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नारी होने पर नाज है

अभिनेत्री काजोल उन अभिनेत्रियों में से हैं, जो कभी-भी भेड़चाल का हिस्सा नहीं बनी। उन्होने हमेशा अपनी शर्तो पर जिंदगी जी है और अपने कॅरियर को भी वैसे ही दिशा दी है जैसे चाही। अधिकतर बॉलीवुड नायिकाएं उम्र के उस दौर में शादी करती हैं जब वे अभिनय से या तो ब्रेक लेती हैं या फिर फ्री होकर गृहस्थी बसाना चाहती हैं। काजोल ने उस समय शादी की,

By Edited By: Published: Sat, 06 Jul 2013 02:14 PM (IST)Updated: Sat, 06 Jul 2013 03:46 PM (IST)
नारी होने पर नाज है

अभिनेत्री काजोल उन अभिनेत्रियों में से हैं, जो कभी-भी भेड़चाल का हिस्सा नहीं बनी। उन्होने हमेशा अपनी शर्तो पर जिंदगी जी है और अपने कॅरियर को भी वैसे ही दिशा दी है जैसे चाही। अधिकतर बॉलीवुड नायिकाएं उम्र के उस दौर में शादी करती हैं जब वे अभिनय से या तो ब्रेक लेती हैं या फिर फ्री होकर गृहस्थी बसाना चाहती हैं। काजोल ने उस समय शादी की, जब वे अपने कॅरियर के शिखर पर थीं। अपने शादीशुदा जिंदगी से भी वह खुश हैं। न्यासा और युग दो बच्चों की मां बनने के बाद भी कहानी तथा किरदार पसंद आने पर उन्होने फिल्मों में भी काम किया। पिछले दिनों काजोल से मुलाकात हुई। बिना मेकअप के भी वह काफी आकर्षक लग रही थी।

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एक संवेदनशील अभिनेत्री होने के नाते आपको वुमनहुड के प्रति क्या महसूस होता है.? क्या किसी घटना से आप आहत हुईं? किसी कारणवश आपको लगा हो कि आपका महिला होना इससे जुडा हुआ है?

वुमनहुड की तकलीफों या पीड़ाओं से मुझे कभी नहीं गुजरना पड़ा, क्योकि मेरी नानी (शोभना समर्थ), मेरी मां (तनूजा) और अब मैं यानी की तीसरी पीढ़ी हम सभी सशक्त महिलाएं रही हैं। हमारे स्वतंत्र व्यक्तित्व के कारण कभी स्त्रीत्व से परेशानी, उलझनों, पीड़ाओं का सामना करना पड़ा हो ऐसा कभी नहीं हुआ। नानी की अपनी पहचान थी, वो जानी-मानी अभिनेत्री थीं। साथ ही बेहद अच्छी इंसान, प्यारी मां थीं। नानी ने अपनी एक नहीं चार बेटियों की परवरिश अपने मूल्यों पर की। एक औरत को पारिवारिक रिश्तों के साथ अपने कॅरियर का भी वजूद बनाए रखना है, यह सीख नानी को उनकी मां सरोज से विरासत में मिली थी। इन्हीं कारणों से मुझे व्यक्तिगत तौर पर हमेशा से महिला होने पर नाज रहा है। हमारा भारतीय समाज तरक्की तो बहुत कर रहा है, पर महिलाओं के प्रति असंवेदनशील, असहिष्णु हो चुका है। पढे़-लिखे समाज का यह पतन मुझे सोचने पर मजबूर करता है कि बलात्कार, छेड़छाड़, दहेज हत्या आदि सारे गुनाह महिलाओं पर होते हैं.. क्या केवल इसलिए कि महिलाओं को सहने की आदत हो चुकी है.. स्त्रीत्व सॉफ्ट टार्गेट बन चुका है.. लड़कियों को पढ़ाना गांव-खेड़ों में जैसे आज भी गुनाह है, लड़कों को पढ़ाना उनका जन्मसिद्ध अधिकार। यह सोच बरसों से चली आ रही है कि लड़कियां पढ़कर क्या करेंगी..? उन्हें तो चूल्हा-चौका ही देखना है.. जैसे स्त्री होना अपराध है। नारीत्व का यह अपमान, उनकी मजबूरी बन गई है.. ये सब बातें मुझे अंदर से कचोटती हैं।

आपके अनुसार कहां तक बदला है माहौल..? कॅरियर बनाने वाली महिलाओं पर दोहरी जिम्मेदारियां होती हैं। ऐसे में उन्हें क्या करना चाहिए..? प्राथमिकता किसे देनी चाहिए?

