नासा की एक और उपलब्धि: सूर्य की सीमा के पार पहुंचने वाला दूसरा यान बना वॉयजर-2
चार दशक से लंबे सफर के बाद नासा का वॉयजर-2 यान सौरमंडल की परिधि के बाहर पहुंचने वाला दूसरा यान बन गया है।
वाशिंगटन, प्रेट्र। अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा के नाम एक और उपलब्धि जुड़ गई है। चार दशक से लंबे सफर के बाद नासा का वॉयजर-2 यान सौरमंडल की परिधि के बाहर पहुंचने वाला दूसरा यान बन गया है। इससे पहले नासा का ही वॉयजर-1 इस सीमा के पार पहुंचा था।
सूर्य से बाहर की ओर बहने वाली हवाओं से सौरमंडल के चारों ओर एक बुलबुले जैसा घेरा बना हुआ है। इस घेरे को हेलियोस्फेयर और इसकी सीमा से बाहर के अंतरिक्ष को इंटरस्टेलर मीडियम (आइएसएम) कहा जाता है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ आयोवा के शोधकर्ताओं के मुताबिक, वॉयजर-2 आइएसएम में पहुंच गया है। विज्ञान पत्रिका नेचर एस्ट्रोनॉमी में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, वॉयजर-2 ने पांच नवंबर, 2018 को आइएसएम में प्रवेश किया था।
यान पर लगे प्लाज्मा वेव उपकरण से मिली प्लाज्मा घनत्व की रीडिंग के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि प्लाज्मा का बढ़ा हुआ घनत्व इस बात का प्रमाण है कि यान सौर हवाओं के गर्म और कम घनत्व वाले प्लाज्मा के घेरे से बाहर निकलते हुए ठंडे और ज्यादा प्लाज्मा घनत्व वाले इंटरस्टेलर स्पेस में सफर कर रहा है। वॉयजर-2 से जिस तरह के प्लाज्मा घनत्व के आंकड़े मिले हैं, उसी तरह के आंकड़े वॉयजर-1 से भी मिले थे, जब उसने आइएसएम में प्रवेश किया था। वॉयजर-1 ने 2012 में सूर्य की सीमा को पार किया था।
बदल रही हैं धारणाएं
अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ आयोवा के प्रोफेसर डॉन गरनेट ने कहा, 'यह ऐतिहासिक उपलब्धि है। पहले यह सोचा जाता था कि जैसे-जैसे आप इंटरस्टेलर स्पेस में बढ़ते जाएंगे, सौर हवाएं धीरे-धीरे हल्की होती जाएंगी। नए प्रमाणों से यह धारणा गलत साबित हो गई है। पहले वॉयजर-1 और अब वॉयजर-2 से हमें पता चला है कि वहां एक मजबूत सीमा बनी हुई है।
चौंकाने वाली बात यही है कि प्लाज्मा समेत कुछ अन्य द्रवों की उपस्थिति में यह सीमा बनी कैसे है।' यूनिवर्सिटी ऑफ आयोवा के बिल कर्थ ने कहा कि वॉयजर-1 और वॉयजर-2 ने अलग-अलग पथ से होते सूर्य से लगभग बराबर दूरी पर आइएसएम में प्रवेश किया। इससे पता चलता है कि हेलियोस्फेयर का आकार सही ज्यामिति में है। एक ओर से यह काफी हद तक गोले जैसा है। वॉयजर-2 पर लगे उपकरणों से हेलियोस्फेयर को समझने की दिशा में अन्य कई महत्वपूर्ण जानकारियां भी मिल रही हैं।
चार दशक से हैं सफर पर
वॉयजर-2 को 20 अगस्त, 1977 को लांच किया गया था। इसके 16 दिन बाद पांच सितंबर, 1977 को वॉयजर-1 लांच किया गया था। उद्देश्य और पथ में अंतर के साथ दोनों यान को धरती से परे ग्रहों व अंतरिक्ष के अध्ययन के लिए लांच किया गया था। दोनों यान पिछले 42 साल से काम कर रहे हैं। नासा के डीप स्पेस नेटवर्क के जरिये इनसे संपर्क स्थापित किया जाता है।
वॉयजर-2 ने सूर्य से 119.7 एस्ट्रोनॉमिकल यूनिट (एयू) यानी 11 अरब मील की दूरी पर आइएसएम में प्रवेश किया। वॉयजर-1 ने 122.6 एयू की दूरी पर आइएसएम में प्रवेश किया था। नासा की वेबसाइट के मुताबिक, मंगलवार को वॉयजर-1 धरती से 13.76 अरब मील दूर था। वहीं वॉयजर-2 की दूरी 11.38 अरब मील थी। इस हिसाब से वॉयजर-1 धरती से सर्वाधिक दूरी पर पहुंची हुई मानव निर्मित वस्तु है।