Move to Jagran APP

Bengal Assembly Elections 2021: पांच मोर्चों पर तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी को मिलेगी टक्कर

Bengal Assembly Elections 2021 खबर तो यह भी बंगाल की हवा में तैर रही है कि भाजपा को हराने के लिए यहां भी बिहार की तरह महागठबंधन हो सकता है। तृणमूल इसमें शामिल होगी इसकी सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 24 Nov 2020 09:06 AM (IST)Updated: Tue, 24 Nov 2020 09:06 AM (IST)
Bengal Assembly Elections 2021: पांच मोर्चों पर तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी को मिलेगी टक्कर
आगामी वर्ष होने वाले चुनावी रण में ममता बनर्जी को पांच मोर्चो पर लोहा लेना होगा। फाइल

जयकृष्ण वाजपेयी। Bengal Assembly Elections 2021 बंगाल की सत्ता पर तीसरी बार काबिज होने की डगर मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी के लिए इस बार आसान नहीं है। इसके एक-दो नहीं, बल्कि पांच-पांच कारण हैं। आगामी वर्ष होने वाले चुनावी रण में उन्हें पांच मोर्चो पर लोहा लेना होगा और सभी मोर्चे ऐसे हैं, जिनसे निपटना लोहे के चने चबाने जैसा है। कारण, तृणमूल नेतृत्व को इन मोर्चो पर सीधी लड़ाई लड़नी होगी और थोड़ी सी भी कमी रही तो नतीजे बदलते देर नहीं लगेगी।

loksabha election banner

सबसे पहले ममता को अपने एक दशक के शासन को लेकर एंटी इनकंबेंसी फैक्टर (व्यवस्था विरोधी कारक) से दो-चार होना पड़ेगा, क्योंकि 10 वर्षो के तृणमूल शासन में ऐसी कई चीजें हुई हैं, जो एंटी इनकंबेंसी की चिंगारी को प्रचंड आग में बदल सकती है। उस चिंगारी को दावानल बनने से रोकना होगा। ममता के सामने दूसरी चुनौती पार्टी में व्याप्त अंतर्द्वद्व पर अंकुश लगाने की है। उत्तर से लेकर दक्षिण बंगाल और जंगलमहल तक तृणमूल के भीतर सबकुछ ठीक नहीं चल रहा। जिस सिंगुर व नंदीग्राम आंदोलन ने ममता को सीएम की कुर्सी तक पहुंचाया, वहीं के तृणमूल नेता पार्टी नेतृत्व तथा चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) के फैसले से नाराज चल रहे हैं। अब तक तृणमूल के कई मंत्री व विधायक नाखुशी जता चुके हैं।

मंत्री शुभेंदु अधिकारी तो पूरी तरह बगावत पर उतारू हैं। उधर सिंगुर के दो प्रमुख विधायक रवींद्रनाथ भट्टाचार्य व बेचाराम मन्ना भी खफा हैं। इसी तरह कई जिलों में गुटबाजी व अंदरूनी लड़ाई छिड़ी है। यह तो अभी की स्थिति है। जब चुनावी टिकट का एलान होगा तो हालात क्या होंगे, इसका अंदाजा अभी जारी उठापटक से सहज ही लगाया जा सकता है। अगर इन दोनों से निपट भी लिए तो तीसरा अहम और बड़ा मोर्चा भाजपा है, जो बिहार चुनाव में जीत के बाद पूरी ताकत के साथ बंगाल में लड़ाई लड़ रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह तक के लिए बंगाल चुनाव काफी अहम है और अभी से तृणमूल को मात देने के लिए भाजपा का चुनावी कार्य शुरू है। चौथा मोर्चा ममता के लिए ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी हैं, जिन्होंने बिहार में बंगाल की सीमा से सटे मुस्लिम बहुल इलाकों में पांच विधानसभा सीटें जीतने के बाद बंगाल में भी चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। उन्होंने बंगाल की 75 फीसद मुस्लिम आबादी वाले मुर्शीदाबाद, 65 फीसद आबादी वाले मालदा, करीब 40 फीसद आबादी वाले उत्तर व दक्षिण दिनाजपुर समेत कई और जिलों में प्रत्याशी उतारने की बात कही है।

बंगाल में करीब 30 फीसद मुस्लिम वोटर हैं, जो करीब 100-110 सीटों पर प्रभावी हैं। वर्ष 2011 व 2016 के विधानसभा चुनावों में मुस्लिम वोटरों ने ममता को वोट दिया था, जिससे वह सत्ता तक पहुंची थीं। ओवैसी के मैदान में उतरने पर तृणमूल कांग्रेस की मुस्लिम वोट बैंक पर पकड़ कमजोर हो सकती है। वर्ष 2011 में वाममोर्चा को हराने के बाद से ममता के नेतृत्व वाली पार्टी को ही अल्पसंख्यक मतों का फायदा होता आ रहा है। हालांकि कांग्रेस व वाममोर्चा को भी कुछ मुस्लिम वोट मिलते रहे हैं। मुर्शीदाबाद और मालदा, इन दोनों जिलों में कांग्रेस की पकड़ रही है, लेकिन ओवैसी के उतरने से लड़ाई काफी दिलचस्प हो सकती है। तृणमूल नेताओं का तर्क है कि ओवैसी का मुसलमानों पर प्रभाव हिंदी और उर्दूभाषी समुदायों तक सीमित है, जो राज्य में मुस्लिम मतदाताओं का सिर्फ छह फीसद है।

बांग्लाभाषी मुस्लिम मतदाता तृणमूल के लिए हमेशा फायदेमंद रहे हैं। इनमें से अधिकांश ने पार्टी के पक्ष में मतदान किया है, जो भगवा दल के विरोध में हमेशा उनके लिए विश्वसनीय रहे हैं। वरिष्ठ मुस्लिम नेताओं का कहना है कि एआइएमआइएम के यहां चुनाव लड़ने से समीकरण यकीनन बदल सकता है। ओवैसी की पार्टी के नेताओं का कहना है कि राज्य के 23 जिलों में से 22 में उन्होंने अपनी इकाइयां स्थापित कर ली हैं। वे लोग बंगाल में चुनाव लड़ेंगे और इस बाबत रणनीति तैयार कर रहे हैं। ओवैसी ने ममता के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन की पेशकश करते हुए कहा है कि उनकी पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को हराने में तृणमूल की मदद करेगी। तृणमूल ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

बिहार चुनाव के नतीजे के बाद ओवैसी के बयान पर तृणमूल के वरिष्ठ नेता व सांसद सौगत रॉय का कहना है कि ओवैसी भाजपा की बी टीम है और यहां उसका कुछ नहीं होने वाला। पांचवां मोर्चा है कांग्रेस-वामपंथी गठबंधन, इससे भी ममता को निपटना होगा, क्योंकि ओवैसी के बाद मुस्लिम वोट यह गठबंधन भी बांट सकता है, जिसका लाभ सीधा भाजपा को होगा जैसाकि पिछले लोकसभा चुनाव में मालदा, उत्तर व दक्षिण दिनाजपुर में हुआ था। 

[स्टेट ब्यूरो प्रमुख, बंगाल]


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.