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खुशहाल बचपन में छिपा है सेहतमंद जीवन का राज, शोध में चौंकाने वाले नतीजे आए सामने

अच्छी यादों का हमारी सेहत पर सकारात्मक असर देखा गया है। इसके लिए संभवत: वे कारक जिम्मेदार हो सकते हैं, जिनसे हमारा तनाव कम होता है।

By Amit SinghEdited By: Published: Fri, 09 Nov 2018 02:45 PM (IST)Updated: Fri, 09 Nov 2018 02:45 PM (IST)
खुशहाल बचपन में छिपा है सेहतमंद जीवन का राज, शोध में चौंकाने वाले नतीजे आए सामने
खुशहाल बचपन में छिपा है सेहतमंद जीवन का राज, शोध में चौंकाने वाले नतीजे आए सामने

वॉशिंगटन, प्रेट्र। आमतौर पर यह माना जाता रहा है कि खुशहाल बचपन जीने वाले व्यक्ति का भविष्य भी खुशहाल होने की संभावना रहती है। हालांकि इसके अनेक प्रकार के सामाजिक और आर्थिक कारण हो सकते हैं, लेकिन शोधकर्ताओं ने एक शोध के जरिये कुछ हद तक इसे दर्शाने का प्रयास किया है। उन्होंने यह पाया है कि जिन लोगों की बचपन की यादें बेहद अच्छी होती हैं, खासकर अपने माता-पिता से जिन बच्चों के अच्छे संबंध होते हैं, उन्हें अपनी जिंदगी में आगे चलकर यानी वयस्क होने पर न केवल अपेक्षाकृत सेहतमंद जीवन की प्राप्ति होती है, बल्कि अवसाद और विविध प्रकार की गंभीर शारीरिक बीमारियों का जोखिम बहुत कम हो जाता है।

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प्रसिद्ध विज्ञान पत्रिका ‘हेल्थ साइकोलॉजी’ की हाल ही में प्रकाशित शोध रिपोर्ट में यह बताया गया है कि दुनिया को देखने की एक वयस्क इंसान की चेतना कैसी होती है, इसमें उसकी बचपन की स्मृतियों का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। अमेरिका की मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता विलियम जे चॉपिक का कहना है, ‘ऐसे अनेक तरीके हैं जिनके जरिये अतीत की स्मृतियां हमें जिंदगी के कई मोड़ों पर दिशा-निर्देशित कर सकती हैं।’

चॉपिक आगे कहते हैं, ‘दरअसल हमने यह जानने में सफलता प्राप्त की है कि अच्छी यादों का हमारी सेहत पर सकारात्मक असर देखा गया है। इसके लिए संभवत: वे कारक जिम्मेदार हो सकते हैं, जिनसे हमारा तनाव कम होता है।’ चॉपिक बताते हैं, ‘पूर्व के शोध अध्ययनों में यह दर्शाया गया है कि वयस्क होते युवाओं में अच्छी स्मृतियों और अच्छे स्वास्थ्य के बीच सकारात्मक संबंध रहे हैं। इसमें उनकी कार्य की उच्च गुणवत्ता और व्यक्तिगत संबंधों के साथ अवसाद का कम होना तथा स्वास्थ्य समस्याएं कम होना देखा गया है।’

शोधकर्ता यह जानना चाहते हैं कि उम्र बढ़ने के साथ वयस्कों पर यह कैसे लागू हो सकता है। हालिया शोध में विशेषज्ञों ने इसे ही फोकस किया और बच्चे के विकास में माता-पिता की भूमिका का परीक्षण करने का प्रयास किया है। इसके लिए उन्होंने 22,000 प्रतिभागियों के आंकड़ों का इस्तेमाल किया। इसके लिए उन्होंने 40 वर्ष से अधिक उम्र के वयस्कों पर 18 वर्ष तक और 50 वर्ष से अधिक उम्र के वयस्कों पर छह वर्ष से ज्यादा समय तक अध्ययन किया।

इस नतीजे को हासिल करने के लिए शोधकर्ताओं द्वारा किए गए मौजूदा सर्वेक्षण में अभिभावकों की बच्चों के प्रति लगाव की भावना, उनके समग्र स्वास्थ्य, गंभीर स्वास्थ्य की दशाओं और अवसाद से जुड़े लक्षणों से संबंधित सवालों को शामिल किया गया। दोनों ही आयुवर्गो में शामिल उन लोगों के बच्चों की सेहत ज्यादा अच्छी पाई गई जिनका अपने बच्चों के प्रति ज्यादा लगाव था। चॉपिक यह भी कहते हैं कि कोई वयस्क होता व्यक्ति समय के साथ भले ही बचपन की स्मृतियों को भुलाता जा रहा हो, लेकिन प्रौढ़ होते लोगों को इन स्मृतियों का बेहतर अनुमान लगाना शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिहाज से बेहतर है। अध्ययन में माता और पिता से बच्चे के लगाव के भी अलग-अलग नतीजे दर्शाए गए हैं।


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