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West Bengal: सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सोनागाछी की यौनकर्मियों ने जताई खुशी

यौनकर्मियों के कल्याण के लिए काम करने वाले संगठन महिला दुर्बार समन्वय समिति की अधिकारी की वकालत अधिकारी महाश्वेता मुखर्जी ने कहा कि संगठन के 27 साल के संघर्ष को आखिरकार फल मिला है। मुखर्जी ने हालांकि कहा कि ऐसे जगहों को अभी भी अदालत ने गैरकानूनी करार दिया है।

By Sumita JaiswalEdited By: Published: Sat, 28 May 2022 01:13 PM (IST)Updated: Sat, 28 May 2022 01:23 PM (IST)
West Bengal: सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सोनागाछी की यौनकर्मियों ने जताई खुशी
कहा, गरिमापूर्ण जीवन जीने का मिलेगा अधिकार, सांकेतिक तस्‍वीर।

कोलकाता, राज्य ब्यूरो। एशिया के सबसे बड़े रेडलाइट एरिया सोनागाछी के वर्करों ने अपने काम को पेशे के रूप में मान्यता देने के सुप्रीम कोट के फैसले पर खुशी जताते हुए इसे गरिमापूर्ण जीवन की दिशा में कदम बताया है। ऐसे वर्करों के कल्याण के लिए काम करने वाले संगठन महिला दुर्बार समन्वय समिति की अधिकारी की वकालत अधिकारी महाश्वेता मुखर्जी ने कहा कि संगठन के 27 साल के संघर्ष को आखिरकार फल मिला है। मुखर्जी ने हालांकि कहा कि वेश्यालयों को अभी भी अदालत ने गैरकानूनी करार दिया है।

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संगठन की अध्यक्ष बिसाखा लस्कर ने कहा- 'उच्चतम अदालत के फैसले से उन महिलाओं को राहत मिलेगी, जिन्हें इसे पेशे के रूप में चुनने के लिए नियमित रूप से परेशान किया जाता है। सोनागाछी से बाहर निकलते समय ऐसी वर्कर ही नहीं, ग्राहकों को भी पुलिसकर्मियों द्वारा परेशान किया जाता है। मुझे उम्मीद है कि यह फैसला ऐसे वर्करों के लिए सम्मानजनक जीवन की दिशा में एक कदम होगा। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पुलिस बलों को रेड लाइट एरिया के वर्करों के साथ सम्मानजनक व्यवहार करने और मौखिक या शारीरिक रूप से दुव्र्यवहार नहीं करने का निर्देश दिया है। अदालत ने यह भी कहा कि वेश्यालयों पर छापामारी के दौरान ऐसे वर्करों को गिरफ्तार, दंडित या परेशान नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि स्वैच्छिक यौन अवैध नहीं है और केवल वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है। '

ऐसी ही याैनकर्मी की बेटी संगीता पाल ने कहा कि किसी भी तरह की गलती नहीं होने के बावजूद उन्हें लंबे समय से नीची नजर से देखा जाता है। कोई भी अपने फैसले रेड लाइट एरिया की वर्करों पर नहीं थोप सकता। जरूरत पडऩे पर वे अपनी राय रख सकते हैं। पेशे से जुड़ी माताओं के साथ-साथ उनके बच्चों को अब अलग नहीं रहना पड़ेगा। फैसले को मान्यता देने वाली न्यायपालिका और हमें स्वीकार करने वाला समाज दो अलग-अलग चीजें हैं। यह एक लंबी लड़ाई है। हमने अभी एक कदम आगे बढ़ाया है।'


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