May 2020 06:29 PM (IST)Updated: Wed, 06 May 2020 06:45 AM (IST)
कोरोना वायरस: एक बचाव दूसरा सोशल डिस्टेंसिंग से स्वीडन ने कोरोना संक्रमण का प्रभाव रोका
कोरोना वायरस: एक बचाव दूसरा सोशल डिस्टेंसिंग से स्वीडन ने कोरोना संक्रमण का प्रभाव रोका

नई दिल्ली, एनवाइटी। चीन से निकले कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में कहर बरपाया है। इस वायरस से बचने के लिए दो ही तरीके बताए गए एक तो बचाव और दूसरा सोशल डिस्टेंसिंग का। इन दो तरीकों के बाद सारी दुनिया ने इसी को फालो करना शुरू किया मगर कुछ देशों ने इन तरीकों पर अमल करने का दूसरा रास्ता निकाला। इसमें स्वीडन का नाम सबसे ऊपर है।

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वैसे अब अमेरिका भी स्वीडन की तर्ज पर लॉकडाउन खोलने के प्रयास में लगा हुआ है। अमेरिका में अब तक सबसे अधिक मौतें हो चुकी है उसके बाद भी वहां कभी भी पूरी तरह से लॉकडाउन नहीं किया गया, जो कदम इस वायरस को फैलने से रोकने के लिए उठाए गए थे, अब उन्हें भी बंद किया जा रहा है। 

संक्रमण रोकने के लिए लॉकडाउन का रास्ता अपनाने के उलट स्वीडन ने पाबंदियों में ढील की अलग राह चुनी। कोरोना संक्रमितों की बढ़ती संख्या के बावजूद वहां बाजार, बार, रेस्तरां, स्कूल से लेकर सार्वजनिक परिवहन के साधन खुले रखे गए। स्वीडिश सरकार के मुताबिक, पाबंदियों की बजाय लंबे समय तक अपनाए जा सकने वाले बचाव के उपायों से संक्रमण की रोकथाम पर जोर दिया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्वीडन ने हर्ड इम्युनिटी की रणनीति सोच-समझकर अपनाई है।  

एक करोड़ आबादी 

स्वीडन की आबादी एक करोड़ है। इस वजह से एक करोड़ आबादी वाले स्वीडन ने न्यूनतम खतरे वाले 65 साल से कम आयु वाले स्वस्थ लोगों को कोरोना के संपर्क में आने से रोका नहीं, वहीं दूसरी तरफ 65 साल से ज्यादा वालों को घरों में रहने के लिए कहा गया। इससे बाहर रहने वाले 60 फीसदी लोगों में संक्रमण अपने आप थम गया, साथ ही कम उम्र की स्वस्थ आबादी में संक्रमण हुआ तो फ्लू जैसा होगा और गंभीर रोगियों की संख्या कम रहेगी। इतने मरीजों के लिए आईसीयू बेड और वेंटिलेटर पर्याप्त रहेंगे।

न्यूयार्क टाइम्स की साइट में प्रकाशित खबर के मुताबिक स्वीडिश महामारी विशेषज्ञ डॉ एंडर्स टेग्नेल ने बताया कि कोरोना का आबादी के एक हिस्से पर गंभीर प्रभाव पड़ना तय था। यह भी पता था कि ज्यादातर संक्रमितों में हल्के लक्षण रहेंगे। इससे प्रतिरक्षा बन जाएगी। इसी से लॉकडाउन नहीं किया गया। कम सख्त सामाजिक दूरी के नियम अपनाए, क्योंकि इन्हें लंबे समय तक लागू किया जा सकता था। 

स्कूल खुले 

नौवीं कक्षा तक के स्कूल खुले रहे, ताकि बच्चों के माता-पिता कामकाज जारी रख सकें। कॉलेज और हाईस्कूल बंद रखे गए लेकिन रेस्तरां, किराना स्टोर और व्यापारिक जगहें खुली रखी गईं। सामाजिक दूरी के निर्देश दिए गए। 50 से ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने और वृद्धाश्रमों में जाने पर रोक है। 65 साल से ज्यादा उम्र वालों को घर रहने के लिए प्रोत्साहित किया। सामान्य बीमारियों के लिए नर्सिंग होम न जाने की सलाह दी गई। बाकी लोग अपना रोजमर्रा का जीवन चलाते रहे।

