सोशल मीडिया के जरिये बच्चों पर इस तरह नजर रख रहे अभिभावक
भले ही सोशल मीडिया बच्चों पर बुरा प्रभाव डालता हो, लेकिन ये अप्रत्यक्ष रूप से अभिभावकों की मदद भी कर रहा है। यह बात अमेरिका में कराए एक पोल में सामने आई है।
वाशिंगटन (प्रेट्र)। दुनिया में तेजी से बढ़ते सोशल मीडिया के क्रेज के चलते हर आयुवर्ग के लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। इसमें बड़ी संख्या बच्चों और टीनएजर्स की है। भले ही सोशल मीडिया बच्चों पर बुरा प्रभाव डालता हो, लेकिन ये अप्रत्यक्ष रूप से अभिभावकों की मदद भी कर रहा है। यह बात अमेरिका में कराए एक पोल में सामने आई है। पोल के मुताबिक, ज्यादातर अभिभावकों का मानना है कि सोशल मीडिया उनके बच्चों पर नजर रखने का एक अच्छा साधन है।
अमेरिका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ मिशीगन की सारा क्लार्क के मुताबिक, बच्चों की किशोरावस्था अभिभावकों के लिए एक चुनौती होती है। एक तरफ जहां उन्हें बच्चों की इच्छाएं पूरी करनी होती हैं, वहीं दूसरी तरफ यह भी ध्यान देना होता है कि कहीं वे गलत रास्ते पर न चल पड़ें। ऐसे में उन पर नजर रखने और उन्हें सही राह दिखानी होती है।
द सीएस मॉट चिल्ड्रंस हॉस्पिटल द्वारा कराए एक राष्ट्रीय पोल में सामने आया कि नौ से 12 आयुवर्ग के बच्चों के ज्यादातर अभिभावकों ने इस बात को स्वीकार किया है कि सोशल मीडिया के चक्कर में बच्चे आसानी से परेशानी में पड़ जाते हैं। हालांकि 61 फीसद अभिभावकों ने यह भी माना है कि बच्चों पर नजर रखने में सोशल मीडिया उनके लिए मददगार है।
पोल से पता चला है कि 55 फीसद अभिभावक बच्चों के सोशल मीडिया के पेज और उनके लिखे संदेशों को पढ़ते हैं। इसके जरिये उन्हें पता चलता है कि वे किस पार्टी में जा रहे हैं। उस पार्टी में किसकिस को आमंत्रित किया गया है। इसके अलावा इस पोल में यह भी सामने आया है कि 39 फीसद अभिभावक सोशल मीडिया के जरिये बच्चों की लोकेशन पर नजर रखते हैं। बच्चों की निगरानी के मामले में पिता से ज्यादा माताएं संवेदनशील होती हैं और वे तकनीक का अधिक प्रयोग करती हैं।
पोल की सह निदेशक सारा के मुताबिक, यह सही है कि कम उम्र में सोशल मीडिया का इस्तेमाल गलत है, लेकिन इसने अभिभावकों के लिए एक और द्वार खोल दिया है, जिसकी मदद से वे अपने बच्चों की गतिविधियों पर नजर रख सकते हैं। इसके जरिये अभिभावक न केवल उनकी गतिविधियों पर निगरानी रख सकते हैं, बल्कि उचित परामर्श भी दे सकते हैं।
पारंपरिक विकल्प भी मौजूद
पोल में सामने आया है कि बड़ी संख्या में ऐसे अभिभावक भी हैं, जो बच्चों पर नजर रखने के लिए पारंपरिक तरीकों को अपनाते हैं। उदाहरण स्वरूप, यदि अभिभावक बच्चों को किसी पार्टी के लिए छोड़ने जाते हैं तो उनके दोस्तों के अभिभावकों से उस पार्टी और वहां आने वालों के बारे में जानकारी लेते हैं।
ऐसे अभिभावक 91 फीसद हैं। वहीं, 76 फीसद अभिभावक पार्टी से पहले बच्चों के दोस्तों के अभिभावकों को फोन कर पूरी जानकारी लेते हैं। पोल में सामने आया है कि दो तिहाई अभिभावकों ने इस बात को स्वीकार किया है कि बच्चों को आजादी मिलनी चाहिए, लेकिन उसकी सीमा होनी चाहिए। सीमा से ज्यादा आजादी उनसे गलती करवा सकती है। पोल में बताया गया है कि कुछ अभिभावक सोशल मीडिया को गैरजरूरी मानते हैं।