अपेन्डिसाइटिस को लेकर मिली बड़ी उपलब्धि, अब दवाओं से भी हो सकेगा इलाज
ड्यूक यूनिवर्सिटी स्कूल आफ मेडिसिन के सर्जरी विभाग के प्रोफेसर और शोध के नेतृत्वकर्ता थियोडोर पप्पस के मुताबिक इस बात के प्रमाण मिले हैं कि अपेन्डिसाइटिस के करीब 70 प्रतिशत मामलों में एंटीबायोटिक्स से सफल इलाज संभव है।
नार्थ कैरोलिना (अमेरिका), एएनआइ। अपेन्डिसाइटिस के इलाज में एक बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है। ड्यूक यूनिवर्सिटी स्कूल आफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं को इस बात के प्रमाण मिले हैं कि अपेन्डिसाइटिस का इलाज एंटीबायोटिक्स से भी किया जा सकता है। यह शोध जेएएमए जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
ड्यूक यूनिवर्सिटी स्कूल आफ मेडिसिन के सर्जरी विभाग के प्रोफेसर और शोध के नेतृत्वकर्ता थियोडोर पप्पस के मुताबिक, इस बात के प्रमाण मिले हैं कि अपेन्डिसाइटिस के करीब 70 प्रतिशत मामलों में एंटीबायोटिक्स से सफल इलाज संभव है। अभी तक अपेन्डिसाइटिस का सामान्य इलाज सर्जरी ही माना जाता है। क्योंकि अपेन्डिक्स में सूजन और उसके फटने का खतरा होता है, जो घातक साबित होता है।
पप्पस का कहना है कि अक्यूट अपेन्डिसाइटिस दुनियाभर में सर्वाधिक सामान्य सर्जिकल इमरजेंसी केस होता है। यह परेशानी लगभग प्रति हजार लोगों में से एक में होती है। अभी तक इसका एकमात्र इलाज सर्जरी ही है। ऐसे में बगैर सर्जरी या आपरेशन के इस बीमारी को ठीक करने का तरीका रोगियों और हेल्थ केयर सिस्टम के लिए काफी अहम है।
उन्होंने बताया कि यद्यपि सर्वाधिक उपयुक्त इलाज का तरीका तय करना बड़ा ही बारीक काम है, लेकिन बहुत ज्यादा कठिन नहीं। अपेन्डिसाइटिस में पेट में दर्द होता है। यह दर्द पेट के दाहिने तरफ निचले हिस्से में होता है और इसके साथ मिचली या उलटी और हल्का बुखार भी होता है। इसकी पुष्टि अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन से की जा सकती है।
यदि इन जांचों में कोई बहुत ज्यादा जटिलता नहीं दिखाई दे तो ऐसे अधिकांश रोगियों का इलाज, एंटीबायोटिक्स से किया जा सकता है। उसे अपेन्डिक्स निकलवाने के लिए सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ेगी। अपेन्डिसाइटिस के गंभीर लक्षणों वाले रोगियों के एंटीबायोटिक्स फस्र्ट लाइन थेरेपी हो सकती है। इतना ही, नहीं यह वैसे रोगियों के लिए भी राहतकारी होगी, जो सर्जरी कराने की स्थिति में नहीं होते हैं या जिन्हें उससे खतरा हो सकता है। पप्पस ने बताया, ‘हमारा मानना है कि 60 से 70 प्रतिशत रोगियों का इलाज एंटीबायोटिक्स से करने पर विचार किया जा सकता है।’ उनका कहना है कि बहुत सारे लोग मानते हैं कि इलाज के तरीके के फैसले में रोगियों की पसंद को अहमियत दी जानी चाहिए, इसलिए जरूरी है कि आम लोगों को इसके बारे में जागरूक और शिक्षित करने को उन्हें इसकी सामग्री उपलब्ध कराई जाए।
इसके साथ ही पप्पस ने बताया कि एंटीबायोटिक्स से हमेशा ही पूर्ण इलाज नहीं किया जा सकता है। करीब 40 प्रतिशत रोगी, जिन्हें एंटीबायोटिक्स से आराम तो मिलता है, लेकिन उसके बाद जब फिर से उन्हें तकलीफ होती है तो सर्जरी के जरिये ही अपेन्डिक्स निकलवाने का विकल्प बचता है। इसलिए जरूरी है कि हर मामले को विशिष्ट तौर पर लेते हुए डाक्टरों को रोगियों की प्रकृति पर भी विचार करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि जिन रोगियों को तात्कालिक तौर पर राहत चाहिए, उनके लिए तो एंटीबायोटिक्स ठीक है। लेकिन जब किसी को आने वाले समय में कहीं सुदूर जाना हो तो इस पर जरूर विचार किया जाना चाहिए कि तकलीफ कहीं फिर से तो नहीं होगी? यदि उसकी आशंका हो तो अपेन्डिक्टामी (सर्जरी के जरिये अपेन्डिक्स निकालना) पर भी विचार करना चाहिए।