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वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण बन रहा अस्थमा का कारण, पेट्रोल-डीजल के कम इस्तेमाल से हो सकता है स्थिति में सुधार

वाहनों की दिनों-दिन बढ़ती संख्या के कारण यातायात से जुड़े प्रदूषण भविष्य की पीढ़ी पर गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहा है। एक नए अध्ययन में बताया गया है कि यातायात संबंधी प्रदूषण की वजह से विश्वभर में करीब 20 लाख बच्चों को अस्थमा हो सकता है।

By Amit SinghEdited By: Published: Thu, 13 Jan 2022 07:04 PM (IST)Updated: Thu, 13 Jan 2022 07:04 PM (IST)
वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण बन रहा अस्थमा का कारण, पेट्रोल-डीजल के कम इस्तेमाल से हो सकता है स्थिति में सुधार
स्वच्छ हवा से मिलेगी राहत (सोर्स- जागरण.काम, फाइल फोटो)

वाशिंगटन, एएनआइ: वायु प्रदूषण पूरे विश्व के लिए एक बड़ा संकट बनता जा रहा है। इसके बढ़ने के कई कारक हैं और उस पर नियंत्रण के लिए तरह-तरह के उपाय भी किए जा रहे हैं। लेकिन वाहनों की दिनों-दिन बढ़ती संख्या के कारण यातायात से जुड़े प्रदूषण भविष्य की पीढ़ी पर गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहा है। एक नए अध्ययन में बताया गया है कि यातायात संबंधी प्रदूषण की वजह से विश्वभर में करीब 20 लाख बच्चों को अस्थमा हो सकता है। यह अध्ययन 'द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ' जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

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नाइट्रोजन डाइआक्साइड से बच्चों में अस्थमा का खतरा

जार्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में एन्वार्यमेंटल एंड आक्यूपेशनल हेल्थ की प्रोफेसर तथा इस अध्ययन की सह-लेखिका सुसान अनेनबर्ग ने बताया कि उनके शोध में पाया गया है कि नाइट्रोजन डाइआक्साइड बच्चों में अस्थमा का खतरा पैदा कर रहा है और यह समस्या खासतौर पर शहरी क्षेत्र में ज्यादा है। इससे स्पष्ट है कि बच्चों को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी है कि स्वच्छ हवा की रणनीति को अहम माना जाना चाहिए। अनेनबर्ग और उनके सहयोगियों ने वाहनों, ऊर्जा संयंत्रों और औद्योगिक स्थलों के आसपास नाइट्रोजन डाइआक्साइड (एनओ2) के ग्राउंड कंसंट्रेशन का अध्ययन किया है। इसके साथ ही उन्होंने 2019 से 2020 तक बच्चों में अस्थमा के नए केसों को भी ट्रैक किया। अस्थमा एक क्रानिक बीमारी है, जिसमें फेफड़े के वायुमार्ग में सूजन (इंफ्लैमेशन) पैदा होता है।

एनओ2 के कारण बढ़े अस्थमा के मामले

इसके पूर्व जार्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पाया था कि दुनियाभर में बच्चों में अस्थमा के करीब 13 प्रतिशत मामले एनओ2 से जुड़े थे और ज्यादा आबादी वाले 250 शहरों में अस्थमा के 50 प्रतिशत मामले का यही कारण था।यह भी पाया गया कि एनओ2 के कारण साल 2000 में बच्चों में अस्थमा के मामले 20 प्रतिशत थे, जो 2019 में घटकर 16 प्रतिशत पर आ गया। यह इस बात का प्रतीक है कि यूरोप और अमेरिका के कुछ हिस्सों में स्वच्छ हवा का फायदा खासतौर पर उन बच्चों को हुआ, जो व्यस्त सड़कों और औद्योगिक स्थलों के आसपास रहते हैं। इसलिए अब भी जरूरत है कि उच्च आय वाले देश एनओ2 के उत्सर्जन पर और प्रभावी अंकुश लगाएं।

जीवाश्म ईंधन के कम इस्तेमाल से हो सकत हैं सुधार

एक अन्य अध्ययन में अनेनबर्ग तथा उनके सहयोगियों ने पाया कि 2019 में 18 लाख मौतों का संबंध शहरी वायु प्रदूषण से जोड़ा जा सकता है। यह भी सामने आया कि शहरों में रहने वाले 86 प्रतिशत वयस्क और बच्चे विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पार्टिकुलेट मैटर के संदर्भ में निर्धारित मानक से ज्यादा स्तर वाले माहौल में रहने के कारण ज्यादा बीमार होते हैं।अनेनबर्ग ने बताया कि जीवाश्म ईंधन वाले परिवहन में कमी लाकर हम बच्चे और बुजुर्गो को अच्छी हवा में सांस लेने मदद कर सकते हैं। इससे बच्चों में अस्थमा और उनकी मौत को भी कम किया जा सकता है। इसके साथ ही ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में भी कमी आएगी, जिससे स्वास्थ्यवर्धक वातावरण की ओर बढ़ा जा सकता है।

अध्ययन के कुछ अहम निष्कर्ष

1.साल 2019 में अनुमानित 18.5 लाख बच्चों में अस्थमा के नए केसों का कारण नाइट्रोजन डाइआक्साइड (एनओ2) रहा। इनमें से दो-तिहाई शहरी क्षेत्रों में थे।

2.बच्चों में एनओ2 से जुड़े अस्थमा के मामले अमेरिका समेत अन्य अमीर देशों में स्वच्छ वायु को लेकर अपनाए गए कड़े उपायों के कारण कम हुए हैं।

3.यूरोप, अमेरिका में वायु गुणवत्ता में सुधार होने के बावजूद दक्षिण एशिया, सब-सहारा अफ्रीका और मध्य-पूर्व के देशों में हवा की गुणवत्ता खासतौर पर एनओ2 के कारण खराब हुई है।

4. बच्चों में एनओ2 से जुड़ा अस्थमा दक्षिण एशिया तथा सब-सहारा अफ्रीकी देशों में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बड़ी समस्या


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