किलो के हिसाब से बिकेंगी दो करोड़ मूल्य की किताबें, सरकार का आर्डर मिले बिना ही की थी किताबों की छपाई
बिना आर्डर मिले ही विश्वभारती के पुस्तक विभाग ने छपवा दी 9.20 लाख किताबें जांच को गठित की गई थी विशेष कमेटी तत्कालीन निदेशक पर गड़बड़ी का आरोप
राज्य ब्यूरो, कोलकाताः विश्वभारती विश्वविद्यालय ने नौ लाख से अधिक किताबों को किलो के हिसाब से बेचने का निर्णय लिया है। करीब नौ वर्ष पहले के पाठ्यक्रम संकलन, परिवेश परिचय, सजहपाठ जैसी 12 किताबों की छपाई पर दो करोड़ रुपये खर्च हुए थे। यह किताबें बिना आर्डर के कैसे छापी गईं, इस मुद्दे को विश्वविद्यालय की कार्यकारी समिति के समक्ष वर्तमान कुलपति विद्युत चक्रवर्ती ने सामने लाया था। पिछले वर्ष 29 सितंबर को इस किताब प्रकाशन में गड़बड़ी के मुद्दे पर विश्वभारती कार्यकारी समिति में राष्ट्रपति द्वारा मनोनित सदस्य सुशोभन बंद्योपाध्याय के नेतृत्व में छह सदस्यीय जांच कमेटी गठित की गई थी।
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पुस्तक विभाग की तत्कालीन निदेशक पर कार्रवाई, रोकी गई पेंशन
इसके बाद कमेटी ने जांच शुरू की और विश्वभारती विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुछ अधिकारियों को तलब कर पूछताछ की। जांच में पुस्तक विभाग की तत्कालीन निदेशक कुमकुम भट्टाचार्य की गड़बड़ी सामने आई। इसके बाद कुमकुम की पेंशन विश्वविद्यालय ने रोक दी। जांच कमेटी के प्रमुख सुशोभन बंद्योपाध्याय ने कहा कि जांच से प्रमाणित हुआ है कि बिना किसी आर्डर के लाखों किताबें छपवाई गई। यही नहीं जांच कमेटी ने तत्काल उक्त सभी किताबों को गोदाम से निकालकर राइट अॉफ करने का निर्देश दिया है। क्योंकि, उक्त 9.20 लाख किताबों को रखने के लिए कोलकाता के बड़ाबाजार में गोदाम के किराये के रूप में 50 हजार रुपये प्रतिमाह देने पड़ रहे हैं। इसीलिए इस नुकसान को कम करने के लिए यह निर्णय लिया गया है। इस बीच कोलकाता के गोदाम में मौजूद उक्त किताबों को किलो की दर से बिक्री करने के लिए विश्वविद्यालय प्रबंधन ने पुस्तक विभाग को पत्र भेजा था। जिसके जवाब में पुस्तक विभाग ने पत्र लिखा है कि एक कमेटी गठित कर किताब बेचने के लिए निविदा आमंत्रित की जाए।
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बंगाल सरकार से आर्डर नहीं मिली फिर भी छाप गई किताबें
लंबे समय से विश्वभारती के पुस्तक विभाग की ओर से प्रकाशित होने वाली संकलन, परिवेश परिचय, सहजपाठ जैसी किताबों को बंगाल सरकार के स्कूलों में बच्चों को बढ़ाया जाता था। सूत्रों के मुताबिक वर्ष 2011 के बाद राज्य सरकार की ओर से विश्वभारती को इन किताबों के लिए कोई आर्डर नहीं दिया गया। यहां तक कि राज्य सरकार की ओर से मिले आर्डर की कोई लिखित कापी भी विश्वविद्यालय के पुस्तक विभाग के पास नहीं है। परंतु, किस अज्ञात कारण से दो करोड़ रुपये खर्च कर 9.20 लाख किताबें छपवाई गई यह बड़ा सवाल है। विश्वविद्यालय सूत्रों के मुताबिक वर्ष 2012 से पहले ही राज्य सरकार किताबें लेनी बंद कर दी थी। बावजूद इसके कुमकुम ने किताबें छापने का आदेश जारी कर दिया था। कई बार राज्य सरकार से गुहार भी लगाई गई थी, लेकिन सरकार की ओर से जारी आर्डर की काफी विश्वभारती प्रबंधन नहीं दिखा सकी और किताबें गोदाम में पड़ी है।