पश्चिम सुदर्शनपुर इलाके में मिले नील कोठी के कुछ भग्नावशेष
कैचवर्ड इतिहास -कुलिक नदी के किनारे ब्रिटिश हुकमरान जबरन किसानों से करवाते थे नील की
कैचवर्ड: इतिहास
-कुलिक नदी के किनारे ब्रिटिश हुकमरान जबरन किसानों से करवाते थे नील की खेती
-पश्चिम सुदर्शनपुर में ही हुआ था नील विद्रोह का सूत्रपात
-इतिहार व पुरातत्व के छात्रों के लिए शोध का विषय बन सकता है यह भग्नावशेष : वृंदावन लाल घोष
संजीव झा,रायगंज: रायगंज के पश्चिम सुदर्शनपुर इलाके में कुलिक नदी के किनारे नील कोठी का भग्नावशेष मिलने से इलाके वासियों में उत्सुकता देखी जा रही है। इतिहास व पुरातात्विक विषयों के जानकार इसे शोध का उत्स मान रहे है,वहीं कई लोग पर्यटन की दृष्टि से इसे अहम समझ रहे हैं। किंवदंति के अनुसार 18वीं सदी के ब्रिटिश शासन काल में कुलिक नदी के किनारे किसानों से जबरन नील की खेती कराया जाता था। अंग्रेजी हुकूमत के बर्बर अत्याचार से प्रताड़ित किसान के द्वारा नील विद्रोह की पृष्ठभूमि यहा तैयार हुई थी। जिसका साक्ष्य आज भी विद्यमान है, जिसमें नील तैयार करने के लिए बनाए गए भट्ठी, हौज, कारखाना का मकान और विशाल चौताल का भग्नावशेष प्रस्तुत कर रहा है। इतिहासकार वृन्दावन लाल घोष ने बताया कि रायगंज के सुदर्शनपुर इलाके में कुलिक नदी के किनारे मिट्टी के नीचे दफन नील कोठी का भग्नावशेष इतिहास के कई गाथाओं का दास्तान बया कर सकता है। इसका सही तरीके से खनन और संस्कार किया जाय तो इससे मिले साक्ष्य इतिहास के छात्रों के लिए शोध का अहम विषय हो सकता है। साथ ही यह शिक्षागत यायावरों एवं पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन सकता है। इलाके की बुजुर्ग महिला सिंधू राय का कहना है कि उसने बचपन में सुना था कि कुलिक नदी के किनारे की जमीन में नील की खेती होती थी। उस समय कुलिक नदी मार्ग से व्यापारिक गतिविधि का संचालन होता था। यह भग्नावशेष उसी का साक्ष्य है, जो पहले मिट्टी के ढेर में दफन था और कालातर में उजागर हो रहा है। समाजसेवी कौशिक भट्टाचार्य ने कहा कि यदि सरकार इसका खनन और संरक्षण करती है तो पर्यटन के लिए उत्तम स्थान बन पाएगा। इससे न केवल ऐतिहासिक धरोहर का संरक्षण होगा बल्कि इलाके का विकास भी हो पाएगा।
कैप्शन : नील कोठी का भग्नावशेष