एआइ से होगा नींद संबंधी विकारों का इलाज, बीमारी की जल्द पहचान कर उपचार में मिल सकेगी मदद
नींद संबंधी विकारों में अनिद्रा की स्थिति स्लीप एपीनिया (सोते समय सांस लेने में अवरोध संबंधी दिक्कतें) तथा नार्कोलेप्सी (तंत्रिकाओं से जुड़े नींद विकार) आम हैं। इन रोगों से ग्रसित अधिकांश लोगों को अपनी बीमारी का पता भी नहीं लगता है।
वाशिंगटन, एएनआइ। स्वस्थ रहने के लिए अच्छी और पर्याप्त नींद बेहद जरूरी है। आज की तेज रफ्तार जिंदगी की वजह से बहुत से लोग नींद संबंधी विकारों से जूझ रहे हैं। इसका प्रभाव उनके स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। इस कड़ी में विज्ञानियों को एक बड़ी सफलता हाथ लगी है। दरअसल, नींद संबंधी विकारों की पहचान और इलाज को बेहतर बनाने के लिए विज्ञानियों ने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) अल्गोरिद्म विकसित किया है। यूनिवर्सिटी आफ कोपेनहेगन के कंप्यूटर साइंस विभाग के शोधार्थियों ने डेनिस सेंटर फार स्लीप मेडिसिन के साथ मिलकर इस संबंध में अध्ययन किया है।
नींद संबंधी विकारों में अनिद्रा की स्थिति, स्लीप एपीनिया (सोते समय सांस लेने में अवरोध संबंधी दिक्कतें) तथा नार्कोलेप्सी (तंत्रिकाओं से जुड़े नींद विकार) आम हैं। इन रोगों से ग्रसित अधिकांश लोगों को अपनी बीमारी का पता भी नहीं लगता है। इसलिए उचित इलाज भी नहीं हो पाता है।
एनपीजे डिजिटल मेडिसिन जर्नल में हाल ही में प्रकाशित शोध आलेख के मुख्य लेखक मैथियास पर्सलेव ने बताया कि अल्गोरिद्म बहुत ही सटीक है। हमने कई टेस्ट करके यह देखा कि वह कितना कारगर है। फिलहाल नींद संबंधी विकारों की पहचान के लिए विभिन्न प्रकार के उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है। इन बीमारियों के विशेषज्ञ रातभर में सात-आठ घंटे तक जांच कर जुटाए गए आंकड़ों की समीक्षा करते हैं।
डाक्टर सात-आठ घंटे की नींद को 30 सेकंड के अंतराल में बांटकर नींद के चरणों को वर्गीकृत करते हैं। यथा- आरईएम (रैपिड आइ मूवमेंट) स्लीप, लाइट स्लीप, डीप स्लीप आदि। हालांकि, इस जांच में लंबा समय लगता है, जबकि विज्ञानियों द्वारा विकसित की गई अल्गोरिद्म यह काम चंद सेकंड में कर सकता है।
यह मिलेगी मदद
डेनिस सेंटर फार स्लीप मेडिसिन में न्यूरोलाजी के प्रोफेसर पाउल जेन्नुम ने बताया कि इस प्रोजेक्ट से साबित हुआ है कि ये नींद संबंधी आकलन मशीन लर्निग के माध्यम से बहुत ही सुरक्षित ढंग से किया जा सकता है और यह बहुत ही उपयोगी होगा। इससे जहां समय की बचत होगी, वहीं ज्यादा से ज्यादा रोगियों की सटीक जांच भी हो सकेगी।
इस तरह तैयार किया अलगोरिद्म
नींद संबंधी विकारों के लिए होने वाले पालीसोमनोग्राफी टेस्ट (पीएसजी) के लिए डाक्टरों को डेढ़ से तीन घंटे लगते हैं। इन दिक्कतों को दूर करने के लिए शोधकर्ताओं ने विभिन्न स्रोतों से करीब 20 हजार स्लीप नाइट के आंकड़े जुटा कर उसका इस्तेमाल अल्गोरिद्म में किया है। शोधकर्ताओं ने बताया कि हमने दुनियाभर के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित स्लीप क्लिनिक से अलग-अलग समूहों के रोगियों के डाटा जुटाए हैं। इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि यह अल्गोरिद्म सभी स्थितियों में काम करता है, जबकि मेडिकल डाटा विश्लेषण में इस प्रकार का सामान्यीकरण बहुत बड़ी चुनौती होती है।
क्लिनिकल इस्तेमाल के लिए मंजूरी दिलाने का प्रयास
शोधकर्ताओं ने उम्मीद जताई है कि इस अल्गोरिद्म से डाक्टरों और शोधकर्ताओं को नींद संबंधी विकारों को जानने में काफी मदद मिलेगी। मैथियास पर्सलेव कहते हैं कि इस अल्गोरिद्म के लिए सामान्य क्लिनिकल उपकरणों की मदद से सिर्फ कुछ डाटा जुटाने पड़ते हैं। इसलिए इस साफ्टवेयर का इस्तेमाल क्षेत्र विशेष के हिसाब से भी हो सकता है। शोधकर्ता फिलहाल इस साफ्टवेयर और अल्गोरिद्म के क्लिनिकल इस्तेमाल के लिए मंजूरी दिलाने के प्रयास में लगे हैं। बता दें कि अल्गोरिद्म डाटा का एक पैटर्न होता है, जो वांछित मामले से जुड़े डाटा को प्रस्तुत करता है।