Bengal Chunav: इस बार बंगाल के चुनावी युद्ध में किसे मिलेगी फुरफुरा शरीफ दरगाह की दुआ? सबकीं नजरें टिकीं
फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादाओं के बीच आपसी लडाई से रोचक हुआ मुकाबला। अब्बास सिद्दिकी ने साथ असदुद्दीन ओवैसी की मुलाकात ने तृणमूल कांग्रेस को चिंता में डाल दिया है। सिंगुर एवं नंदीग्राम आंदोलन के समय फुरफुरा शरीफ़ के पीरजादाओं की दुआ तृणमूल सुप्रीमों ममता बनर्जी ने साथ थी।
कोलकता, राज्य ब्यूरो। कोलकता से लगभग चालीस किलोमीटर की दूरी पर हुगली जिले के जंगीपाड़ा इलाके में स्थित फुरफुरा शरीफ दरगाह आस्था के मज़बूत डोर से जुड़े लाखों मुसलमानों का पवित्र स्थल है। यही कारण है कि बंगाल तथा देश के कोने- कोने से प्रत्येक वर्ष मुस्लिम समुदाय के लोग यहां इबादत एवं सजदा के लिए आया करते हैं। खासकर यह स्थान लाखों बांग्लाभाषी मुसलमानों का प्रमुख आस्था का केंद्र है।
इस पवित्र दरगाह में आकर दुआ मांगने वाले लाखों श्रद्धालु फुरफुरा शरीफ के पीरजादा पर भी अपना आस्था बनाए हुए है। इतिहास गवाह है कि जिस प्रकार साधारण लोग अपनी सलामती के लिए यहां आते है, उसी प्रकार इस पवित्र दरगाह की दुआ बनी रहे इसके लिए विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता भी यहां अपनी हाजरी देने में पीछे नही हैं। लेकिन जब से ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलिमीन (एआइएमआइएम) के प्रमुख व हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी पिछले रविवार को अचानक फुरफुरा शरीफ दरगाह पहुंचकर यहां के पीरजादा व प्रमुख मुस्लिम धार्मिक नेता अब्बास सिद्दीकी के साथ बैठक कर विधानसभा चुनाव लड़ने की रणनीति पर चर्चा की है उसके बाद से इस पवित्र धार्मिक स्थल का नाम बंगाल की सियासत में और गुंजने लगा है।
दरअसल, सन् 1375 में मुकिलिश खान ने फुरफुरा शरीफ़ में मस्जिद का निर्माण कराया था। यहां दरगाह भी है, जो प्रमुख आस्था का केंद्र है। अबू बसाक सिद्दीकी ( दादा हुजूर) के वंसज तोहा सिद्दीकी एवं अब्बास सिद्दीकी यहां के पीरजादा (धर्म गुरु) हैं। तोहा एवं अब्बास चाचा-भतीजे हैं और दोनों के बीच की आपसी लडाई भी किसी से छिपी नहीं है और दोनों अलग-अलग राजनीतिक दलों का समर्थन करते हैं। तोहा सिद्दीकी जहां सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के बेहद करीबी हैं और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का खुलकर समर्थन करते हैं, वहीं अब्बास सिद्दीकी पिछले काफी समय से ममता के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। कुछ माह पहले उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ने की भी घोषणा की थी और वे एक संगठन बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं, जिसके बैनर तले वह उम्मीदवारों को उतारेंगे।
अब्बास सिद्दिकी के साथ असदुद्दीन ओवैसी की मुलाकात से चिंता में तृणमूल
इस बीच पिछले सप्ताह अब्बास सिद्दिकी ने साथ असदुद्दीन ओवैसी की मुलाकात ने सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को चिंता में डाल दिया है। चिंता हो भी ना क्यों? सिंगुर एवं नंदीग्राम आंदोलन के समय फुरफुरा शरीफ़ के पीरजादाओं की दुआ तृणमूल सुप्रीमों ममता बनर्जी ने साथ थी।
इन पीरजादाओं के प्रति आस्था रखने वाले तो यहां तक दावा करते हैं कि इन्हीं पीरजादाओं की दुआ के जरिए ममता बनर्जी 2011 में मुख्यमंत्री बनीं। फिर 2016 के चुनाव में भी प्रचंड बहुमत के साथ ममता लगातार दूसरी बार सत्ता में आईं। इसके पहले सत्ता का भोग प्राप्त करने वाले कांग्रेस एव वामफंट के भी सिर पर इन लोगों का ही हाथ था। देखा जाए तो इस दरगाह के पीरजादा तोहा सिद्दीकी जो अब्बास सिद्दीकी के चाचा हैं, जहां अभी भी सांप्रदायिक शक्तियों को बंगाल से दूर रखने की दुहाई देते हुए ममता बनर्जी के साथ खड़े है। वहीं, भतीजा अब्बास सिद्दीकी खुलेलाम तृणमूल कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए खुद राजनैतिक मैदान में उतरने को बेताब हैं। अब्बास सिद्दीकी ने तो यह भी एलान कर दिया है कि उनके द्वारा बनाए गए फ्रंट इस बार बंगाल के 100 विधानसभा सीटों पर तृणमूल एवं भाजपा से सीधे मुकाबला करेगी। मालूम हो कि पिछले 72 सालों से यहां के पीरजादाओं ने विभिन्न राजनैतिक दलों के नुमाइंदे को अपना आर्शीवाद देते आये है। लेकिन इस बार सियासी जंग में फुरफुरा शरीफ दरबार के पीरजादा अब्बास सिद्दिकी खुद जनता का प्यार एव दुआ मांगने के लिए मैदान में उतर रहे हैं। ऐसे में यह लडाई और रोचक हो गई है।
वहीं,इस दरगाह से जुड़े व इस पर आस्था रखने वाले लोग भी दो भागों में बंटते नजर आ रहे हैं। इसमें खासकर नौजवान पीढ़ी के लोगों में से ज्यादातर अब्बास सिद्दीकी के साथ खड़े दिखते नजर आ रहें है।नौजवानों का कहना है अब्बास सिद्दीकी हमलोगों के भाई जान हैं। हमलोग उनके साथ है। मालूम हो कि बंगाल के हुगली, बर्द्धमान, हावड़ा, उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, मालदा, मुर्शिदाबाद तथा बीरभूम जिले के लाखों बांग्लाभाषी मुसलमान इस दरगाह से जुड़े हुए है। वहीं, बंगाल में कुल मतदाताओं में लगभग 30 फीसद मुस्लिम आबादी है। अब देखना है कि वर्ष 2021 के चुनाव में मुसलमानों का एम फैक्टर ममता की हेट्रिक लगाने में मदद करती है या फिर तृणमूल सरकार को सत्ता से हटाने में अहम भूमिका निभाई है, इस पर सबकी नजरें टिकी हुई है।