...तो फिर इस कारण से हर वर्ष तृणमूल कांग्रेस को करोड़ों रुपये का ऋण लेना पड़ रहा है?
Mamata Goverment बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के मुख्य आर्थिक सलाहकार अमित मित्र का मानना है कि तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद से राज्य अपना ऋण एवं जीडीपी का अनुपात कम करने में सक्षम रहा है।
कोलकाता, जयकृष्ण वाजपेयी। दो वर्षो के विराम के बाद नए वर्ष में बड़े निवेश की आस लिए एक बार फिर बंगाल वैश्विक व्यापार सम्मेलन (बीजीबीएस) आयोजित होगा। बीते वर्ष सितंबर में ही ममता सरकार की ओर से घोषण की गई थी कि 20-21 अप्रैल, 2022 को बीजीबीएस के छठे संस्करण का आयोजन होगा। बंगाल में औद्योगिकीकरण की गाड़ी, जो 2006-07 में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन की वजह से बेपटरी हुई थी, वह आज तक पटरी पर नहीं लौट पाई है। ऐसे में कर्ज के दलदल में फंसा प्रदेश बाहर नहीं निकल पा रहा है।
विपक्षी नेता के रूप में ममता के सिंगुर आंदोलन की वजह से ही टाटा जैसी कंपनी को बंगाल छोड़ने को बाध्य होना पड़ा था। उस घटना ने औद्योगिकीकरण के लिए बने माहौल को पूरी तरह से बिगाड़ दिया था और लाख कोशिशों के बावजूद आज तक स्थिति नहीं सुधरी है। बड़े उद्योग नहीं आने से बंगाल पर ऋण का बोझ बढ़ता जा रहा है। ऊपर से कोरोना की वजह से आर्थिक विकास की गति बाधित है। इस समय बंगाल में कोरोना संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। नए साल के तीसरे ही दिन से ममता सरकार को आंशिक लाकडाउन लगाना पड़ा है। ऐसे में आर्थिक मोर्चे पर समस्या और बढ़ेगी। विकास के साथ ममता सरकार द्वारा घोषित लोकलुभावन योजनाओं के लिए फंड कहां से आएगा, यह एक बड़ा प्रश्न है।
तीन वर्ष पहले बंगाल वैश्विक व्यापार सम्मेलन में निवेशकों से मुखातिब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी। फाइल
इसीलिए राज्य सरकार को 2022 में हर हाल में यह सुनिश्चित करना होगा कि बड़े और भारी उद्योगों में निवेश आए और कल-कारखाने लगें, क्योंकि औद्योगिकीकरण से ही आर्थिक स्थिति में सुधार हो पाएगा। इस वर्ष दिग्गज कंपनियों के नए निवेश को आकर्षित करना काफी अहम होगा। उद्योग के क्षेत्र में वित्त वर्ष 2020-21 में दर्ज 1.2 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में नए वित्त वर्ष में और मजबूती से वृद्धि दर्ज हो, इसके प्रयास करने होंगे। 2019-20 में राज्य की अर्थव्यवस्था में 3.6 प्रतिशत की गिरावट आई थी। ऐसे में देखना होगा कि वर्तमान वित्त वर्ष में क्या स्थिति रहती है। शुरुआती आकलन में बंगाल की अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 2021-22 में 13.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद की जा रही है। तीसरी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद ममता बनर्जी ने कहा था कि अब तक उनकी सरकार ने सामाजिक न्याय की योजनाओं पर जोर दिया था और अब उद्योग पर भी पूरा जोर होगा। यही वजह है कि दो वर्षो तक बंद रखने के बाद एक बार फिर से निवेशकों को आकर्षित करने के लिए बड़ा आयोजन हो रहा है।
अगर नए निवेश नहीं आए और बड़े उद्योग नहीं लगे तो राजस्व उगाही नहीं बढ़ेगी। ऐसे में राज्य सरकार के लिए सामाजिक योजनाओं पर मौजूदा खर्च के स्तर को जारी रखना मुश्किल हो जाएगा। ममता ने चुनावी वादा पूरा करने के लिए ‘लक्ष्मी भंडार’ योजना शुरू की है, जिसमें परिवार की महिला मुखिया को प्रति माह 500 और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए 1,000 रुपये देना शामिल है। इसके लिए राज्य सरकार को हर वर्ष 18,000 करोड़ अतिरिक्त राशि की जरूरत होगी। और भी कई नकदी की जरूरत वाली योजनाएं हैं इसीलिए हर हाल में राजस्व बढ़ाना जरूरी है। ऐसा नहीं हुआ तो स्थिति और बिगड़ जाएगी। बढ़ते कर्ज को संतुलित करने के लिए राजस्व संग्रह में सुधार भी बहुत आवश्यक है।
बंगाल सरकार मुकेश अंबानी की रिलायंस के बाद अब अदाणी समूह से निवेश की उम्मीद कर रही है। ममता के साथ पिछले माह ही एक बैठक के दौरान अदाणी समूह के प्रमुख गौतम अदाणी ने राज्य में बुनियादी ढांचे और अन्य संबद्ध क्षेत्रों में निवेश की इच्छा जताई है। इसे नए वर्ष में बंगाल के लिए शुभ संकेत माना जा सकता है। कोरोना के बावजूद राज्य का जीएसटी संग्रह बढ़ा है। पिछले नवंबर में जीएसटी संग्रह 4,083 करोड़ रुपये था। इसे और बढ़ाने की जरूरत है। भाजपा विधायक और भारत सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अशोक लाहिड़ी का कहना है कि राज्य का राजकोषीय घाटा 2019-20 में 36,831 करोड़ रुपये था, जो एक साल में बढ़कर 52,350 करोड़ रुपये हो गया और 2021-22 में इसके 60,864 करोड़ रुपये तक पहुंच जाने का अनुमान है।
यह बता रहा है कि राज्य वित्तीय संकट के मुहाने पर खड़ा है। बंगाल पर कर्ज का बोझ करीब चार लाख करोड़ रुपये से अधिक का हो चुका है। ऐसे में बिना उद्योग लगे स्थिति बेहतर नहीं होगी। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के मुख्य आर्थिक सलाहकार अमित मित्र का मानना है कि तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद से राज्य अपना ऋण एवं जीडीपी का अनुपात कम करने में सक्षम रहा है। यहां सवाल है कि अगर ऐसा ही है तो फिर हर वर्ष करोड़ों रुपये का ऋण क्यों लेना पड़ रहा है?
[राज्य ब्यूरो प्रमुख, बंगाल]