गुलाम नबी आजाद के कांग्रेस छोड़ते ही ममता बनर्जी की अहमियत बताने में जुटी तृणमूल
राज्यसभा सदस्य डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि ममता बनर्जी के अलावा कांग्रेस छोडऩे वाले सभी बाद में पुरानी पार्टी में लौट गए। सिर्फ ममता ने ही 11 साल से कांग्रेस से संबंध नहीं रखा। तृणमूल ने कांग्रेस को बंगाल में शून्य कर दिया।
कोलकाता, राज्य ब्यूरो। गुलाम नबी आजाद के कांग्रेस छोड़ते ही तृणमूल अपनी सुप्रीमो ममता बनर्जी की अहमियत बताने में जुट गई है। पार्टी के राज्यसभा सदस्य डेरेक 'ओ' ब्रायन ने कहा- 'कांग्रेस के बड़े नेताओं में सिर्फ गुलाम नबी आजाद ने ही पार्टी छोड़ी है। बाकी नेताओं ने कांग्रेस से बहिष्कृत किए जाने के बाद अपनी नई पार्टी बनाई थी लेकिन कुछ समय बाद ही सारे कांग्रेस में लौट गए थे।' डेरेक ने आगे कहा-'1999 में शरद पवार ने बड़ी-बड़ी बातें करके कांग्रेस छोड़ी थी। आज उनका यह हाल हो गया है कि अपना अस्तित्व बचाने के लिए वे महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के लिए दौड़कर आए हैं। एकमात्र ममता बनर्जी ने ही 1997 में कांग्रेस छोडऩे के बाद कभी उसमें लौटने की कोशिश नहीं की बल्कि कांग्रेस को बंगाल में शून्य कर दिया।
कांग्रेस से अलग होकर बनीं ये पार्टियां
पिछले 11 साल से तृणमूल ने कांग्रेस से कोई संबंध नहीं रखा है और 2024 के लोकसभा (लोस) चुनाव में भी पार्टी बंगाल की सभी 42 सीटों पर अपने दम पर लड़ेगी। तृणमूल ही आज मुख्य विरोधी शक्ति है।' गौरतलब है कि 1982 में एके एंटोनी ने कांग्रेस से अलग होकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (ए), 1986 में प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस, 1996 में माधव राज सिंधिया ने मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस, 1997 में सुखराम ने हिमाचल विकास कांग्रेस, 2001 में पी चिदंबरम ने कांग्रेस डेमोक्रेटिक फ्रंट और 1999 में शरद पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया था। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी अभी भी अस्तित्व में है लेकिन तृणमूल का दावा है कि वह कांग्रेस की दया पर है। सियासी विश्लेषकों का कहना है कि 2024 के लोस चुनाव में 'मोदी बनाम कांग्रेस' की लड़ाई न हो जाए, तृणमूल अभी से यह निश्चित करने में जुट गई है। टीएमसी ममता बनर्जी को मुख्य विरोधी प्रतिद्वंद्वी के तौर पर स्थापित करने में लगी हुई है।