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अपनी द्विपक्षीय परमाणु संधि तोड़ने को अमेरिका व रूस आमादा

अमेरिका व रूस के इस कदम पर यूरोप के साथ ही चीन ने भी चिंता जताई है। यूरोपीय देशों को डर है कि संधि टूटने के बाद दुनियाभर में परमाणु हथियारों की होड़ शुरू हो जाएगी।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 03 Feb 2019 01:00 AM (IST)Updated: Sun, 03 Feb 2019 01:00 AM (IST)
अपनी द्विपक्षीय परमाणु संधि तोड़ने को अमेरिका व रूस आमादा
अपनी द्विपक्षीय परमाणु संधि तोड़ने को अमेरिका व रूस आमादा

द न्यूयॉर्क टाइम्स/रायटर, वाशिंगटन। अमेरिका ने रूस के साथ 1987 में हुई परमाणु संधि को फिलहाल निलंबित कर दिया है। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि यदि रूस इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फोर्सेज (आइएनएफ) संधि का उल्लंघन करने वाली क्रूज मिसाइलों को नष्ट नहीं करता है तो छह महीने में यह समझौता रद कर दिया जाएगा। इसके जवाब में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी आइएनएफ में अपनी सहभागिता निलंबित कर दी है। साथ ही उन्होंने अपने मंत्रियों को अमेरिका के साथ निरस्त्रीकरण को लेकर वार्ता की शुरुआत करने से रोक दिया है।

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1987 में दोनों देशों के बीच हुई थी आइएनएफ संधि

आइएनएफ के निलंबन पर अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने कहा, 'नियम तोड़ने पर देशों को उसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। रूस बेशर्मी के साथ लगातार संधि का उल्लंघन कर रहा है तो हम इसे जारी नहीं रख सकते हैं।' इसपर पलटवार करते हुए पुतिन के प्रवक्ता ने कहा कि ट्रंप इस समझौते को खत्म करने का बहाना ढूंढ रहे थे।

चीन व यूरोप ने जताई चिंता

अमेरिका व रूस के इस कदम पर यूरोप के साथ ही चीन ने भी चिंता जताई है। यूरोपीय देशों को डर है कि संधि टूटने के बाद दुनियाभर में परमाणु हथियारों की होड़ शुरू हो जाएगी। दूसरी ओर चीन ने अमेरिका को इस संधि से बाहर ना होने को कहा है। उसने दोनों देशों को बातचीत से अपने मतभेद सुलझाने का आग्रह किया है।

अन्य देश भी संधि में हो सकते हैं शामिल

ट्रंप व उनके प्रशासन के अधिकारी कई बार आइएनएफ समझौते में अन्य देशों को शामिल करने का संकेत दे चुके हैं। उनका कहना है कि इस समझौते को नए सिरे से लागू किया जाना चाहिए। इसके लिए उन सभी देशों को संधि में शामिल होना होगा जिनके पास 500 से 5,500 किलोमीटर तक मार करने वाली मिसाइलें हैं। हालांकि ऐसा करने के लिए भारत, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया, ईरान व चीन आदि को समझौता करने के लिए राजी करना होगा। यह रूस व अमेरिका के बीच द्विपक्षीय समझौते को जारी रखने से ज्यादा मुश्किल होगा।


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