एक नदी की दुर्दशा, गहराई को तरस रही सागर जैसी नदी
सागर जैसी दिखने वाली एक नदी। दोनों किनारे तक नजर नहीं आते उसके। ऊपर से पानी से लबालब, लेकिन अंदर से खाली। यह है मूड़ी गंगा।
विशाल श्रेष्ठ, गंगासागर। सागर जैसी दिखने वाली एक नदी। दोनों किनारे तक नजर नहीं आते उसके। ऊपर से पानी से लबालब, लेकिन अंदर से खाली। यह है मूड़ी गंगा। हुगली नदी की एक धारा, जो पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले से बहते हुए बंगाल की खाड़ी में मिलती है।
आस्था के महापर्व मकर संक्रांति पर पुण्य स्नान करने गंगासागर जाने के लिए इस नदी को पार करना ही पड़ता है। पार कराने के लिए जेटी हैं, वेसेल (बड़े यात्री लांच) हैं, नहीं है तो नदी में गहराई। भाटे के समय मूड़ी गंगा में 10 फुट तक भी पानी नहीं रह जाता, जिसके कारण कई घंटे वेसेल नहीं चल पाते। जो निकल चुके होते हैं, वे बीच नदी में फंसे रह जाते हैं। यात्री बेबस होकर ज्वार आने का इंतजार करते हैं। पांच-छह घंटे बाद पानी के बढ़ने पर ही आगे की यात्रा हो पाती है। यह आलम आज से नहीं है। दशकों से मूड़ी गंगा गहराई के लिए तरस रही है।
बंगाल सरकार और दक्षिण 24 परगना जिला प्रशासन मूड़ी गंगा से गाद निकालने (ड्रेजिंग) को लेकर जितने भी बड़े-बड़े दावे क्यों न करे, समस्या का निवारण नहीं हुआ है बल्कि यह गुजरते वक्त के साथ गंभीर रूप लेती जा रही है। हर साल मकर संक्रांति पर देश-दुनिया से लाखों की तादाद में यहां आने वाले पुण्यार्थियों को इस कारण भारी परेशानी झेलनी पड़ती है।
मूड़ी गंगा में वेसेल चलाने वाले इस समस्या को रोजाना सबसे करीब से झेलते हैं। लॉट नंबर आठ और कचूबेरिया के बीच पिछले 15 साल से वेसेल चला रहे खोखन माइती ने बताया-'मूड़ी गंगा की दुर्दशा हमसे बेहतर कौन जानता है। एक वेसेल के परिचालन के लिए महज तीन मीटर (9.842 फुट) पानी की जरुरत होती है। इस विशाल नदी को इतनी सी भी गहराई नसीब नहीं है। सच कहें वर्षों से जमा हो रही गाद ने मूड़ी गंगा के नीचे रेतीली मिट्टी का एक मैदान तैयार कर दिया है। पानी उतरते ही मैदान दिखने लगता है।' 'एमवी गीतांजलि' नामक वेसेल चलाने वाले 30 साल के खोखन ने आगे कहा-'लॉट नंबर आठ से कचूबेरिया की दूरी पांच किलोमीटर है। एक वेसेल को इसे तय करने में सामान्य तौर पर 45 मिनट का समय लगता है।
पानी का बहाव अनुकूल होने पर 35 मिनट में यह फासला तय हो जाता है लेकिन भाटे के समय यही दूरी घंटों लंबी हो जाती है। एक वेसेल की अधिकतम गति 1500 नाटिकल माइल्स होती है। वहीं बार्ज (मालवाही जहाज) तो यहां तभी चल पाते हैं, जब उच्च ज्वार हो। बार्ज के परिचालन के लिए पानी की गहराई आठ से 10 मीटर होनी जरूरी है।'
जिला प्रशासन भले मूड़ी गंगा में महीनों से दो ड्रेजर के काम करने का दावा कर रहा हो, लेकिन सालभर यहां वेसेल चलाने वाले खोखन का कहना है कि वे तो एक ही ड्रेजर को काम करते देख रहे हैं, वो भी पिछले 15 दिनों से। एक और ड्रेजर है, लेकिन उसे काम में नहीं लगाया गया है बल्कि 'शोपीस' बनाकर रख दिया गया है।
खोखन ने बताया कि जिस तरह से गाद निकालने का काम चल रहा है, उससे कोई फायदा नहीं हो रहा। एक जगह से गाद निकालकर उसे नदी में ही दूसरी जगह फेंका जा रहा है। ज्वार के समय वही गाद वापस लौट आ रहा है। गाद फेंकने के लिए नदी में 50 मीटर तक बैरीकेडिंग की गई है लेकिन वहां फेंका ही नहीं जा रहा।
मूल रूप से पूर्व मेदिनीपुर जिले के तमलुक के वाशिंदा खोखन ने कहा-'मूड़ी गंगा में वेसेल चलाना जोखिम भरा काम है। भाटा और कोहरे जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। नदी मार्ग में इंडीकेटर नहीं हैं। रात के वक्त नदी में स्थापित बिजली टावर की रोशनी से ही मार्ग का अंदाजा लगाना पड़ता है। कई बार वेसेल भटककर काकद्वीप और घोड़ामारा की तरफ चले जाते हैं।