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पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम में शामिल कंपनियों पर बैन, ट्रंप का इमरान सरकार को बड़ा झटका

अमेरिका ने पाकिस्तान और यूएई की उन कंपनियों पर बैन लगा दिया है जो पाकिस्तान के नाभिकीय और मिसाइल कार्यक्रमों में शामिल रही हैं।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Wed, 18 Mar 2020 08:14 AM (IST)Updated: Wed, 18 Mar 2020 08:14 AM (IST)
पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम में शामिल कंपनियों पर बैन, ट्रंप का इमरान सरकार को बड़ा झटका
पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम में शामिल कंपनियों पर बैन, ट्रंप का इमरान सरकार को बड़ा झटका

वाशिंगटन, प्रेट्र। अमेरिका ने मंगलवार को पाकिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात की तमाम उन कंपनियों पर पाबंदियां लगा दी हैं जो पाकिस्तान के असुरक्षित नाभिकीय और मिसाइल कार्यक्रमों में शामिल रही हैं। अमेरिका के वाणिज्य मंत्री विलबर रोस ने पाकिस्तान से लौटने के कई सप्ताह बाद एलान किया कि व्यापक जनसंहार के हथियारों के निर्माण के असुरक्षित कार्यक्रमों के लिए अमेरिकी तकनीक अवैध रूप से हासिल करना अस्वीकार्य है और इसे सहन नहीं किया जाएगा।

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वाणिज्य मंत्रालय ऐसी कंपनियों की सघन जांच का काम जारी रखेगा जो इस काम में लिप्त रही हैं। मंत्रालय के इंडस्ट्री एंड सिक्योरिटी ब्यूरो ने छह व्यक्तियों और 18 कंपनियों को ईरान और पाकिस्तान के नाभिकीय कार्यक्रमों और रूस के सैन्य आधुनिकीकरण में शामिल होने के कारण प्रतिबंधित किया है।

इस सूची में ईरान के पांच नाभिकीय अधिकारी और एक कंपनी, चीन के दो समूह और पाकिस्तान की नौ तथा संयुक्त अरब अमीरात की पांच कंपनियां शामिल हैं, जिन्होंने ईरान और पाकिस्तान में व्यापक जनसंहार के हथियार विकसित किए जाने में मदद की। इसके साथ ही पाकिस्तान की यूएई की 12 ऐसी कंपनियों को भी प्रतिबंधित किया गया है जिन्होंने पाकिस्तान के नाभिकीय और मिसाइल कार्यक्रम में सहायता की।

एक नई रिसर्च में खुलासा

एक नए अध्ययन में पता चला है कि अगर भारत-पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध हुआ तो आधुनिक इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा वैश्विक खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो सकता है। पीएनएएस नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया है कि इस युद्ध से अचानक वैश्विक शीतलन की स्थिति पैदा सकती है। साथ ही, कम बारिश और धूप न दिखाई देने से लगभग एक दशक तक दुनियाभर में खाद्य उत्पादन और व्यापार बाधित हो सकता है।

अमेरिका की रटगर्स यूनिवर्सिटी-न्यू ब्रूनस्विक के शोधकर्ताओं के अनुसार, इसका असर 21 वीं सदी के अंत तक मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से अधिक होगा। उनका मानना है कि हालांकि, कृषि उत्पादकता पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों का बड़े पैमाने पर अध्ययन किया गया है, लेकिन वैश्विक फसल विकास के लिए इसके अचानक ठंडा होने की संभावनाएं बहुत कम हैं।


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