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Air Pollution : जलवायु परिवर्तन से बच्चों की सेहत को खतरा, बढ़ेंगी संक्रामक बीमारियां

दुनियाभर में उत्सर्जन पर अंकुश लगाए जाने के बावजूद वायु प्रदूषण बढ़ने की आशंका बनी रहेगी। वायु प्रदूषण के कारण अकेले 2016 में पूरी दुनिया में 70 लाख लोगों की मौत हुई थी।

By Tilak RajEdited By: Published: Thu, 14 Nov 2019 03:41 PM (IST)Updated: Thu, 14 Nov 2019 06:10 PM (IST)
Air Pollution : जलवायु परिवर्तन से बच्चों की सेहत को खतरा, बढ़ेंगी संक्रामक बीमारियां
Air Pollution : जलवायु परिवर्तन से बच्चों की सेहत को खतरा, बढ़ेंगी संक्रामक बीमारियां

वाशिंगटन, एजेंसी। जलवायु परिवर्तन के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर एक नया अध्ययन किया गया है। इसमें पाया गया कि जलवायु परिवर्तन से खासतौर से बच्चों की सेहत के लिए गंभीर खतरा पैदा हो सकता है। मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, उत्सर्जन सीमित करने में नाकामी का परिणाम संक्रामक बीमारियों के रूप में सामने आएगा। वायु प्रदूषण की स्थिति गंभीर होती जाएगी, तापमान बढ़ेगा और कुपोषण की समस्या भी गंभीर होगी। इस रिपोर्ट से जुड़ीं हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की क्लीनिकल इंस्ट्रक्टर डॉ रेनी सेलेस ने कहा, 'आज जन्म लेने वाले शिशु को तापमान में बढ़ोतरी के चलते आने वाले समय में सेहत के मोर्चे पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। जलवायु परिवर्तन और जीवाश्म ईधन से होने वाले वायु प्रदूषण के कारण मां के गर्भ से ही शिशु की सेहत को खतरा पैदा हो रहा है। जन्म के बाद भी यह खतरा बढ़ता जाता है।'

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स्वास्थ्य के लिए ये खतरे

कोयला और गैस जैसे जीवाश्म ईधन के जलने से पीएम 2.5 नामक वायु प्रदूषण भी उत्पन्न होता है। यह हृदय और फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है। पीएम 2.5 का संबंध जन्म के समय शिशु के कम वजन के साथ ही अस्थमा जैसी सांस संबंधी समस्याओं से भी होता है।

तापमान बढ़ने से जंगलों में लग रही आग

तापमान में बढ़ोतरी होने से जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। इसका कारण यह है कि बढ़ती गरमी के चलते पेड़-पौधे सूख रहे हैं, नतीजन आग भड़क जाती है। जीवाश्म ईधन के जलने से स्मॉग का स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रह रहा है। फसलों की पैदावार भी प्रभावित हो रही है।

2016 में 70 लाख लोगों की गई थी जान

रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में उत्सर्जन पर अंकुश लगाए जाने के बावजूद वायु प्रदूषण बढ़ने की आशंका बनी रहेगी। वायु प्रदूषण के कारण अकेले 2016 में पूरी दुनिया में 70 लाख लोगों की मौत हुई थी।

अध्ययन में इस पर किया गया गौर

इस अध्ययन में जलवायु परिवर्तन के इंसानों की सेहत पर पड़ने वाले प्रभाव पर गौर किया गया। इसमें इस बात की तुलना की गई कि अगर दुनिया पेरिस समझौते की सभी प्रतिबद्धताओं को पूरा करती है तो इसका इंसानों की सेहत के लिहाज से क्या नतीजा सामने आएगा? पेरिस समझौते में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन रोकने और इस सदी के अंत तक तापमान में बढ़ोतरी दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने की बात की गई है।

बच्चों पर पहली बार किया अध्ययन

लैंसेट जर्नल के एडिटर-इन-चीफ डॉ रिचर्ड हॉर्टन ने कहा, 'यह तीसरा मौका है जब लैंसेट ने स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को आंका है, लेकिन बच्चों की सेहत पर पहली बार गौर किया गया।'

चार डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा तापमान

रिपोर्ट के कार्यकारी संपादक निक वॉट्स ने कहा कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में अगर कोई बदलाव नहीं किया जाता है तो साल 2090 तक हमारी धरती का तापमान चार डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। इसका मतलब यह हुआ कि आज के दौर में जन्म लेने वाले शिशु को 2090 में चार डिग्री सेल्सियस ज्यादा गरमी का सामना करना पड़ सकता है। इस समय वैश्विक जीवन प्रत्याशा 71 वर्ष है।


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