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पुरुषों के हक के लिए उठायी महिला ने आवाज कहा, इन्‍हें भी है न्‍याय का अधिकार

पुरुषों के अधिकार के लिए लड़ रहीं पद्मिनी धारा 498 ए के समानांतर पुरुषों के लिए भी कानून बनाने को जारी है आंदोलन अपनी रचनाओं के माध्यम से बदलाव लाने की भी कर रही हैं कोशिश।

By Babita kashyapEdited By: Published: Thu, 13 Aug 2020 09:39 AM (IST)Updated: Thu, 13 Aug 2020 09:39 AM (IST)
पुरुषों के हक के लिए उठायी महिला ने आवाज कहा, इन्‍हें भी है न्‍याय का अधिकार
पुरुषों के हक के लिए उठायी महिला ने आवाज कहा, इन्‍हें भी है न्‍याय का अधिकार

कोलकाता, राजीव कुमार झा। समाज के प्रत्येक पुरुष और महिला को न्याय मांगने का अधिकार है। इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि हर वर्ग, उम्र, जाति और धर्म की महिलाओं पर अमानवीय अत्याचार हुए हैं, लेकिन इसके लिए निर्दोष पुरुषों को दंड नहीं मिलना चाहिए। इस विचार के साथ लेखिका व समाजसेविका पद्मिनी दत्ता शर्मा पुरुषों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ मुहिम चला रही हैं। इसके तहत वे घरेलू हिंसा के शिकार पुरुषों की आवाज को मानवाधिकार संगठन से लेकर सरकारी विभागों एवं न्यायालयों तक पहुंचाने में जुटी हुई है। 

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 उनकी गतिविधियों को देखते हुए ऑल इंडिया ह्यूमन राइट्स ने अपने पुरुष प्रकोष्ठ की पश्चिम बंगाल प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष उन्हें नियुक्त किया है। इस पर पद्मिनी दत्ता शर्मा का कहना है कि यह नई जिम्मेदारी मिलने से उन्हें पुरुषों के अधिकार के लिए काम करने के और अधिक अवसर मिलेंगे। उनके संगठन में अनुभवी अधिवक्ता हैं जो पुरुषों के लिए कानूनी लड़ाई में मदद करते हैं। भारतीय दंड विधान की धारा 498ए के समानांतर पुरुषों के लिए भी कानून होना चाहिए जिसके लिए पद्मिनी आंदोलनरत है। उनका कहना है कि हाल के दिनों में पुरुषों पर उनकी पत्नी, पार्टनर या प्रेमिकाओं द्वारा तरह- तरह से यातनाएं की गई है। कई धूर्त महिलाओं ने अपने जीवनसाथी, भागीदारों और बॉयफ्रेंड्स से मौद्रिक और अन्य लाभ लेने के लिए 498ए का घोर दुरुपयोग किया है। 

इन महिलाओं ने पुरुषों के खिलाफ झूठे आरोप लगाने के लिए गुंडागर्दी, ब्लैकमेल, झूठ बोलना और मनगढ़ंत सहानुभूति वाली कहानियां गढ़ी है। लेकिन सच तो यह है कि इन पुरुषों में से कोई हमारा बेटा, चाचा और भाई है। इसलिए इन्हें न्याय मिलना चाहिए। 

काउंसलिंग कर अब तक 90 परिवारों को बिखरने से बचाया 

कोलकाता की रहने वाली पद्मिनी न सिर्फ पुरुषों के हक के लिए कानूनी लड़ाई लड़ती हैं बल्कि अपनी रचनाओं से भी मानसिक बदलाव कर समस्या को हल करने की कोशिश करती हैं। इसके लिए वे कई किताबें लिख चुकी हैं। घरेलू विवाद के कारण दांपत्य जीवन बर्बाद ना हो जाए, इसके लिए वे काउंसलिंग भी करती हैं।काउंसलिंग कर अब तक वे लगभग 90 परिवारों को बिखरने से बचा चुकी हैं। वे अपनी पुस्तकों के माध्यम से लोगों की मानसिकता कुछ इस तरह से बदल देना चाहती है कि तलाक या परिवार टूटने की कभी नौबत नहीं आए। अंतरकलह से जूझ रहे कई दंपतियों से उन्होंने इंटरनेट के माध्यम से संपर्क कर दोनों पक्षों की काउंसलिंग की है। कई लोगों ने खुद में सुधार लाकर परिवार को बिखरने से बचा लिया है। ऐसे विषय पर उन्होंने कई किताबें भी लिखी है। इसका फायदा कुछ दंपतियों को हुआ है।

अब तक लिख चुकी हैं 10 पुस्तकें 

पद्मिनी अभी तक 10 पुस्तकें लिख चुकी हैं। उन्होंने अपनी हर पुस्तक में सामाजिक समस्याओं पर कुठाराघात किया है और उसके समूल नष्ट करने के लिए लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया है। 'स्पाइस अप  योर मैरिज' नाम की पुस्तक में उन्होंने परिवारों के टूटने के कारण व समस्या को बताते हुए इसे रोकने व पति- पत्नी के खुशहाल जीवन के उपाय भी सुझाए हैं।

पद्मिनी का कहना है कि महिलाओं द्वारा पुरुषों के खिलाफ कानून के दुरुपयोग के कारण कई युवक शादी नहीं करना चाहते। नई उम्र में युवक-युवती संपर्क में आते हैं, उनमें प्रेम संबंध स्थापित हो जाता है। बाद में विवाद होने पर युवक पर युवतियां दुष्कर्म का केस दर्ज करा देती हैं। यदि कानून सभी के लिए बराबर है तो फिर ऐसे मामलों में युवक ही जिम्मेदार क्यों? पुलिस को युवक-युवती दोनों के खिलाफ दुष्कर्म और छेड़छाड़ का मामला दर्ज करना चाहिए।

कई परेशान व प्रताड़ित पुरुषों को रोजगार भी दिला चुकी हैं पद्मिनी 

दांपत्य विवाद के मामले में पद्मिनी पति-पत्नी को बैठाकर बातचीत करती हैं। इससे बातचीत में समझ आ जाता है कि दहेज का मामला है या नहीं। युवतियों द्वारा थाने में छेड़छाड़ या दुष्कर्म की शिकायत करने पर युवती से चर्चा करती हैं। इसमें पता चल जाता है कि युवती झूठ बोल रही है या सच। वे महानगर के कई परेशान व प्रताड़ित पुरुषों के लिए रोजगार की भी व्यवस्था कर मदद कर चुकी हैं।


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