सदी के अंत तक गर्मी से प्रभावित होंगे 120 करोड़ लोग, उठाने होंगे प्रभावी कदम
शोधकर्ताओं ने कंप्यूटर सिमुलेशन के जरिये यह पता लगाया कि 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान होने पर गर्मी और आद्र्रता कैसे पृथ्वी को प्रभावित करते हैं।
वाशिंगटन, प्रेट्र। वायुमंडल में कार्बन का स्तर बढ़ने से गर्मी भी साल-दर-साल बढ़ती जा रही है। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के प्रभावों का आकलन करने वाले एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने चेताया है कि अत्यधिक गर्मी के कारण इस सदी के अंत तक सालाना लगभग 120 करोड़ लोग प्रभावित होंगे। इसका मतलब यह भी है कि वर्ष 2100 तक आज के मुकाबले चार गुना ज्यादा गर्मी पड़नी शुरू हो जाएगी। अमेरिका की रटगर्स यूनिवर्सिटी-न्यू ब्रूंस्विक के शोधकर्ताओं ने कहा कि यह बात इसीलिए भी चिंताजनक है कि क्योंकि यह आंकड़ा औद्योगिक युग शुरू होने से पहले गर्मी से प्रभावित होने वाले लोगों के मुकाबले 12 गुना अधिक है।
जर्नल ‘इन्वायरमेंटल रिसर्च लेटर्स’ में प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बताया है कि बढ़ते वैश्विक तापमान से हीट स्ट्रेस के मामलों की में तेजी से वृद्धि हो सकती है। हीट स्ट्रेस एक ऐसी बीमारी है जो अत्यधिक गर्मी के संपर्क में आने के कारण होती है। इसमें हमारा शरीर गर्मी के अनुकूल अपना तापमान बनाए रखने में असमर्थ हो जाता है और कई बार समय पर उपचार न दिया जाए तो इससे जान पर भी बन आती है। अत्यधिक गर्मी न केवल हमारे शरीर के लिए हानिकारक है बल्कि इससे कृषि, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था को भी नुकसान झेलना पड़ता है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि अब तक हीट स्ट्रेस पर केंद्रित जलवायु पर कई अध्ययन हो चुके हैं पर किसी ने भी गर्मी के साथसाथ आद्र्रता की भूमिका पर बात नहीं की है। रटगर्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता और इस अध्ययन के वरिष्ठ लेखक, राबर्ट ई कोप ने कहा, ‘जब भी हम गर्म ग्रहों के जोखिमों की बात करते हैं, तो यह जरूरी है कि अत्यधिक गर्मी के साथ-साथ उसकी आद्र्रता की भी चर्चा हो, क्योंकि आद्र्रता के भी कम या ज्यादा होने लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।’
ऐसे किया अध्ययन : इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कंप्यूटर सिमुलेशन के जरिये यह पता लगाया कि 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान होने पर गर्मी और आद्र्रता कैसे पृथ्वी को प्रभावित करते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि यदि पृथ्वी के तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है तो वर्तमान में अत्यधिक गर्मी और आर्द्रता का वार्षिक जोखिम लगभग 50 करोड़ लोगों को प्रभावित कर सकता है, जबकि 2 डिग्री सेल्सियस पर गर्म होने पर 80 करोड़ लोग प्रभावित हो सकते हैं।
प्रभावी कदम उठाने की है जरूरत : शोधकर्ताओं ने कहा कि 19वीं शताब्दी के मुकाबले वर्तमान में हमारा ग्रह लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस गर्म हो चुका है और अनुमान है कि इस सदी के अंत तक लगभग तीन डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ सकता है, जिससे 120 करोड़ लोग प्रभावित हो सकते हैं। इसीलिए हमें ग्लोबल वार्मिंग के खतरों को कम करने के लिए आज से ही मिल जळ्लकर प्रभावी कदम उठाने होंगे और जैव-विविधता को बनाए रखना होगा। ताकि आने वाली पीढ़ियों को अत्यधिक गर्मी के कहर से बचाया जा सके।
लगातार बढ़ रही है गर्मी : इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और रटगर्स यूनिवर्सिटी के पूर्व पोस्टडॉक्टोरल एसोसिएट डाएवी ली ने कहा, ‘ ग्लोबल वार्मिंग का हर अंश गर्म और आर्द्र दिनों को लगातार तीव्र बनाता है, जिससे लोग और ज्यादा परेशान होते हैं।’ उन्होंने कहा कि 19वीं सदी के मुकाबले ऐसे दिनों की पिछले दशकों में काफी बढ़ी है।
हीट स्ट्रेस में ठंडा नहीं हो पाता शरीर : ली ने बताया कि हीट स्ट्रेस के कारण हमारा शरीर पसीने से जरिये अपने तापमान को ठंडा नहीं रख पाता। शरीर का तापमान बढ़ने और वायुमंडल के उच्च तापमान के कारण मस्तिष्क और अन्य महत्वपूर्ण अंगों के फेल होने का खतरा बना रहता है। गर्मी के कारण थकावट और ऐंठन होना हीट स्ट्रेस का सबसे सामान्य प्रकार है।