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मंगल ग्रह पर एक और रिसर्च, ग्रह की सतह के 750 मीटर नीचे हो सकता है पानी

साउदर्न कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह पर एक अध्ययन किया है। शोधकर्ताओं ने पाया कि लाल ग्रह के सतह की दरारों का संबंध भूजल से है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Wed, 03 Apr 2019 10:41 AM (IST)Updated: Wed, 03 Apr 2019 11:36 AM (IST)
मंगल ग्रह पर एक और रिसर्च, ग्रह की सतह के 750 मीटर नीचे हो सकता है पानी
मंगल ग्रह पर एक और रिसर्च, ग्रह की सतह के 750 मीटर नीचे हो सकता है पानी

लॉस एंजिलिस, पीटीआइ। वैज्ञानिकों ने बताया है कि मंगल की सतह के 750 मीटर नीचे पानी मौजूद है। दावा किया गया है कि इस लाल ग्रह पर अभी भी एक सक्रिय भूजल प्रणाली मौजूद हो सकती है और यह प्रणाली इस ग्रह की सतह पर कई धाराओं को जन्म दे सकती है। पिछले वर्ष शोधकर्ताओं ने मंगल ग्रह पर दक्षिणी ध्रुवीय बर्फ की चट्टानों के नीचे पानी की एक गहरी झील होने का अनुमान लगाया था।

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अमेरिका के साउदर्न कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने यह बताया कि मंगल ग्रह पर ध्रुवों की तुलना में व्यापक भौगोलिक क्षेत्र में भूजल की संभावना ज्यादा मौजूद है। शोधकर्ताओं ने पाया कि मंगल पर सतह के करीब 750 मीटर नीचे भूगर्भ जल का सक्रिय तंत्र मौजूद है। मंगल की सतह पर पड़ी दरारों (क्रेटरों) के माध्यम से यह ऊपर आ जाता है। वह कुछ ऐसे ही विशिष्ट क्रेटरों का अध्ययन कर रहे हैं। मार्स एक्सप्रेस साउंडिंग रडार के सदस्य इसम हेगी ने बताया कि हो सकता है उनका आकलन सही न हो। यूनिवर्सिटी में पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च एसोसिएट अबोटालिब ने बताया कि मंगल की सतह पर जैसा तंत्र हमें दिखाई दिया ठीक वैसा ही तंत्र उत्तरी अफ्रीकी सहारा और अरब प्रायद्वीप में देखा गया और इससे हमें मंगल की सतह का अध्ययन करने में मदद मिली।

वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि मंगल पर सतह पर दबाव की वजह से कुछ क्रेटरों से पानी के झरने फूटे थे। क्रेटरों की दीवारों पर पाए जाने वाली तेज और विशिष्ट रेखाएं यह समझने में मदद करती हैं। वैज्ञानिकों ने यह भी बताया कि कैसे मौसम बदलने से पानी की इन धाराओं में उतार-चढ़ाव होता था। नेचर जियोसाइंस जर्नल में इस अध्ययन को प्रकाशित किया गया है। बताया कि मंगल की सतह का दरारों का संबंध भूजल से है। 


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