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West Bengal Coronavirus Lockdown effect:बुजुर्गों ने जताई कोरोना से जल्द ही बाहर निकलने की उम्मीद

भारत के विभाजन और 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम तक देख चुके राज्य के कुछ बुजुर्ग लोगों ने कोरोना महामारी को लेकर दुनियाभर में छाये संकट से शीघ्र निकलने की उम्मीद जताई है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 06 Apr 2020 03:01 PM (IST)Updated: Mon, 06 Apr 2020 03:01 PM (IST)
West Bengal Coronavirus Lockdown effect:बुजुर्गों ने जताई कोरोना से जल्द ही बाहर निकलने की उम्मीद
West Bengal Coronavirus Lockdown effect:बुजुर्गों ने जताई कोरोना से जल्द ही बाहर निकलने की उम्मीद

कोलकाता, राज्य ब्यूरो। सन् 1929 के वैश्विक मंदी से लेकर 1943 के बंगाल अकाल,1947 में भारत के विभाजन और 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम तक देख चुके राज्य के कुछ बुजुर्ग लोगों ने कोरोना महामारी को लेकर दुनियाभर में छाये संकट से शीघ्र निकलने की उम्मीद जताई है।

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अपने जीवन के 100 वसंत पार कर चुके या उनके करीब पहुंच चुके कोलकाता के ये बुजुर्ग कोरोना महामारी को लेकर बिलकुल भी विचलित नहीं हैं। उन्हें उम्मीद है कि दुनिया और देश इस संकट से जल्द ही निकल जाएगा। अपने समय के लोकप्रिय शास्त्रीय गायक, 104 वर्षीय दिलीप कुमार रॉय ने अपने गरियाहाट निवास से कहा कि मैं बहुत बीमार हूं और मैं अपने अंतिम दिन गिन रहा हूं। लेकिन मुझे उम्मीद है कि दुनिया इस संकट से निकल जाएगी, जैसा कि अतीत में कई बार हुआ है।

हालांकि, रॉय ने कहा कि उन्होंने कभी भी इतने लंबे समय तक का बंद नहीं देखा। जादवपुर विश्वविद्यालय के छात्रों के पूर्व डीन 99 वर्षीय हिमेंदु बिश्वास का कहना है कि लॉकडाउन की वजह से सुबह की सैर और अखबार पढ़ने के उनकी दैनिक क्रियाएं प्रभावित हुई हैं।

बिश्वास का कहना है कि समाचार पत्रों से अपडेट प्राप्त करने की मेरी दिनचर्या प्रभावित हुई है, क्योंकि मैंने एक युवा लड़के को काम पर रखा था, जो हर दिन आता था और मेरे लिए अखबार पढ़ता था। लेकिन मैं महत्वपूर्ण समाचारों के लिए टेलीविजन चैनल देख लेता हूं।

पूर्व शिक्षक अशोक राय (99) का कहना है कि उन्होंने इससे पहले ऐसा बंद नहीं देखा। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति तो तब भी नहीं थी जब जापानियों ने हवाई हमले किए थे और सेना के जवानों ने लोगों के बाहर निकलने पर रोक लगा दी थी। उन्होंने कहा कि लोगों को बेघर और गरीबों को खाना खिलाते हुए देखकर अच्छा लगता है। 1943 के अकाल के दौरान मैं भी अपने कुछ दोस्तों के साथ लोगों के बीच खिचड़ी बांटता था। 


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