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Chadrayaan 2: नासा ने बताया विक्रम की हुई हार्ड लैंडिंग, 14 अक्टूबर को फिर लैंडर की तलाश

Chandrayaan 2 नासा ने लैंडिंग साइट की तस्वीरें जारी की हैं। नासा ने बताया कि विक्रम की हार्ड लैंडिंग हुई थी। 14 अक्टूबर को एकबार फिर उसको खोजने की कोशिश होगी।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Fri, 27 Sep 2019 08:24 AM (IST)Updated: Fri, 27 Sep 2019 01:38 PM (IST)
Chadrayaan 2: नासा ने बताया विक्रम की हुई हार्ड लैंडिंग, 14 अक्टूबर को फिर लैंडर की तलाश
Chadrayaan 2: नासा ने बताया विक्रम की हुई हार्ड लैंडिंग, 14 अक्टूबर को फिर लैंडर की तलाश

वाशिंगटन, प्रेट्र। Chandrayaan 2, नासा ने भारत के मून मिशन चंद्रयान 2 को लेकर एक नई जानकारी है। नासा ने चांद की सतह के पास उस इलाके की तस्वीरें जारी की हैं, जहां लैंडर विक्रम ने 7 सितंबर को लैंडिंग की थी। नासा ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर यह तस्वीरें जारी की हैं। नासा के आर्बिटर ने यह तस्वीरें अपने कैमरे में कैद की। 

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नासा(NASA) ने शुक्रवार को अपने लूनर रिकॉनिसन्स ऑर्बिटर पर लगे कैमरे(LROc)  द्वारा ली जा हाई रिजॉल्यूशन तस्वीरों को जारी किया। नासा ने चंद्रमा पर उसी जगह की तस्वीरें जारी की हैंं, जहां भारत के चंद्रयान-2 मिशन का लैंडर विक्रम उतरा था। नासा ने तस्वीरें जारी करते हुए बताया है कि लैंडर विक्रम ने चंद्रमा की सतह पर हार्ड लैंडिंग की थी।लेकिन नासा ने साथ ही कहा है कि लैंडर विक्रम के सटीक स्थान का पता अबतक नहीं लग पाया है।

अब14 अक्टूबर को लूनर रिकॉनिसन्स ऑर्बिटर(LRO) चांद के उसी लैंडिंग साइट से दोबारा गुजरेगा। लिहाजा एकबार फिर लैंडर विक्रम को लेकर नई जानकारी आने की उम्मीद है।

विक्रम लैंडर को 7 सितंबर को चंद्रमा की सतह को छूना था, लेकिन चंद्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर पहले ही इसरो से उसका संपर्क टूट गया था। उसके बाद से विक्रम लैंडर से संपर्क की कोशिशें जारी हैं। यह कार्यक्रम चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग के लिए भारत का पहला प्रयास था।

14 अक्टूबर को लैंडर विक्रम की खोज

नासा के लूनर रिकॉनिसन्स ऑर्बिटर मिशन के डिप्टी प्रोजेक्ट साइंटिस्ट जॉन केलर ने कहा है, 'लूनर रिकॉनिसन्स ऑर्बिटर(LRO) एकबार फिर 14 अक्टूबर को चांद की उस लैंडिंग साइट से गुजरेगा, जब वहां सूर्य की रोशनी की स्थिति और अधिक अनुकूल होगी।' साथ ही नासा ने बताया कि जब यह तस्वीरें ली गईं तब चंद्रमा के उस इलाके में काफी अंधेरा था, इस कारण यह संभव है कि विक्रम लैंडर उस अंधेरे में छिप गया हो। जब अक्टूबर में LRO एकबार फिर उस लैंडिंग साइट से गुजरेगा तो हम एकबार फिर लैंडर का पता लगाने और उसकी तस्वीरें लेने का प्रयास करेंगे।'

नासा के लूनर रिकॉनिसन्स ऑर्बिटर(LROC) ने चांद के सतह से पास से गुजरते हुए यह तस्वीरें ली हैं।

यह तस्वीरें नासा के लूनर रिकॉनिसन्स ऑर्बिटर कैमरा क्विकमैप फ्लाई से ली गई है, जिसने विक्रम लैंडर के जो लक्षित लैंडिंग साइट के 150 किलोमीटर के इलाके की तस्वीरे ली हैं।

लैंडर विक्रम को ढूंढा जा रहा

इसरो ने चंद्रयान -2 के साथ विक्रम नाम के लैंडर को भेजा था, चंद्रमा की धरती को छूने से पहले ही इसका भी इसरो से संपर्क टूट गया। इसे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास एक उतरना था मगर वो उसमें कामयाब नहीं हो पाया। नासा के लूनर रिकॉनिसन्स ऑर्बिटर ने इस सप्ताह उस जगह से उड़ान भरी थी, जहां पर लैंडर विक्रम के होने की संभावना थी,लेकिन सूरज की रोशनी कम होने और लंबी छाया होने की वजह से विक्रम साफ तौर पर नहीं दिख पाया। उसके बाद नासा ने वहां की तस्वीरें खींची हैं।

विक्रम लैंडर ने 7 सितंबर को इसरो के साथ संचार खोने से पहले सिम्पलियस एन और मंज़िनस सी क्रेटर्स के बीच एक छोटे से पैच पर सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास किया था। लैंडर विक्रम को 14 दिनों(पृथ्वाी के लिए संचालित करने के लिए डिज़ाइन किया गया था, जब तक कि सूर्य अस्त और चंद्र रात्रि को इसके उपकरणों को फ्रीज नहीं किया गया। वह समय सीमा अब आ गई है और विक्रम से संपर्क करने का प्रयास अबतक असफल रहा है।

चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर कर रहा सही काम

इससे पहले गुरूवार को इसरो प्रमुख के. सिवन ने बताया कि चंद्रयान-2 का आर्बिटर सही तरह से काम कर रहा है। उस पर लगे सभी पेलोड जांच में खरे पाए गए हैं। आने वाले दिनों में इससे कई नए और अहम नतीजे मिलने की उम्मीद है। इससे पहले सिवन ने बताया था कि लैंडिंग से पहले तक की चंद्रयान-2 की सभी गतिविधियों को सटीक तरीके से अंजाम दिए जाने के कारण ऑर्बिटर में अतिरिक्त ईंधन बचा रह गया है। इस ईंधन की मदद से ऑर्बिटर सात साल तक काम करता रह सकता है। लॉन्चिंग के समय ऑर्बिटर के काम की अवधि एक साल तय की गई थी।

चंद्रयान-2 का सफर

22 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चंद्रयान-2 को लॉन्च किया गया था। तीन हफ्ते पृथ्वी की कक्षाओं में चक्कर लगाने के बाद इसने चांद की तरफ रुख किया था। 20 अगस्त को यान ने चांद की कक्षा में प्रवेश किया था। चांद की अलग-अलग कक्षाओं में घूमने के बाद दो सितंबर को लैंडर-रोवर को यान के ऑर्बिटर से अलग कर दिया गया था। ऑर्बिटर तब से ही चांद से करीब 100 किलोमीटर ऊंचाई पर स्थित कक्षा में परिक्रमा करते हुए प्रयोगों को अंजाम दे रहा है। वहीं, छह-सात सितंबर की दरम्यानी रात चांद पर लैंडिंग के आखिरी क्षणों में लैंडर से संपर्क टूट गया था। रोवर प्रज्ञान भी लैंडर के अंदर ही था, जिसे लैंडिंग के कुछ घंटे बाद बाहर आना था।

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