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आइएस के आखिरी गढ़ पर वार के बीच इस बाप को सता रहा अपने दो बच्‍चों का डर

सीरिया में आतंकी संगठन आइएस अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है। यहां पर आतंकियों पर एयर स्‍ट्राइक की जा रही है। ऐसे में कुछ लोगों को अपने बच्‍चों की चिंता सता रही है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 05 Mar 2019 12:50 PM (IST)Updated: Tue, 05 Mar 2019 01:42 PM (IST)
आइएस के आखिरी गढ़ पर वार के बीच इस बाप को सता रहा अपने दो बच्‍चों का डर
आइएस के आखिरी गढ़ पर वार के बीच इस बाप को सता रहा अपने दो बच्‍चों का डर

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। सीरिया में आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आइएस) अपनी अंतिम सांसे ले रहा है। देश में मौजूद अपने कब्जे वाले आखिरी शहर बागौज को बचाने के लिए आइएस आतंकी अमेरिकी और सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेस (एसडीएफ) पर लगातारा हमले कर रहे हैं। इसके लिए वह आत्‍मघाती हमलावरों का इस्‍तेमाल कर रहे हैं। इस तरह के कई हमलों को एसडीएफ नाकाम भी कर चुका है। इन आत्‍मघाती हमलावरों में अधिकतर विदेशी आतंकी हैं जो आइएस की विचारधारा से प्रभावित होकर उनसे जुड़े थे। जहां तक एसडीएफ की बात है तो उसने उम्‍मीद जताई है कि जल्‍द ही आइएस के इस आखिरी गढ़ को भी आतंकियों से मुक्‍त करवा लिया जाएगा। आपको यहां पर ये भी बता दें कि एक दिन पहले ही आइएस के इस अंतिम गढ़ पर अमेरिका समर्थित सीरियाई बलों ने एयर स्ट्राइक की है। माना जा रहा है कि इस हमले में काफी संख्‍या में आतंकी मारे गए हैं। लेकिन इन हमलों के बीच कुछ ऐसे भी हैं जिन्‍हें अपने बच्‍चों का डर सता रहा है।

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शिकदर को सता रहा बच्‍चों का डर
इनमें से ही एक हैं बशीरुल शिकदर जिनकी पत्‍नी चार साल पहले अमेरिका से सीरिया आइएस में शामिल होने के लिए चली आई थी। इस दौरान वह अपने दो बच्‍चों को भी साथ ले आई थी। बशीरूल फ्लोरिडा में रहते हैं। उन्‍हें फिलहाल अपने बच्‍चों की चिंता सता रही है। उनकी पत्‍नी हवाई हमलों में मारी जा चुकी है। लेकिन अब तक उनके बच्‍चों का कुछ पता नहीं है। ऐसे में उनके पास बच्‍चों के लिए सलामती की दुआ करने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं बचा है। उन्‍हें उम्‍मीद है कि शायद किसी दिन उनके बच्‍चे वापस उनके पास सही सलामत आ जाएंगे। बशीरूल को शक है कि उनके बच्‍चे उसी बागौज शहर में हैं जिसे आएएस का आखिरी गढ़ बताया जा रहा है। यहां पर फिलहाल आइएस और एसडीएफ के बीच भीषण संघर्ष जारी है।

तीन से चार वर्ष के हैं बच्‍चे
38 वर्षीय शिकदर अमेरिकी होने के बाद भी पूरी तरह से धार्मिक हैं। शिकदर की मार्मिक अपील सुनकर कुछ लोग और संगठन उनके बच्‍चों की तलाश के लिए आगे आए हैं। करीब एक दशक पहले शिकदर बांग्‍लादेश से कनाडा गए थे। इसके बाद वह अमेरिका में शिफ्ट हो गए और वहीं के बनकर रह गए। यहां पर उन्‍होंने बांग्‍लादेश मूल की अमेरिकी महिला रशिदा सौमेया से शादी की। बशीरूल का एक बेटा और एक बेटी है जिनका नाम यूसुफ और जहिरा है।

मक्‍का जाने के बहाने सीरिया पहुंची थी वाइफ
बशीरूल मियामी में आईटी सेक्‍टर से जुड़े हैं। 2015 में उनकी जिंदगी तब बदल गई जब मार्च में उनकी पत्‍नी मक्‍का गई। यहां जाने के लिए ही वह अपने बच्‍चों को साथ लेकर निकली थी। पहले राशिदा अपने पैरेंट्स के यहां गई थी। इसके कुछ दिन बाद जब बशीरुल ने अपनी पत्‍नी के बार में उसके परिजनों से पूछा तो पता चला कि वह वापस जा चुकी है। इसके बाद बशीरुल ने एफबीआई से संपर्क साधा। बाद में पता चला कि उसकी पत्‍नी अपनी बहन और बच्‍चों के साथ पहले तुर्की गई और वहां से आइएस में शामिल होने के लिए सीरिया चली गई। जिस वक्‍त यह सब कुछ हुआ तब उसके बच्‍चे चार और दस माह के थे। कुछ सप्‍ताह बाद सीरिया से बशीरुल के पास फोन आया। दूसरी तरफ से बताया गया कि उनकी पत्‍नी सीरिया में आइएस के इलाके में है।

अकेले बशीरुल ही चिंता में नहीं
बशीरुल अकेले ऐसे इंसान नहीं हैं जिन्‍हें अपनों की चिंता खाए जा रही है। बीते कुछ वर्षों में आइएस ने सीरिया के इस इलाके में जबरदस्‍त तबाही मचाई है। आइएस की जहां कहीं हुकूमत रही वहां पर उसने तबाही का वो मंजर छोड़ा जिसको देखकर भी रुह कांप जाती है। यही वजह थी कि हजारों की तादाद में सीरियाई नागरिकों ने दूसरे देशों में शरण ली है। शमीमा बेगम भी इन्‍हीं में से एक है। शमीमा ने ब्रिटेन में शरण ले रखी है। वहीं होदा मुथाना की तरह कुछ ऐसी भी हैं जिन्‍हें अमेरिका ने अपने यहां पर शरण नहीं दी।

2014 में बड़े हिस्से पर था कब्जा
आपको बता दें कि बागौज को देश में आइएस का अंतिम ठिकाना माना जाता है। इससे पहले 2014 में आइएस ने सीरिया और पड़ोसी देश इराक के एक तिहाई से ज्यादा क्षेत्रफल पर कब्जा कर लिया था। साथ ही उसने इसे अलग इस्लामिक राज्य के तौर पर घोषित कर दिया था। आइएस सरगना अबू बकर अल बगदादी ने खुद को इस भूभाग का खलीफा घोषित कर लिया था। आइएस की क्रूर कार्रवाइयों के बाद विश्व बिरादरी एकजुट हुई और अमेरिका के नेतृत्व में आइएस के खिलाफ अभियान छेड़ा गया। करीब तीन वर्ष की भीषण कार्रवाई में आइएस पर काबू पा लिया गया और उसके कब्जे से ज्यादातर इलाका छुड़ा लिया गया। अब यह संगठन अपनी आखिरी सांसें ले रहा है। 

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