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West Bengal: मुस्लिम कारीगरों के हाथों संवर रहा 200 साल से अधिक पुराना शांतिनिकेतन का लक्ष्मी-जनार्दन मंदिर

कारीगर की कोई जाति नहीं होती कोई धर्म नहीं होता। शांतिनिकेतन के सुरुल में एक मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य इसकी मिसाल पेश कर रहा है। यहां के छोटे सरकार परिवार के 200 साल से ज्यादा पुराने लक्ष्मी-जनार्दन मंदिर को मुस्लिम समुदाय के कारीगरों का एक समूह संवार रहा है।

By Sumita JaiswalEdited By: Published: Sat, 02 Jul 2022 12:56 PM (IST)Updated: Sat, 02 Jul 2022 07:15 PM (IST)
West Bengal: मुस्लिम कारीगरों के हाथों संवर रहा 200 साल से अधिक पुराना शांतिनिकेतन का लक्ष्मी-जनार्दन मंदिर
इस टेराकोटा मंदिर की दीवारों पर उकेरे गए हैं रामायण के चित्र। जागरण फोटो।

कोलकाता, इंद्रजीत सिंह। कारीगर की कोई जाति नहीं होती, कोई धर्म नहीं होता।  शांतिनिकेतन के सुरुल में एक मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य इसकी मिसाल पेश कर रहा है। यहां के छोटे सरकार परिवार के 200 साल से ज्यादा पुराने लक्ष्मी-जनार्दन मंदिर को मुस्लिम समुदाय के कारीगरों का एक समूह संवार रहा है। मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य एकता की अनोखी मिसाल पेश कर रहा है।

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 दरअसल लंबे समय तक खराब रख-रखाव के अभाव कारण मंदिर जीर्ण-शीर्ण हो गया है। सदियों पुराना टेराकोटा मंदिर ढहने की कगार पर था। छोटे सरकार परिवार के सदस्यों के अनुसार उन सभी ने इस प्राचीन मंदिर की विरासत, कला और संस्कृति को संरक्षित करने के लिए इसका जीर्णोद्धार करने का फैसला किया। समस्या यह थी कि इस टेराकोटा मंदिर का जीर्णोद्धार कौन सा कारीगर करेगा? बिना अनुभवी कारीगर के यह काम कोई नहीं कर सकता है। काफी खोजबीन के बाद मुर्शिदाबाद से कारीगरों का एक समूह लाया गया जो प्राचीन कला से मंदिर के जीर्णोद्धार करने में माहिर हैं। छोटे सरकार के घर का लक्ष्मी-जनार्दन मंदिर अब इन मुस्लिम कारीगरों के हाथों के स्पर्श से संवर रहा है। कारीगर मोहम्मद ताजिम शेख, जिनकी देखरेख में मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा है, का कहना कि हमने बेलूर मठ, स्वामी विवेकानंद के घर, विभिन्न मस्जिदों और चर्चों में भी काम किया है। चाहे मस्जिद हो या मंदिर, कला हमारा काम है।

पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है मंदिर :

छोटे सरकार परिवार के सूत्रों के अनुसार भरत चंद्र सरकार अठारहवीं शताब्दी की शुरुआत में बर्द्धमान के नीलपुर क्षेत्र से सुरुल आए थे। उनके पुत्र कृष्णहरि सरकार एक धर्मपरायण व्यक्ति थे। जमींदारी स्थापित करने के अलावा उन्होंने सुरुल क्षेत्र में कई टेराकोटा मंदिर बनवाए। इन मंदिरों में से एक है लक्ष्मी-जनार्दन मंदिर। मंदिर पर विभिन्न टेराकोटा डिजाइन खुदे हुए हैं, जो पर्यटकों का ध्यान भी अपनी ओर आकर्षित करते हैं। तीन मंजिला मंदिर के प्रवेश द्वार की दो दीवारों पर रामायण के विभिन्न चित्र उकेरे गए हैं। कहीं न कहीं उस काल के व्यापार और वाणिज्य के विभिन्न दृश्य देखने को मिलते हैं। इसके अलावा मंदिर को लेकर कई तरह की पौराणिक कथाएं भी सामने आई हैं।


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