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शोधकर्ताओं का दावा- वयस्कों के मुकाबले कोरोना वायरस से कम प्रभावित होते हैं बच्चे

कोलंबिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि बच्चों और वयस्कों में कोरोना वायरस के खिलाफ अलग-अलग तरह की एंटीबॉडी बनती है। इसकी वजह से ज्यादातर बच्चों के शरीर में वायरस ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाता।

By Manish PandeyEdited By: Published: Sat, 07 Nov 2020 11:40 AM (IST)Updated: Sat, 07 Nov 2020 11:40 AM (IST)
शोधकर्ताओं का दावा- वयस्कों के मुकाबले कोरोना वायरस से कम प्रभावित होते हैं बच्चे
दुनिया भर में कोरोना वायरस से 12.42 लाख लोगों की मौत हो चुकी है।

न्यूयॉर्क, आइएएनएस। कोरोना वायरस (कोविड-19) के बारे में शोधकर्ताओं ने एक और अहम जानकारी हासिल की है। एक अध्ययन में विज्ञानियों ने पाया है कि बच्चों और वयस्कों में कोरोना वायरस के खिलाफ अलग-अलग तरह की एंटीबॉडी उत्पन्न होती है। जर्नल नेचर इम्यूनोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि एंटीबॉडीज में अंतर के कारण ही वयस्कों और बच्चों में सार्स-सीओवी-2 का संक्रमण और इम्यून रिस्पांस भिन्न होता है। इसी के चलते ज्यादातर बच्चों के शरीर में वायरस ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाता है। बता दें कि सार्स-सीओवी-2 के कारण ही कोविड-19 फैलता है।

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अमेरिका की कोलंबिया यूनिवíसटी से इस अध्ययन लेखक डोना फारबर ने कहा, 'हमारे शोध में बच्चों में सार्स-सीओवी-2 एंटीबॉडी का गहन अध्ययन किया गया है, जो यह बताता है कि वयस्कों में बिल्कुल अलग तरह की एंटीबॉडी बनती है। बच्चों में संक्रमण की समयावधि काफी कम रहती है और इनमें वयस्कों की तरह वायरस का संक्रमण भी नहीं होता है।' उन्होंने कहा कि बच्चों के शरीर में ऐसी क्षमता होती है कि वे वायरस को फैलने नहीं देते। साथ ही, जल्द से जल्द उसे अपने शरीर से बाहर निकालने में कामयाब रहते हैं। बच्चों को वयस्कों की तरह मजबूत एंटीबॉडी इम्यून रिस्पांस की भी जरूरत नहीं होती।

शोधकर्ताओं ने कहा कि पिछले कई अध्ययनों में यह बात सामने आई थी कि वयस्कों के मुकाबले बच्चों में कोरोना का संक्रमण ज्यादा प्रभावी नहीं होता। यदि बच्चे इसकी चपेट में आ भी जाएं तो अन्य के मुकाबले उनकी कोरोना रिपोर्ट जल्द निगेटिव आ जाती है। इसका कारण यही है कि बच्चों में बनने वाली एंटीबॉडी वयस्कों के मुकाबले बिल्कुल भिन्न होती है। शोधकर्ताओं ने बताया कि इस अध्ययन में 47 बच्चों और 32 वयस्कों को शामिल किया गया था। इनमें 16 ऐसे थे जो मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम (एमआइएस-सी) यानी श्वांस संबंधी कई बीमारियों से ग्रसित थे और 16 बच्चे कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे। वयस्कों में ज्यादातर कोरोना वायरस से संक्रमित थे।

स्पाइक प्रोटीन के खिलाफ होता है कम एंटीबॉडी का उत्पादन

अध्ययन में पाया गया कि वयस्कों की तुलना में बच्चों ने वायरस के स्पाइक प्रोटीन के खिलाफ कम एंटीबॉडी का उत्पादन किया। इसका इस्तेमाल वायरस मानव कोशिकाओं को संक्रमित करने के लिए करता है। बच्चों के एंटीबॉडीज में कम से कम न्यूट्रलाइजिंग गतिविधियां देखी गर्ई, जबकि वयस्कों ने न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी का ज्यादा मात्रा में उत्पादन किया था। न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी ऐसी एंटीबॉडी है जो किसी रोगजनक या संक्रामक कण के प्रभाव को बेअसर करके कोशिकाओं का बचाती है।


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