अधिकतर चीजों को खोलने पर दिया गया जोर

स्वीडन में बार, बाजार, रेस्तरां से लेकर स्कूल और परिवहन तक खुले रखे गए, लंबे समय तक निभाए जा सकने वाले नियमों पर रहा जोर दिया गया। स्वीडन ने इस तरह से थोड़ा नुकसान सहा मगर ज्यादा बचत की। 

थोड़ा सा नुकसान भी

वैसे स्वीडिश मॉडल का एक बड़ा नुकसान भी रहा है, जिसकी वजह से अब तक यहां 2600 लोगों की मौत भी हो चुकी है। भारत ने पूरी तरह से लॉकडाउन किया तो इस संक्रमण के फैलने पर रोक लग सकी, अभी यहां मौतों का आंकड़ा हजार को पार कर पाया है। स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम की 25 फीसदी आबादी में इम्युनिटी विकसित हो चुकी है।

कुछ अस्पतालों के 27 फीसदी स्टाफ में इम्युनिटी पाई गई। इस उपाय से लोगों को बेरोजगारी से बचा लिया गया। साथ ही अस्पतालों में भीड़ भी नहीं हुई। अधिकतर लोगो के प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर लेने पर ही बुजुर्गों को बाहर निकलने की अनुमति दी जाएगी। इसके उलट, न्यूयॉर्क में लॉकडाउन से ज्यादा लोगों को मरने से तो बचा लिया गया लेकिन बेरोजगारी बढ़ी, कारोबार ठप हुआ।

अनुकूलता का सिद्धांत अपनाया

स्वीडन ने कुदरत के हिसाब से ढलने का सिद्धांत अपनाया। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार, स्वीडन ने कोरोना वायरस से बचने के लिए प्राकृतिक आपदा के सामने अनुकूलता का सिद्धांत अपनाया। उनका कहना है कि इंसान इंसान के खिलाफ लड़ सकता है लेकिन कुदरत को हराया नहीं जा सकता। हम सिर्फ उसके हिसाब से खुद को ढालकर ही बच सकते हैं। कोरोना महामारी के मामले में भी स्वीडन ने इस बात को समझा। शोधकर्ताओं के मुताबिक, लॉकडाउन खत्म होने के बाद जीवन को वायरस के हिसाब से ढालने का सवाल आएगा। इसके लिए स्वीडन जैसा ही मॉडल काम आएगा।

जनता का अनुशासन

यदि स्वीडन के आंकड़ों को देखें तो वो बताते हैं कि स्वीडन में आबादी का बड़ा तबका खुद से ही सोशल डिस्टेंसिंग अपना रहा है। वहां पर सार्वजनिक यातायात चालू है, इस वजह से इसका इस्तेमाल करने वालों की संख्या काफी कम है। ईस्टर की छुट्टियों में भी कई लोगों ने यात्राएं नहीं कीं। बड़ी तादाद में लोग घरों से काम कर रहे हैं।

अब अमेरिका भी हर्ड इम्युनिटी की ओर

अमेरिकी राज्यों में कई गर्वनरों ने लॉकडाउन खोलने का फैसला लिया है। उनका मानना है, लोग ज्यादा समय तक आर्थिक और मानसिक खामियाजा नहीं भुगत सकते। यानी अब लॉकडाउन खोलकर स्वीडन जैसे तरीकों की ओर ही बढ़ा जाएगा। जाहिर है, इससे जिस तरह से संक्रमितों की संख्या बढ़ेगी उसी तरह से प्रतिरक्षा भी व्यापक होगी। लेकिन हर्ड इम्युनिटी के इस कदम की अब ज्यादा बड़ी कीमत चुकानी होगी। संक्रमण के दूसरे दौर में ज्यादा तादाद में लोग अस्पतालों में नजर आ सकते हैं।  


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