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बेहतरीन पर्यटन स्थल होने के बावजूद क्यों पुरुलिया बंगाल से बाहर के पर्यटकों को नहीं कर पा रहा आकर्षित?

33% इलाका पुरुलिया का वन से अच्छादित है। इसमें भी खास तौर पर पलाश के जंगल बहुत खूबसूरत हैं और पर्यटकों को अपनी ओर खींचते हैं। यहां पर्णपाती प्रकार के जंगल पाये जाते हैं जिसमें पलाश बांस साल महुआ मुख्य हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 18 Mar 2021 12:29 PM (IST)Updated: Thu, 18 Mar 2021 12:55 PM (IST)
बेहतरीन पर्यटन स्थल होने के बावजूद क्यों पुरुलिया बंगाल से बाहर के पर्यटकों को नहीं कर पा रहा आकर्षित?
बंगाल और झारखंड की सीमा से सटा हुआ पुरुलिया आदिवासी बहुल इलाका है।

पुरुलिया से प्रदीप सिंह। पुरुलिया को लोग भले ही छऊ नृत्य की वजह से जानते हैं लेकिन यहां का पलाश वन और छोटे-छोटे पठार भी उतने ही ख्यात हैं। दरअसल, यह पश्चिम बंगाल के प्रमुख पर्यटन स्थलों में शुमार है। यहां के खूबसूरत पहाड़ों को निहारने के लिए लोग आते हैं लेकिन कुछ राज्य सरकारों की लापरवाही रही और कुछ नक्सलियों का प्रभाव कि यह खूबसूरत इलाका राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान नहीं बना पाया। बंगाल और झारखंड की सीमा से सटा हुआ पुरुलिया आदिवासी बहुल इलाका है। लगभग 29.27 लाख आबादी वाले इस इलाके में छोटे-बड़े 70 होटल की है।

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आज की स्थिति में यह होटल पर्यटकों से भरे हुए हैं। हालांकि सभी पर्यटक बंगाल के ही हैं। प्रचार-प्रसार के अभाव में बाहरी पर्यटक यहां नहीं पहुंच पाते हैं। यहां का अजोध्या और पाखी पहाड़ पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। इसकी वजह से क्षेत्र में होटल व्यवसाय का काफी विकास हुआ है। पर्यटकों का यहां आना-जाना लगातार बना रहता है, लेकिन इसका प्रचार-प्रसार अधिक नहीं होने के कारण अन्य प्रांतों अथवा देश से बाहर के पर्यटक नहीं आते। अगर इस दिशा में कोशिश की गई तो पुरुलिया देश के पर्यटन मानचित्र पर उभर सकता है।

खासकर साहसिक पर्यटन की यहां काफी संभावनाएं हैं। पुरुलिया अपने पारंपरिक छऊ नृत्य शैली के लिए मशहूर है। यह शैली झारखंड और ओडिशा में भी अन्य विविधताओं लिए हुए लोकप्रिय है। इस नृत्य शैली की उत्पत्ति युद्ध प्रथाओं से हुई है। इसमें कलाकार विभिन्न प्रकार के पात्रों का भारी-भरकम मुखौटा लगाकर नृत्य करते हैं जो बड़ा मनोरम होता है। इस नृत्य शैली के कलाकार शारीरिक रूप से काफी मजबूत, चुस्त और फुर्तीले होते हैं। विभिन्न आयोजनों के मौके पर इसका खास प्रदर्शन किया जाता है, जो खुले स्थान पर होता है। इसे अखड़ा कहते हैं। इसमें नर्तक विभिन्न लोक कथाओं, किवदंतियों समेत पौराणिक कथाओं रामायण और महाभारत के प्रकरण को नृत्य के जरिए प्रस्तुत करते हैं। इसमें देसी वाद्ययंत्रों ढोल, ढाक, धुमसा, शहनाई आदि का उपयोग होता है। इसमें मुखौटा सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। जिसका निर्माण करने वाले कलाकार खासतौर पर मानभूम (पुरुलिया, झारखंड के सरायकेला) में पाए जाते हैं। पुरुलिया शैली के छऊ नृत्य का प्रदर्शन अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में भी होता है।

अजोध्या हिल्स.. यह एक छोटा पठार है, जो राज्य के पुरुलिया जिले में स्थित है। यह छोटानागपुर पठार का पूर्वी भाग है और पूर्वी घाट श्रेणी का विस्तारित हिस्सा है। अजोध्या हिल्स की सबसे ऊंची चोटी चम्तबुरू (712 मीटर) है। खास बनावट की वजह से यह पठार पर्वतारोहियों के लिए प्रारंभिक प्रशिक्षण का बेहतर स्थल है। इसे विकसित किया जा सकता है।

अजोध्या हिल्स.. अजोध्या के पठार के निचले हिस्से में डैम बना है। पर्यटकों के लिए यहां नाव चलती है। यहां वाटर स्पोर्ट्स आयोजित हो सकते हैं।

पुरुलिया होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष व टूरिज्म बोर्ड के सदस्य मोहित लाटा ने बताया कि यहां सालभर पर्यटक आते हैं। ढेर सारे होटल और रिसॉर्ट हैं। सरकार स्तर पर कुछ सहुलियतें भी मिली हैं लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। पहाड़ों पर रोप-वे समेत अन्य साहसिक पर्यटन को बढ़ावा देकर इसे और बेहतर किया जा सकता है। इससे लोगों को रोजगार मिलेगा। होटल व्यवसाय को भी सुविधाओं की जरूरत है। तभी इस क्षेत्र का विकास हो पाएगा और बंगाल के बाहर भी पुरुलिया की ख्याति पहुंचेगी।

33% इलाका पुरुलिया का वन से अच्छादित है। इसमें भी खास तौर पर पलाश के जंगल बहुत खूबसूरत हैं और पर्यटकों को अपनी ओर खींचते हैं।

पुरुलिया के न्यू स्टार छऊ ग्रुप के संचालक देवाशीष दास ने बताया कि पुरुलिया की छऊ नृत्य शैली बहुत प्राचीन और समृद्ध है। इसके लिए यहां प्रशिक्षण केंद्र भी स्थापित किए गए हैं। अलग-अलग नर्तकों का समूह भी है। लोग विभिन्न मौकों पर हमारे दल को को नृत्य करने के लिए आमंत्रित करते हैं। नर्तकों का दल राज्य के बाहर जाकर भी प्रदर्शन करता है। अगर नर्तकों को बेहतर प्रशिक्षण के साथ-साथ अच्छा अवसर मिले तो हम छऊ नृत्य को अंतरराष्ट्रीय मंचों तक ले जा सकते हैं। इस नृत्य शैली का अभ्यास बहुत कठिन है।


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