सांप्रदायिक सौहार्द का मिसाल है पंडितपोता इलाके का दुर्गापूजा
कैचवर्ड आस्था -पिछले नौ दशक से हिंदू-मुस्लिम साथ मिलकर करते है मां दुर्गा की अराधना -फि
कैचवर्ड : आस्था
-पिछले नौ दशक से हिंदू-मुस्लिम साथ मिलकर करते है मां दुर्गा की अराधना
-फिल्मी गानों पर रहती है पांबदी, केवल रामायण का पाठ व गीत बजते है
रंजीत कुमार यादव, उत्तर दिनाजपुर : व्रत, पूजा, उत्सव को भी धर्म के आधार पर समाज में बांटा गया है। लेकिन बंगाल के उत्तर दिनाजपुर जिला के पंडितपोता के नंबर ग्राम पंचायत के अमलझाड़ी के दुर्गापूजा की बात ही अलग है। यहां हिंदू-मुस्लिम दोनों मिलकर मां दुर्गा की पूजा अराधना करते है। अक्सर पूजा पंडाल में फिल्मी गीतों को बजते देखा गया है। लेकिन यहां पर अलग ही वातावरण है। पंडाल में पिछले नौ दशक से रामायण का पाठ, भजन व गीत होते है। इस इलाके में अधिकांश लोग लोहार है।
पंडितपोजा में सात दिनों तक मेला लगता है। क्षेत्र के सबसे बुजुर्ग भागवत दास ने दैनिक जागरण को बताया कि पहले सभी लोग दुर्गा पूजा के लिए इकट्ठा होते थे। उन्होंने कहा कि वह बचपन से इस दुर्गा पूजा को देख रहे है और शामिल हो रहें। पहले यह दुर्गा मंडप एक बेरा (ताटी) से बनाया जाता था। धीरे-धीरे इस मंदिर का निर्माण ईंट , काठ , पत्थर से किया जा रहा है। इलाके में लोहार समुदाय के कई परिवार रहते हैं और वे और मुस्लिम समुदाय के लोग यहा इस दुर्गा उत्सव को मिलकर मनाते आ रहें है। मां दुर्गा के प्रति अलग ही आस्था।
स्थानीय पंचायत के प्रधान प्रतिनिधि मोहम्मद राशिद ने कहा-'मैं बचपन से दुर्गापूजा में शामिल होते आया हूं। लेकिन फिलहाल तो कोरोना की वजह से बड़ा कुछ नहीं हो रहा है।लेकिन मैं उम्मीद करता हूं कि इस बार दुर्गा पूजा बेहद खुशनुमा होगा। 'स्थानीय सतनाम कर्मकार ने बताया कि हमारे पूर्वजों ने सबसे पहले इस पूजा की शुरुआत की थी। यहा इलाके में एक कैंप था। उस कैंप में एक पुलिस अधिकारी थे। मेरे पिता सभी ने मिलकर इस पूजा शुरू किया था। यह पूजा तब से चली आ रही है। लगभग 80 से 90 साल की इस पूजा में हर कोई शामिल होता है। यहां रामायण के गीत से ही मां का आह्वान किया जाता है और विदाई के दिन भी रामायण का पाठ होता है। अब दुर्गापूजा में सात दिन रह गए है। तैयारी जोर शोर से हो रही है। मंदिर के प्रांगण में मूर्तिकार प्रतिमा तैयार कर रहें है।
कैप्शन: मंदिर प्रांगण में मां दुर्गा की प्रतिमा की तैयारी