डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों में ब्लड कैंसर का ज्यादा खतरा, नए अध्ययन में आया सामने
डाउन सिंड्रोम अमेरिका और कनाडा में सर्वाधिक आनुवंशिक विकारों में से एक है। यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक अमेरिका में हर साल डाउन सिंड्रोम वाले करीब 6000 बच्चों का जन्म होता है। औसतन 700 बच्चों में से एक बच्चा इस विकार से ग्रसित होता है।
वाशिंगटन, एएनआइ। कभी-कभी किस्मत भी बड़ा खेल करती है। खुद का कोई दोष न होते हुए भी जन्म से ही जिंदगी बोझ बनने लगती है। शारीरिक और मानसिक समस्याएं बढ़ती ही जाती हैं। एक ऐसी ही आनुवंशिक विकार है डाउन सिंड्रोम। इससे ग्रस्त बच्चों की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। वे सामान्य बच्चे से अलग व्यवहार करते हैं। उनका विकास भी सही तरीके से नहीं होता है। अब एक नए अध्ययन से सामने आया है कि ऐसे बच्चों में ब्लड कैंसर का भी खतरा ज्यादा होता है। बताया गया है कि डाउन सिंड्रोम और एक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया (एएमएल) नामक ब्लड कैंसर में अनुमान से भी ज्यादा गहराई से जुड़े हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया (यूसी) डेविस हेल्थ तथा यूसी सैन फ्रांसिस्को के अनुसंधानकर्ताओं का यह अध्ययन द जर्नल ऑफ पीडियाट्रिक्स में प्रकाशित हुआ है।
डाउन सिंड्रोम अमेरिका और कनाडा में सर्वाधिक आनुवंशिक विकारों में से एक है। यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक, अमेरिका में हर साल डाउन सिंड्रोम वाले करीब 6,000 बच्चों का जन्म होता है। औसतन 700 बच्चों में से एक बच्चा इस विकार से ग्रसित होता है। जबकि कनाडा में यह आंकड़ा 750 में एक का है। वहीं, भारत में हर डाउन सिंड्रोम वाले 23,000 से 29,000 बच्चों का जन्म होता है। महिलाओं के 35 साल से ज्यादा उम्र में बच्चा पैदा करने पर संतान में डाउन सिंड्रोम होने की अधिक आशंका होती है।
अध्ययन के मुताबिक, डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों में स्वास्थ्य की समस्याएं वैसे भी सामान्य बच्चों से काफी ज्यादा होती हैं और पांच साल की उम्र से पहले तो एएमएल का जोखिम 150 गुना तक अधिक होता है। इस बात की पुष्टि हुई है कि डाउन सिंड्रोम बचपन में ल्यूकेमिया का एक अहम रिस्क फैक्टर है।
39 लाख से ज्यादा बच्चों पर अध्ययन
शोधकर्ताओं ने 1996-2016 के बीच अमेरिका के सात हेल्थकेयर सिस्टम और कनाडा के 39 लाख से ज्यादा बच्चों के मेडिकल रिकॉर्ड का अध्ययन किया। इसमें बच्चों के जन्म से लेकर कैंसर का पता चलने और 15 वर्ष के दौरान उनकी मौत के आंकड़े शामिल किए गए।
शोध के प्रथम लेखक एमिली मार्लो ने बताया कि इस अध्ययन की खास बात यह रही कि पहले के अध्ययनों की तुलना में डाउन सिंड्रोम वाले कैंसरग्रस्त बच्चों की अधिक संख्या मिली। इससे सटीक जोखिम आकलन का मौका मिला और खासकर विरले पाए जाने वाले एएमएल-7 के भी मामले मिले। पाया गया कि डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों में 2.8 फीसद ल्यूकेमिया से पीडि़त पाए गए, जबकि सामान्य बच्चों में यह सिर्फ 0.05 फीसद ही था।
यह भी पता चला कि डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों में पांच वर्ष की उम्र तक एएमएल का तो जोखिम ज्यादा होता ही है और उसके बाद भी जीवनभर एक्यूट लिंफॉयड ल्यूकेमिया (एएलएल) का खतरा कायम रहता है। डाउन सिंड्रोम से पीडि़त बच्चों में 2-4 साल के बीच एएलएल ज्यादा सामान्य है, जबकि पहले एक साल तक के बच्चों में एएमएल ज्यादा होता है। वहीं, अन्य बच्चों में 14 साल तक एएमएल का मामला काफी कम होता है और एएलएल का खतरा तीन साल तक अधिक बना रहता है, लेकिन धीरे-धीरे आठ साल की उम्र तक कम होता जाता है।
माता-पिता के लिए सलाह
शोधकर्ताओं ने डाउन सिंड्रोम से पीडि़त बच्चों के माता-पिता को सलाह दी है कि वे अपने बच्चों में ल्यूकेमिया के लक्षणों पर सतत नजर बनाए रखें। इसके आम लक्षणों में थकावट, त्वचा का रंग पीला पड़ना, संक्रमण और बुखार, ब्रश करते समय रक्तस्त्राव, सांस लेने में तकलीफ और कफ की शिकायत होती है। यदि बच्चों में ये लक्षण बने रहें तो डॉक्टर से परामर्श अवश्य लेना चाहिए।