नकली मूंछ लगाकर शिक्षक व गायक बनने वाले शुभदीप मूंछों का ‘गोलमाल’ कर आ पहुंचा ‘इंडियन आइडल’ तक
नकली मूंछ लगाकर शिक्षक और गायक की दोहरी जिंदगी जीने वाले शुभदीप टीवी के रियलिटी शो ‘इंडियन आइडल’ में गायकी का जलवा बिखेर रहे हैं।
कोलकाता, विशाल श्रेष्ठ। आपने अमोल पालेकर अभिनीत ‘गोलमाल’ फिल्म देखी होगी तो कोलकाता के शुभदीप का गोलमाल समझने में देर नहीं लगेगी। नकली मूंछ लगाकर शिक्षक और गायक की दोहरी जिंदगी जीने वाले शुभदीप टीवी के रियलिटी शो ‘इंडियन आइडल’ में गायकी का जलवा बिखेर रहे हैं।
किसी ने खूब कहा है- मूंछ नहीं तो कुछ नहीं! यह बात 21 साल के इस युवक के लिए सटीक बैठी और वह देश के लोकप्रिय म्यूजिक रियलिटी शो के मंच तक जा पहुंचा। कोलकाता के बेहला अंचल स्थित रवींद्रनगर निवासी शुभदीप दास चौधरी ने नकली मूंछ लगाकर संगीत शिक्षक और गायक की दोहरी जिंदगी जी, जिसका आइडिया उन्हें गोलमाल फिल्म से मिला था। कारण, मूंछ नहीं होने के कारण वे कम अनुभवी और अपरिपक्व नजर आते थे, जिससे लोग उनकी गायकी को गंभीरता से नहीं लेते। शास्त्रीय संगीत में पारंगत होने के बावजूद शुभदीप जहां भी संगीत की शिक्षा देने जाते, प्रशिक्षु के अभिभावक यह कहकर उन्हें मना कर देते कि तुम क्या सिखाओगे, तुम्हारी उम्र तो खुद सीखने की है।
ऐसे में एक दिन शुभदीप ने टीवी पर गोलमाल फिल्म देखी। अमोल पालेकर-उत्पल दत्त अभिनीत इस सदाबहार हास्य फिल्म ने उन्हें वह आइडिया दे डाला, जिसकी सख्त दरकार उन्हें थी। फिल्म में जिस तरह अमोल पालेकर नकली मूंछ लगाकर उत्पल दत्त के कार्यालय में काम करते हैं और उनको इसकी भनक तक नहीं लगती, ठीक उसी तरह शुभदीप भी अभिभावकों को गच्चा देने में सफल रहे। नकली मूंछ की वजह से उनकी उम्र 30-32 साल के अनुभवी व्यक्ति जैसी लगने लगी।
अभिभावकों ने उन्हें परिपक्व और अनुभवी संगीतकार मानकर तुरंत अपने बच्चों को संगीत सिखाने के लिए रख लिया। इसके बाद शुभदीप की दोहरी जिंदगी शुरू हो गई। वे नकली मूंछ लगाकर गाना सिखाने लगे और बिना मूंछ के पार्क स्ट्रीट व गोल पार्क इलाके के क्लब और पब में परफार्म करते। बताते हैं, दरअसल क्लब और पब में गाने के लिए युवा दिखना जरूरी था, लिहाजा दोहरी भूमिका के लिए नकली मूंछ का सहारा लेना पड़ा। यही नहीं, क्लब और पब में गाने के लिए उन्होंने अपना नाम ‘आदित्य’ रख लिया था, जैसा कि फिल्म में भी था- दोनों किरदारों के नाम भी अलग-अलग थे, राम प्रसाद और लक्ष्मण प्रसाद उर्फ लकी।
संगीत शुभदीप के खून में है। पिता स्वर्गीय श्यामल दास चौधरी होम्योपैथी चिकित्सक कम और गायक व संगीतकार अधिक थे। मां शीला दास चौधरी भी संगीत शिक्षिका हैं। माता-पिता ही शुभदीप के पहले शिक्षक थे। पांच साल की उम्र से शुभदीप ने सुर साधना शुरू कर दी थी।
माता-पिता ने बेहला में सुरांगन नामक संगीत स्कूल भी शुरू किया था, जहां वे गरीब बच्चों को निश्शुल्क शिक्षण देते थे। पॉलिटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके शुभदीप ने कहा, 2012 में पिता के निधन के बाद वह स्कूल आर्थिक तंगी के कारण बंद हो गया। मैं उसे फिर से खुलवाकर वहां प्रतिभावान गरीब बच्चों को संगीत की तालीम देना चाहता हूं।
शुभदीप रोजाना 10 से 12 घंटे रियाज करते हैं। वे तीन बार ‘क्लासिकल वॉइस आफ इंडिया’ अवार्ड जीत चुके हैं। अन्य संगीत प्रतियोगिताओं में भी उन्होंने परचम लहराया है। किशोर कुमार और मोहम्मद रफी शुभदीप के पसंदीदा गायक हैं। पार्श्वगायक बनने की इच्छा रखने वाले शुभदीप कई बांग्ला व हिंदी फिल्मों के लिए भी गाने गा चुके हैं।
शुभदीप कहते हैं, दरअसल मैं खुद को सिर्फ शास्त्रीय संगीत तक सीमित नहीं रखना चाहता था, इस कारण भी पहचान बदलना जरूरी हो गया था। गिटार और अन्य गैर-शास्त्रीय संगीत वाले वाद्य यंत्र खरीदने के लिए भी रुपये चाहिए थे। इसलिए संगीत शिक्षक बनने के लिए नकली मूंछ लगाकर पहचान बदलनी पड़ी। मैं बस यही साबित करना चाहता हूं कि एक शास्त्रीय गायक हर तरह के गाने गा सकता है। वह सितार और गिटार, दोनों की धुन पर परफार्म कर सकता है। तीन-चार महीने पहले जब इंडियन आइडल का कोलकाता ऑडिशन होने जा रहा था तो मैंने पहली बार इसमें भाग लेने की सोची। इसकी वजह भी नकली मूंछ ही थी। नकली मूंछ के कारण ही मैं सिर्फ शास्त्रीय संगीत तक सीमित नहीं रह गया था, जिससे मेरा आत्मविश्वास भी हर तरह की गायकी को लेकर काफी बढ़ गया था।