प. बंगाल में लोकसभा चुनाव अकेले लड़ेगी कांग्रेस, राहुल गांधी के हरी झंडी का इंतजार
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सोमेन मित्रा ने साफ कर दिया है कि राज्य में पार्टी लोकसभा चुनाव अपने दम पर अकेले लड़ेगी।
कोलकाता, जागरण संवाददाता। पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल या माकपा के साथ कांग्रेस के संभावित चुनावी गठबंधन के तमाम कयासों पर विराम लग गया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सोमेन मित्रा ने साफ कर दिया है कि राज्य में पार्टी लोकसभा चुनाव अपने दम पर अकेले लड़ेगी।
राज्य में पार्टी की सांगठनिक मजबूती को ध्यान में रखते हुए प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व ने यह फैसला लिया है। इसकी जानकारी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को दे दी गई है। अब इस मामले में उनकी हरी झंडी का इंतजार है। उम्मीद है अगले सप्ताह तक कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की ओर से इस पर सहमति दे दी जाएगी। दो माह पहले प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद सोमेन मित्रा ने जब दिल्ली जाकर राहुल गांधी से मुलाकात की थी, तब उन्होंने स्पष्ट किया था कि चुनावी गणित को परे हटाकर प्रदेश में पार्टी की सांगठनिक मजबूती पर ध्यान दीजिए।
इसके बाद राहुल गांधी ने यह भी कहा था कि प्रदेश स्तर पर पार्टी की रणनीति प्रादेशिक नेताओं के फैसले के अनुसार ही तय की जाएगी। ऐसे में सोमेन मित्रा के इस बयान के बाद यह साफ हो चला है कि पश्चिम बंगाल में अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने के कांग्रेस के फैसले को राहुल गांधी भी मानेंगे।
सोमेन मित्रा ने कहा कि भले ही दूसरे राज्यों में पार्टी क्षेत्रीय स्तर पर गठबंधन कर रही है, लेकिन वहां के हालात और पश्चिम बंगाल के हालात में अंतर है। यहां की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल ने लगातार कांग्रेस के जीते हुए उम्मीदवारों को अपने खेमे में मिलाया है और पार्टी को कमजोर करने की कोशिश की है। ऐसे में अगर उनके साथ गठबंधन किया जाता है तो इससे भले ही चुनावी फायदा मिले, लेकिन पार्टी के अस्तित्व के लिए खतरा उत्पन्न होगा। इससे राज्य में संगठन की मजबूती और अधिक कम होगी।
दूसरी ओर माकपा के साथ गठबंधन भी पार्टी के लिए बहुत अधिक लाभदायक नहीं है। उन्होंने कहा कि 2016 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने वाममोर्चा के साथ गठबंधन किया था लेकिन उसका बहुत अधिक लाभ नहीं हुआ। सच्चाई यह है कि माकपा भी अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। ऐसे में उनके साथ गठबंधन करने पर पार्टी नेतृत्व के अंदर भी फूट पड़ेगी और लोगों के बीच भी गलत संदेश जाएगा। इसलिए लोकसभा का चुनाव पार्टी अपने दम पर लड़ेगी। इसे लेकर पार्टी के प्रदेश स्तर के शीर्ष नेतृत्व के साथ कई दौर की बैठकें हुई हैं। इसके बाद यह निर्णय लिया गया है। सोमन ने कहा कि उत्तर प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में पार्टी ने क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन किया है और वहां इसका लाभ भी मिला है, क्योंकि उन क्षेत्रों में पार्टी की सांगठनिक मजबूती अच्छी है। जबकि पश्चिम बंगाल की परिस्थिति इसके ठीक उलट है।
मित्रा ने कहा, राहुल गांधी ने मुझे संगठन की मजबूती सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था। इसको ध्यान में रखते हुए ही यह फैसला लिया गया है। हो सकता है इससे लोकसभा चुनाव में हमें बहुत अधिक सीटें नहीं मिले। लेकिन सांगठनिक तौर पर पार्टी नए सिरे से मजबूत बनेगी।
ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्यों में से एक और प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शुभंकर सरकार ने बताया कि इस फैसले से एक बात तय है कि भले ही लोकसभा चुनाव में हमें कम सीटें मिले, लेकिन पार्टी नए सिरे से राज्य में मजबूत होगी। प्रदेश कांग्रेस के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन से पार्टी इसलिए भी पीछे हट रही है। क्योंकि यहां गठबंधन होने के बाद तृणमूल कांग्रेस की ओर से 04 से अधिक सीटें कांग्रेस को मिलेंगी।
इसकी उम्मीद है बहुत कम है क्योंकि वर्तमान में राज्य में केवल 04 सीटों पर ही कांग्रेस का कब्जा है। करीब 10 सालों से कांग्रेस के कार्यकर्ता और नेता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए छटपटाते रहे हैं। लेकिन 2001, 2009 और 2011 में तृणमूल कांग्रेस तथा 2016 में माकपा से गठबंधन होने की वजह से अधिकतर सीटों पर कांग्रेस अपना प्रत्याशी नहीं दे सकी। कई जगहों पर पार्टी का चुनाव चिन्ह भी नहीं था।
इससे राज्य भर के कार्यकर्ताओं का मनोबल भी कम हुआ है और लोगों के बीच कांग्रेस के अस्तित्व को लेकर भी काफी अविश्वास पैदा हो चुका है। इसीलिए संगठन ने आने वाला लोकसभा चुनाव अपने दम पर लड़ने का फैसला लिया गया है। ताकि राज्य भर में कार्यकर्ताओं को नए सिरे से उत्साहित किया जा सके।