मेरी राय में हर महिला को प्राथमिकता खुद को देनी चाहिए। आज महिला काफी पढ़ी-लिखी है, अपने पैरों पर खड़ी है, आकाश छूने की असीमित क्षमताएं हैं उसमें । परिवार को संभालते-संभालते वह स्वयं की सेहत के प्रति लापरवाह हो जाती है। लिहाजा सबसे पहले हर नारी को खुद की सेहत, अपनी जरूरतों और स्वयं की खुशी पर ध्यान देना होगा। बाकी सारी बातें बाद में आती हैं। जहां तक माहौल बदलने का सवाल है तो बड़े शहरों में पति-पत्नी दोनों के कमाऊ होने पर बहुत से पति घरेलू कामकाज में अपनी पत्नी का हाथ बंटाते हैं। यह एक अच्छी पहल है माहौल के बदलने की.. लेकिन यही काफी नहीं है। नारी को उसका उचित सम्मान मिलना जरूरी है। शहरों में हर दूसरी महिला कॅरियर बना रही है, पर शादी और संतान के बाद यह दुविधा उत्पन्न हो जाती है कि वह किसे प्राथमिकता दे.. बड़ी मुश्किल से पाए कॅरियर को या अपने संतान की परवरिश को.. ऐसे में महिला को अपने दिल की आवाज सुननी चाहिए। उसका मन जो चाहे वही वो करे। वैसे इस युग में संतान का जन्म, परवरिश में यदि एक मां अपने कॅरियर से ब्रेक लेना चाहे तो भी हर्ज नहीं, क्योंकि उसे दूसरा मौका मिल रहा है। नारी को उलझन में न रहते हुए अपनी सेहत पर ध्यान देना होगा, क्योंकि वह फिट रहेगी तो परिवार की सेहत संभालेगी।

आज के युग की स्त्री क्या सही दिशा में जा रही है, क्योंकि वह कॅरियर ओरिएंटेड बन चुकी है?

मैंने इस दौर की एक बात खासतौर पर महसूस की है, वह यह कि इस युग में पुरुष और स्त्री दोनों को कॅरियर के मौके मिल रहे हैं। जेंडर बॉयस्ड का समय अब नहीं रहा। टैक्सी चलाना, ऑटोरिक्शा चलाना जैसे कामों से लेकर कॉर्पोरेट सेक्टर, फाइनेंस.. हर क्षेत्र में महिलाएं हैं। शायद ही कोई क्षेत्र ऐसा बचा हो जहां महिलाएं न हों। यह तो हर इंसान की अपनी चॉइस होनी चाहिए कि उसे जीवन में क्या करना चाहिए। फिर वो मर्द हो या औरत। यदि महिला की मर्जी हो तो वो कॅरियर करे। ये सारे सवाल आर्थिक स्थिति पर भी निर्भर होते हैं। मेरी सोच में यदि महिला कॅरियर ओरिएंटेड हो, उसे अपने कॅरियर करने में मानसिक सुकून मिल रहा हो, आत्मसंतुष्टि मिल रही हो तो वो सही दिशा में जा रही है।

आपने अपने हर किरदार को पूरा न्याय दिया है। पर्दे पर पर्दे के बाहर भी.. इस भागदौड़ भरी जिंदगी में आप अपनी खूबसूरती की कैसे देखभाल कर पाती हैं?

आज के दौर की महिलाओं पर अत्यधिक दबाव है, चिंता है। लगभग सारी महिलाएं इन दिनों मल्टी टॉस्किंग होती हैं। एक साथ कई कामों को बखूबी अंजाम देना.. जैसे रोजमर्रा की बात होती है। महिलाएं संवेदनशील होती हैं। इमोशंस, संवेदनाएं, तनाव, भागदौड़, पॉल्यूशन इन सभी का असर त्वचा पर रोजाना होता है। विवाह के बाद मैं मां बनी। वे पल मेरे लिए खुशियों की सौगात तो लाए, पर मेरी त्वचा धीरे-धीरे कांतिहीन हो रही थी। इस दौरान मैंने ओले टोटल इफेक्टस अपनाया। साथ ही मैं दिनभर में कम से कम तीन लीटर पानी पीती हूं। कम से कम मेकअप का प्रयोग करती हूं, रोज टहलती हूं और अहम् बात यह भी है कि मैं हेल्दी डाइट लेती हूं, जिसमें ग्रीन वेजीटेबल्स, चिकन, फिश, सलाद, फल, सूप आदि शामिल होता है। एक दिन वर्क आउट करती हूं तो एक दिन योगा। सामान्य जीवन जीने की कोशिश करती हूं, पारिवारिक खुशियों से मुझे जीवन की खुशियां प्राप्त होती हैं।

क्या महत्वाकांक्षाएं हैं आपकी..?

मैं महत्वाकांक्षी नहीं हूं.. जीवन के हर पल का लुत्फ उठाने में मैंने यकीन किया। हां, अपनी एजूकेशन को पूरा न करने का गम कभी-कभी दुखी कर जाता है मुझे, पर ऊपरवाला यदि आपसे कुछ ले लेता है तो दोगुनी खुशियां भी आपके दामन में डाल देता है।

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