क्या भाजपा को बंगाल में रोकने के लिए तृणमूल को कांग्रेस और वाममोर्चा समर्थन देंगे?
बुधवार को तृणमूल ने वाममोर्चा और कांग्रेस से भाजपा की राजनीति के खिलाफ लड़ाई में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का साथ देने की अपील कर दी। इस बार परिस्थिति कुछ और है। मुख्य लड़ाई भाजपा और तृणमूल में है और कांग्रेस-वाम दल तीसरे व चौथे नंबर पर पहुंच गए हैं।
राज्य ब्यूरो, कोलकाता। बंगाल की सियासत में अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहे वाममोर्चा और कांग्रेस पर अचानक भाजपा और तृणमूल की निगाहें टिक गई हैं। हाल ही में तृणमूल कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में शामिल हुए सुवेंदु अधिकारी ने वाम-कांग्रेस कार्यकर्ताओं और समर्थकों से अपील कर दी कि अपनी पार्टी के जुलूस-रैली में जाएं, लेकिन मतदान के दिन भाजपा को वोट अवश्य दें। फिर क्या था। इसके अगले ही दिन तृणमूल ने वाममोर्चा और कांग्रेस से भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ लड़ाई में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का साथ देने की अपील कर दी। राज्य की 294 विधानसभा सीटों पर अप्रैल-मई में चुनाव होने हैं।
तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद सौगत रॉय ने कहा कि अगर वाममोर्चा और कांग्रेस वास्तव में भाजपा के खिलाफ हैं तो उन्हें भगवा दल की सांप्रदायिक एवं विभाजनकारी राजनीति के खिलाफ लड़ाई में ममता का साथ देना चाहिए, क्योंकि भाजपा के खिलाफ धर्मनिरपेक्ष राजनीति का तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी ही असली चेहरा हैं। तो ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि क्या भाजपा को बंगाल में रोकने के लिए तृणमूल को कांग्रेस और वाममोर्चा समर्थन दे देंगे? क्या वहां बिहार जैसा महागठबंधन बन सकता है? तृणमूल के वरिष्ठ नेता के समर्थन मांगने के बाद यह सवाल उठने लगा है, परंतु यहां ममता हों या फिर माकपा इनके लिए एक साथ आना असंभव है।
हालांकि सियासत में कोई भी स्थाई दोस्त और दुश्मन नहीं होता। इससे पहले उत्तर प्रदेश, बिहार, जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में दो धुर विरोधी दलों का मिलन हो चुका है। वैसे कुछ दिन पहले ही जब माकपा महासचिव सीताराम येचुरी बंगाल आए थे तो उन्होंने कहा था कि उनका मकसद सिर्फ भाजपा को हराना है। साथ ही यह भी दावा कर दिया कि ममता बनर्जी सरकार से बंगाल की जनता परेशान हो गई है और इस बार चुनाव में ममता को बुरी हार का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में यदि तृणमूल नेता ने वाम-कांग्रेस से समर्थन की अपील की है तो इस पर किसी को हैरत नहीं होनी चाहिए।
वाममोर्चा और कांग्रेस गठबंधन कर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। हालांकि सीट समझौते को लेकर पेच फंसा है। इससे पहले 2016 विधानसभा चुनाव में भी वाममोर्चा और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें 77 सीटें ही मिल सकी थीं। वाममोर्चा को काफी नुकसान हुआ था और कांग्रेस 44 सीटें जीतकर फायदे में रही थी।